चिराग पासवान अपने बयानों को लेकर इन दिनों चर्चा में हैं. वो नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का सदस्य हैं.वो खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हुए नहीं अघाते हैं.लेकिन मौका पड़ने पर वो सरकार की आलोचना से भी पीछे नहीं हटते हैं. पिछले कुछ दिनों से आए उनके बयानों से बीजेपी असहज.चिराग आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बयान दे चुके हैं.उन्होंने वक्फ बोर्ड पर लाए गए बिल और लैटरल एंट्री पर आए यूपीएससी के विज्ञापन पर भी आपत्ति जताई थी. पासवान इन दिनों दलितों के मुद्दों पर काफी मुखर हैं.उनकी राजनीति में आए इस बदलाव के बाद राजनीतिक पंडितों को चिराग पासवान में भी एक राजनीतिक मौसम विज्ञानी नजर आ रहा है. एक ऐसा राजनेता जो राजनीतिक हवाओं का रुख समय रहते भांप लेता है. उनके पिता रामविलास पासवान को भी मौसम वैज्ञानिक ही कहा जाता था.
चिराग पासवान की रणनीति
पिता रामविलास पासवान के साये में रहकर ही चिराग पासवान ने राजनीति के गुर सीखे हैं.पिता के निधन के बाद चिराग ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी.साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग की पार्टी लोजपा ने नीतीश कुमार के जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए. लेकिन बीजेपी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया.उस चुनाव के समय से ही उन्होंने खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान कहना शुरू कर दिया था. चिराग की इस रणनीति का असर भी हुआ. नीतीश कुमार की पार्टी पहली बार बीजेपी की जूनियर पार्टी बनकर रह गई.लेकिन इससे चिराग को कोई फायदा नहीं हुआ. लोजपा 5.66 फीसदी वोट के साथ एक सीट ही जीत पाई. लेकिन यह 2015 के चुनाव परिणाम से बेहतर था, जिसमें लोजपा दो सीटों के साथ 4.83 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी.
इस चुनाव के बाद नीतीश और चिराग के रिश्तों में काफी खटास आ गई.चिराग की पार्टी नरेंद्र मोदी सरकार को बाहर से समर्थन करती रही. बाद में लोजपा सांसदों ने चिराग के चाचा पसुपति पारस के नेतृत्व में बगावत कर दी.नरेंद्र मोदी ने भी चिराग को झटका देते हुए पसुपति पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करवा दिया. उन्हें मंत्रालय भी वही दिया गया, जो रामविलास पासवान संभालते थे.कहा जाता है कि लोजपा में हुई बगावत के पीछे नीतीश कुमार का हाथ था. इस बगावत के बाद चिराग पासवान ने खुद को संभाला. उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़कर अपनी नई पार्टी को फिर से खड़ा किया.
चिराग पासवान का बीजेपी से रिश्ता
लोकसभा चुनाव से पहले तक चिराग की पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा नहीं थी. लेकिन चिराग खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते रहते थे. चुनाव से पहले चिराग ने बीजेपी से जमकर मेलभाव किया. बीजेपी ने लोजपा को पांच सीटें चुनाव लड़ने के लिए दीं. वहीं उनके चाचा पसुपति पारस को खाली हाथ रहना पड़ा. जब चुनाव परिणाम आए तो लोजपा ने सभी पांचों सीटें जीत लीं. 100 फीसदी का स्ट्राइक रेट वाली लोजपा बिहार की अकेली पार्टी थी. यहां तक कि बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी राजद भी लोकसभा की केवल चार सीटें ही जीत पाई.चिराग पासवान के राजनीतिक कौशल और चुनाव प्रबंधन का लोहा दुनिया ने माना. वो अपनी पार्टी को खड़ा करने में कामयाब रहे.
मुझे खुशी है कि मेरे प्रधानमंत्री आदरणीय श्री @narendramodi जी ने समाज के एक बड़े वर्ग-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग से आनेवाले लोगों की चिंताओं को समझा। आज एक आदेश के तहत, ये जो विज्ञापन निकला था, उसे रद किया जाता है। मैं और मेरी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी… pic.twitter.com/NrPa2ZIsK4
— Lok Janshakti Party (@LJP4India) August 20, 2024
राजग संसदीय दल की बैठक में नरेंद्र मोदी और चिराग पासवान की एक फोटो काफी वायरल हुई. इसमें पीएम मोदी चिराग को दुलार करते हुए नजर आ रहे थे. सभी पांच सीटें जीतने का इनाम चिराग पासवान को मिला. उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया. यहां तक तो सब ठीक गति से चलता नजर आ रहा था. चिराग पीएम मोदी के हनुमान की ही भूमिका में नजर आ रहे थे. लेकिन वक्फ बोर्ड को लेकर लाए गए बिल पर उनका रुख बदलता हुआ नजर आया. उन्होंने मांग की कि सरकार इस बिल को संसदीय समिति को भेजे.
आरक्षण पर मुखर क्यों हैं चिराग पासवान
इस बीच एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में सब कैटेगरी बनाने को लेकर एक फैसला सुना दिया. फैसला सुनाते हुए एक जज ने एससी-एसटी आरक्षण में भी क्रीमीलेयर लागू करने की बात कर दी. इससे एससी-एसटी के एक बड़े वर्ग में इस फैसले को लेकर नाराजगी पनपने लगी. चिराग ने इसे भांप लिया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी पार्टी की ओर से एक पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कर दी. इसने बीजेपी को असहज कर दिया. वहीं मोदी मंत्रिमंडल के एक दूसरे दलित नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी इस फैसले के समर्थन में खड़े हैं. इस फैसले को लेकर दोनों केंद्रीय मंत्रियों में शब्द बाण भी खूब चले. फैसले के खिलाफ 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद का चिराग की लोजपा ने समर्थन भी किया.
SC-ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से भारत बंद के फैसले का मैं और मेरी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अनूसूचित जाति एवं जनजाति के पक्ष में नैतिक रूप से समर्थन करती है। समाज के शोषितों और वंचितों के हक की आवाज बनना हमारा कर्तव्य है। पार्टी…
— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) August 21, 2024
इस बीच यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) ने केंद्र सरकार के मंत्रालयों में सीधे भर्ती (लैटरल एंट्री) को लेकर एक विज्ञापन निकाला. इसमें किसी तरह के आरक्षण का प्रावधान नहीं था.इसके विरोध में विपक्षी दलों ने मोर्चा खोल दिया.चिराग पासवान इसके भी उसके सुर में सुर मिलाते हुए नजर आए.उन्होंने कहा कि किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए. इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार को यह विज्ञापन वापस लेना पड़ा.
चिराग पासवान केंद्र सरकार का हिस्सा होते हुए भी उसके फैसलों पर लगातार सवाल उठा रहे हैं. दलितों और आरक्षण से जुड़े मुद्दों पर वो बिल्कुल चुप नहीं रहते हैं. यह हाल तब है, जब अभी कुछ समय पहले तक वो इस बात की मांग करते रहे हैं कि संपन्न दलितों को आरक्षण छोड़ देना चाहिए. वो जातिगत जनगणना का भी कुछ समय पहले तक समर्थन नहीं करते थे.
राजनीति की बदलती हुई हवा
दरअसल चिराग पासवान में आए इस बदलाव के पीछे है बदलती राजनीतिक हवा. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने आरक्षण और संविधान को मुद्दा बनाया. उनका कहना था कि अगर बीजेपी फिर सत्ता में आई तो वह बाबा साहब के बनाए संविधान को बदल देगी और आरक्षण खत्म कर देगी.चुनाव में यह मुद्दा काम कर गया. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत लाने में कामयाब नहीं हो पाई.इससे दलितों और वंचितों के मुद्दों की ताकत का एहसास चिराग पासवान को हुआ है.इसलिए वो दलितों के किसी मुद्दे पर चुप नहीं रहते हैं. उन्हें अगर अपनी ही सरकार के विरोध में आवाज उठानी पड़ती है तो भी वो पीछे नहीं रहते हैं.
चिराग का वोट बैंक भी दलित वर्ग ही है. तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी चिराग का वोट बैंक 5-6 फीसदी के बीच बना हुआ है. इतने बड़े वोट बैंक को कोई भी पार्टी नजरअंदाज नहीं कर सकती है. वहीं आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह चिराग लगातार बयान दे रहे हैं, उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि उनका वोट बैंक बढ़ भी सकता है. पिछले दो दिन चिराग पासवान सोशल मीडिया साइट एक्स पर लगातार ट्रेंड कर रहे थे. लोग उनके बयानों के लिए उनकी तारीफ कर रहे थे.
बिहार विधानसभा के चुनाव और चिराग पासवान
चिराग की इस सक्रियता का एक दूसरा पहलू अगले साल होने वाला बिहार विधानसभा का चुनाव भी है. वो इन बयानबाजियों से बीजेपी से एक बार अधिक से अधिक सीटें लेने की कोशिशें कर रहे हैं. लोजपा संसद में आरजेडी से बड़ी ताकत तो है, लेकिन विधानसभा में उसकी मौजूदगी न के बराबर है. ऐसे में चिराग चाहते हैं कि लोजपा बिहार विधानसभा में भी एक बड़ी ताकत बनकर उभरे.
रामविलास पासवान के निधन के बाद से बिहार और देश में दलित नेतृत्व में एक रिक्तता आई है. चिराग की नजर इस खाली जगह को भरने पर भी लगी हुई है. मायावती की पार्टी बसपा संसद में शून्य है.उसका जनाधार भी लगातार खिसक रहा है.ऐसे में चिराग को राष्ट्रीय राजनीति में दलित चेहरे के रूप में अपनी जगह भी दिखाई दे रहे हैं. चिराग इस दिशा में कदम भी बढ़ा रहे हैं. उनकी नजर बिहार के साथ-साथ पड़ोसी झारखंड में भी लगी हुई है. वहां इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. वो वहां भी बीजेपी से मोल-भाव कर सकते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए चिराग ने अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 25 अगस्त को रांची में बुलाई है.
क्या चिराग का विकल्प तलाश रही है बीजेपी
चिराग के इन कदमों से बीजेपी असहज है. ऐसे में वह बिहार में उनके विकल्प की तलाश कर रही है. चिराग के विकल्प के रूप में बीजेपी अपने प्रवक्ता गुरुप्रकाश पासवान को आगे बढ़ा सकती है.वो अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे डॉक्टर संजय पासवान के बेटे हैं. चिराग और गुरुप्रकाश एक ही जाति के हैं. ऐसे में गुरुप्रकाश पासवान वोटबैंक को भी साध सकते हैं, जो अभी चिराग पासवान के साथ बना हुआ है. खबरें हैं कि बीजेपी संजय और गुरुप्रकाश में से किसी एक को राज्य सभा भेज सकती है.
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