देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारतरत्न' से नवाज़े गए शहनाई के विश्वप्रसिद्ध उस्ताद बिसमिल्लाह खां की शहनाई के गायब हो जाने की ख़बर है, और इसे लेकर उन्हीं के परिवार के लोग एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं, हालांकि मामला फिलहाल पुलिस में नहीं गया है। उधर, कई दिन से उनके अपने घर को भी तोड़कर मार्केट बनाने की ख़बरें भी गर्म हैं। दरअसल, सारा विवाद उस्ताद बिसमिल्लाह खां के बेटों के बीच का है। कुछ भाइयों का कहना है कि मकान जर्जर हो गया है, और सरकार कतई ध्यान नहीं दे रही है, सो, लिहाजा हम लोग इसे तोड़कर नीचे कटरा बनाएंगे और ऊपर एक नए हॉल में उस्ताद की धरोहरों को संजोएंगे। लेकिन दूसरी ओर कुछ भाई इस फैसले के खिलाफ हैं, और वे मकान को मूल अवस्था में ही रखना चाहते हैं।
उस्ताद बिसमिल्लाह खां के वाराणसी के हड़हा सराय मोहल्ले में बने पुराने मकान में रहने वाले उनके बड़े बेटे हाजी महताब हुसैन का कहना है, "उस्ताद की शहनाई वर्ष 2009 में गायब हुई... कहां गई, कहां है, पता नहीं... हमने पुलिस को खबर नहीं की है, क्योंकि यह परिवार का मामला है, लेकिन अब पता कर रहे हैं..."
दरअसल, यह पूरा मामला उस्ताद के मकान को लेकर शुरू हुआ था। पहले पूरा परिवार एक साथ रहता था, लेकिन अब कुछ भाई अलग रहते हैं। उनके बड़े बेटे महताब अभी भी इस मकान में हैं, और यह मकान उन्हीं के नाम भी है। तकरीबन सौ साल पहले बने इस मकान की हालात जर्जर हो रही है, लिहाज़ा वह इसे तोड़कर नीचे मार्केट और ऊपर उस्ताद का संग्रहालय बनाना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, "यह मकान सैकड़ों साल से ज़्यादा पुराना है... अगर इसको नहीं बनाया गया तो कभी भी गिर सकता है और हादसा हो सकता है... जितनी खां साहेब की धरोहर हैं, उन्हें ऊपर हॉल में सजा देंगे... क्योंकि इस मकान को न सरकार बना रही है, न कोई और..."
उधर, पुराने मकान की विरासत को तोड़कर नीचे मार्केट बनाने के इरादे से जब उस्ताद के दूसरे बेटे नैयर हुसैन, जिनका इंतकाल हो चुका है, का सामान बाहर निकाला गया, तो पता चला कि उस्ताद की शहनाई गायब है। इसी के बाद दूसरे भाइयों का विरोध ज़ोर पकड़ गया। इन लोगों का कहना था, यह मकान उस्ताद की विरासत है... यहीं से उन्होंने शहनाई की शुरुआत की थी... यहां की दर-ओ-दीवार में उनके रियाज़ की आब बसी हुई है, सो, इसे थोड़ी-सी खुदगर्ज़ी के लिए नहीं तोड़ा जाना चाहिए..."
इस मुद्दे पर उस्ताद के सबसे छोटे बेटे नाज़िम हुसैन ने कहा, "हमें मलाल यह है कि खां साहेब ने जितना नाम दुनिया में किया, वह टूट जाएगा... सारी निशानियां खत्म हो जाएंगी... आज से 50-60 साल बाद जब बच्चे आकर पूछेंगे कि खां साहेब कहां रहते थे, तो हम क्या जवाब देंगे..."
उल्लेखनीय है कि उस्ताद बिसमिल्लाह खां अपने पीछे पांच बेटे और तीन बेटियों को छोड़ गए थे, जिनमें सबसे बड़े महताब हुसैन, फिर नैयर हुसैन, जिनका इंतकाल हो गया है। इसके बाद ज़ामिन हुसैन, फिर काज़िम हुसैन और सबसे छोटे नाज़िम हुसैन हैं। इस समय महताब और काज़िम चाहते हैं कि मकान टूटकर नया बने, जबकि ज़ामिन और नाज़िम चाहते हैं कि उनकी धरोहर का मकान वैसा ही रहे, जैसा यह था। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर शहनाई गायब करने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन विरासत की इस लड़ाई से उस्ताद के चाहने वालों का मिजाज बेसुरा हो रहा है।
एक वक्त जो शहनाई सिर्फ घरों की ड्योढ़ी के बाहर बजा करती थी, उसे उस्ताद बिसमिल्लाह खां ने अपने सुरों की फूंक से घर-घर के आंगन में पहुंचा दिया, लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज उन्हीं के आंगन में उनकी विरासत को लेकर बेहद बेसुरा राग छिड़ा हुआ है, सो, ऐसे में हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार इस पर ध्यान दे, ताकि उस्ताद के आंगन में फिर सुरीले राग बज सकें।
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