नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ में तीन लोगों को मौत के घाट उतारने वाले हत्यारे की सजा की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है. इस मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को वैध ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा देश में मौत की सजा वैध है और उस पर विचार करने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा तभी दी जा सकती है, जब दोषी के सुधरने की कोई गुंजाईश न हो.
छत्तीसगढ़ में तीन लोगों की हत्या करने वाले 45 साल के छन्नू वर्मा ने हाइकोर्ट द्वारा दी गई फांसी की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए छन्नू वर्मा की फांसी की सजा को सही माना था. बता दें, पाटन ब्लाक के बोरिद गांव के रहने वाले छन्नू ने 19 अक्टूबर 2011 को रत्ना बाई(32 वर्षीय), उसके ससुर आनंदराम साहू (56 वर्षीय) और सास फिरंतिन बाई (55 वर्षीय) की चाकू से वार कर हत्या कर दी थी. जबकि पूर्व जिला पंचायत सदस्य मीरा बंछोर, उसके पति छन्नूलाल बंछोर व गेंदलाल वर्मा पर जानलेवा हमला कर घायल कर दिया था।
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इस मामले में मृतका रत्ना बाई के 9 साल के बेटे रोशन उर्फ सोनू की गवाही अहम थी. रोशन ने अपनी मां, दादी की हत्या होते देखी थी. पूर्व जिला पंचायत सदस्य मीरा बंछोर के घर जाकर उसे बताया था कि मां और दादी को छन्नू वर्मा ने मार डाला है. गौरतलब है कि छन्नू वर्मा के खिलाफ गांव की ही एक महिला के साथ बलात्कार का मामला दर्ज था. मृतकों व घायलों में से कुछ लोगों ने बलात्कार के मामले में छन्नू वर्मा के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी थी.
घटना के कुछ दिन पहले ही वह बलात्कार के आरोप से बरी होकर जेल से रिहा होकर गांव लौटा था. अपने खिलाफ गवाही देने से वह नाराज था और बदले की भावना से सुनियोजित ढंग से तीन लोगों की हत्या कर दी. वह गांव के रामस्वरूप को भी मारना चाहता था. लेकिन वह उसे नहीं मिला.
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