कोलकाता:
नन्हीं बालिका वधु दो बेटियों की मां बनने के बाद अब एक बार फिर अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए बेताब है और स्कूल जाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। सन्तना मुरमू का जब विवाह हुआ था तब वह 14 साल की थीं और आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। विवाह के चार साल बाद वह अब दो बेटियों की मां बन चुकी हैं।
पश्चिम बंगाल की यह निर्धन आदिवासी लड़की एक बार फिर पढ़ना चाहती है। इतना ही नहीं, वह बाल विवाह रोकने के लिए काम कर रही है और उसकी कहानियां साझा करने के लिए उसे पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में आमंत्रित भी किया गया था।
अपनी बेटियों को सास-ससुर तथा पति के पास छोड़कर सन्तना हर सुबह दक्षिण दिनाजपुर जिले के कुशमंडी गांव से तीन किलोमीटर का पैदल सफर तय कर मणिकोर हाईस्कूल जाती है। यह सिलसिला चार साल के अंतराल के बाद पिछले सप्ताह शुरू हुआ। सन्तना मुरमू की बड़ी बेटी वसुंधरा तीन साल की है और आंगनवाड़ी प्ले स्कूल जाती है।
पढ़ाई को लेकर उत्साहित सन्तना ने न्यूज एजेंसी भाषा को बताया, 'मैं बहुत रोमांचित हूं। कक्षा में सबसे ज्यादा उम्र की हूं और सब लोग मुझे बहुत सम्मान देते हैं। मैं टीचर बनकर अपने सपने पूरे करना चाहती हूं।' जिंदगी के इस नए सफर में सन्तना के पति गोबिन्द हेमराम और गैर-सरकारी संगठन 'चाइल्ड इन नीड इन्स्टीट्यूट' (सीआईएनआई) के सदस्य लगातार उनका साथ दे रहे हैं।
गोबिन्द मजदूरी करते हैं और पांचवी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ चुके हैं। उनका कहना है, 'मुझे उस पर गर्व है और यह एहसास भी है कि अगर हमारी शादी इतनी जल्द नहीं हुई होती तो उसका जीवन बेहतर होता। शिक्षा और स्वास्थ्य बहुत जरूरी हैं, इसलिए मैं उसका साथ दे रहा हूं।' बालिका वधु बनने से पहले सन्तना टीचर बनने का सपना देखती थीं। उनके पिता ने अपने बेटे को तो पढ़ाया, लेकिन बिटिया की बारी आई तो उनका रुख बदल गया।
सन्तना ने बताया, 'अचानक एक दिन मुझे कहा गया कि मेरा विवाह होने जा रहा है। तब मैं अपने विवाह को रोकने या पढ़ाई जारी रखने के लिए कुछ भी नहीं कर सकी। लेकिन अब मैंने अपने पति को मना लिया।' अब सन्तना नहीं चाहतीं कि और कोई बालिका वधु बने। इसलिए, वह बाल विवाह रोकने के लिए सक्रिय हैं। सन्तना ने सामाजिक दबाव बनाकर आदिवासी संथाली समुदाय की तीन लड़कियों का बाल विवाह रुकवा दिया। इस समुदाय में मासिक धर्म होने के बाद लड़कियों को विवाह योग्य मान लिया जाता है।
इसी दौरान सन्तना सीआईएनआई से जुड़ीं। उनके काम ने लोगों का ध्यान खींचा और पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्हें आमंत्रित किया गया। 'बाल विवाह पर रोक से मातृ मृत्यु रोकने' के बारे में सन्तना की कहानी संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुनी गई। अमेरिका में लोगों ने सन्तना की पढ़ाई के बारे में पूछा तो यह सवाल उन्हें गहराई तक चुभ गया। 'मुझे यह बताते हुए बुरी लगी कि मैं सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ी हूं। तब मैंने उनसे कहा कि अपने गांव जाने के बाद मैं फिर से पढ़ाई करूंगी। और मैंने यह किया भी।'
स्कूल में दाखिला लेना आसान नहीं था। सीआईएनआई के सुजॅय रॉय ने कहा 'शुरू में तो हेडमास्टर ने उसे मना ही कर दिया, लेकिन ब्लॉक डवलपमेंट ऑफिसर के हस्तक्षेप से यह संभव हो गया।' नौवीं कक्षा में पढ़ रही सन्तना के लिए कुछ लोगों की त्यौरियां भी तनीं, लेकिन उसने परवाह नहीं की। रॉय ने कहा, 'कुछ लोग उससे बहुत नाराज भी हुए क्योंकि उसने बाल विवाह की बरसों पुरानी परंपरा को चुनौती दी। लेकिन वह हतोत्साहित नहीं हुई।'
पश्चिम बंगाल की यह निर्धन आदिवासी लड़की एक बार फिर पढ़ना चाहती है। इतना ही नहीं, वह बाल विवाह रोकने के लिए काम कर रही है और उसकी कहानियां साझा करने के लिए उसे पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में आमंत्रित भी किया गया था।
अपनी बेटियों को सास-ससुर तथा पति के पास छोड़कर सन्तना हर सुबह दक्षिण दिनाजपुर जिले के कुशमंडी गांव से तीन किलोमीटर का पैदल सफर तय कर मणिकोर हाईस्कूल जाती है। यह सिलसिला चार साल के अंतराल के बाद पिछले सप्ताह शुरू हुआ। सन्तना मुरमू की बड़ी बेटी वसुंधरा तीन साल की है और आंगनवाड़ी प्ले स्कूल जाती है।
पढ़ाई को लेकर उत्साहित सन्तना ने न्यूज एजेंसी भाषा को बताया, 'मैं बहुत रोमांचित हूं। कक्षा में सबसे ज्यादा उम्र की हूं और सब लोग मुझे बहुत सम्मान देते हैं। मैं टीचर बनकर अपने सपने पूरे करना चाहती हूं।' जिंदगी के इस नए सफर में सन्तना के पति गोबिन्द हेमराम और गैर-सरकारी संगठन 'चाइल्ड इन नीड इन्स्टीट्यूट' (सीआईएनआई) के सदस्य लगातार उनका साथ दे रहे हैं।
गोबिन्द मजदूरी करते हैं और पांचवी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ चुके हैं। उनका कहना है, 'मुझे उस पर गर्व है और यह एहसास भी है कि अगर हमारी शादी इतनी जल्द नहीं हुई होती तो उसका जीवन बेहतर होता। शिक्षा और स्वास्थ्य बहुत जरूरी हैं, इसलिए मैं उसका साथ दे रहा हूं।' बालिका वधु बनने से पहले सन्तना टीचर बनने का सपना देखती थीं। उनके पिता ने अपने बेटे को तो पढ़ाया, लेकिन बिटिया की बारी आई तो उनका रुख बदल गया।
सन्तना ने बताया, 'अचानक एक दिन मुझे कहा गया कि मेरा विवाह होने जा रहा है। तब मैं अपने विवाह को रोकने या पढ़ाई जारी रखने के लिए कुछ भी नहीं कर सकी। लेकिन अब मैंने अपने पति को मना लिया।' अब सन्तना नहीं चाहतीं कि और कोई बालिका वधु बने। इसलिए, वह बाल विवाह रोकने के लिए सक्रिय हैं। सन्तना ने सामाजिक दबाव बनाकर आदिवासी संथाली समुदाय की तीन लड़कियों का बाल विवाह रुकवा दिया। इस समुदाय में मासिक धर्म होने के बाद लड़कियों को विवाह योग्य मान लिया जाता है।
इसी दौरान सन्तना सीआईएनआई से जुड़ीं। उनके काम ने लोगों का ध्यान खींचा और पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्हें आमंत्रित किया गया। 'बाल विवाह पर रोक से मातृ मृत्यु रोकने' के बारे में सन्तना की कहानी संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुनी गई। अमेरिका में लोगों ने सन्तना की पढ़ाई के बारे में पूछा तो यह सवाल उन्हें गहराई तक चुभ गया। 'मुझे यह बताते हुए बुरी लगी कि मैं सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ी हूं। तब मैंने उनसे कहा कि अपने गांव जाने के बाद मैं फिर से पढ़ाई करूंगी। और मैंने यह किया भी।'
स्कूल में दाखिला लेना आसान नहीं था। सीआईएनआई के सुजॅय रॉय ने कहा 'शुरू में तो हेडमास्टर ने उसे मना ही कर दिया, लेकिन ब्लॉक डवलपमेंट ऑफिसर के हस्तक्षेप से यह संभव हो गया।' नौवीं कक्षा में पढ़ रही सन्तना के लिए कुछ लोगों की त्यौरियां भी तनीं, लेकिन उसने परवाह नहीं की। रॉय ने कहा, 'कुछ लोग उससे बहुत नाराज भी हुए क्योंकि उसने बाल विवाह की बरसों पुरानी परंपरा को चुनौती दी। लेकिन वह हतोत्साहित नहीं हुई।'
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