देश में पहली बार रासायनिक आपदाओं की घटनाओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक राष्ट्रीय निगरानी नेटवर्क बनाने का फैसला किया है. इसके तहत हर जिले में एक केमिकल इमरजेंसी रैपिड रिस्पांस टीम (RRT) बनाई जाएगी, जो रासायनिक हादसों, गैस रिसाव और जहरीले प्रदूषण जैसी घटनाओं की निगरानी करने के साथ त्वरित कार्रवाई करेगी.
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) और स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों के आधार यह निर्णय किया है जिसमें कहा गया है कि देश में केमिकल इमरजेंसी की घटनाओं से निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने की जरूरत है. एनसीडीसी ने प्रस्ताव दिया है कि इन घटनाओं को भी इंटीग्रेटेड हेल्थ इंफॉर्मेशन प्लेटफॉर्म (IHIP) से जोड़ा जाए, जिससे जहरीले केमिकल या गैस रिसाव से प्रभावित मामलों की रियल-टाइम निगरानी हो सके.
रैपिड रिस्पांस टीम को मिलेगी विशेष ट्रेनिंग
रैपिड रिस्पांस टीम को रासायनिक खतरे की पहचान, सुरक्षा उपकरणों का उपयोग, और जरूरी प्राथमिक इलाज देने की तकनीकी ट्रेनिंग दी जाएगी. इसमें स्वास्थ्य विभाग, पुलिस, दमकल, एंबुलेंस सेवाएं, आपदा प्रबंधन और पैरामेडिकल स्टाफ शामिल होंगे. यह टीम जरुरत पड़ने पर मौके पर जाएगी और पीड़ित को प्राथमिक इलाज दिलाने के साथ ही केमिकल सैंपल की जांच कर रिपोर्ट भी देगी.
मॉनिटरिंग सिस्टम ऐसे करेगा काम
सभी अस्पताल, लैब, जिला स्वास्थ्य दफ्तर, दमकल विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस नेटवर्क में शामिल किया जाएगा. हर जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त होंगे जो घटना की जानकारी और प्राथमिक इलाज की स्थिति के बारे में केंद्र को तुरंत जानकारी देंगे. यह सिस्टम छोटी से लेकर खतरनाक रासायनिक घटनाओं तक की निगरानी करेगा.
अस्पतालों में बनेंगे स्पेशल यूनिट्स
एनसीडीसी के अनुसार, अब हर जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज को अपना आपदा प्लान बनाना होगा. इसके तहत अस्पतालों में डिकॉन्टेमिनेशन (साफ-सफाई) क्षेत्र, आइसोलेशन वार्ड, प्रशिक्षित मेडिकल स्टॉफ और केमिकल ट्रीटमेंट किट रखी जाएंगी. साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कि कोई भी मरीज इमरजेंसी वार्ड में बिना डिकॉन्टेमिनेशन के न जाए. इसके अलावा हर अस्पताल में रासायनिक डेटा शीट और जरूरी दवाओं (एंटीडोट्स) की सूची रखी जाएगी ताकि मरीजों का तुरंत उपचार हो सके.
सरकार ने क्यों उठाया कदम?
देश में प्रति वर्ष 200 से ज्यादा गैस लीक और केमिकल हादसे होते हैं. कई बार स्थानीय प्रशासन के पास तुरंत प्रतिक्रिया देने की तैयारी नहीं होती, जिससे नुकसान बढ़ जाता है. ऐसे में सरकार चाहती है कि इस तरह कि घटनाओं से निपटने के लिए मजबूत स्वास्थ्य सुरक्षा तंत्र हो ताकि कुछ मिनटों में कार्रवाई की जा सके. एनसीडीसी की एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी, विशाखापत्तनम, गाजियाबाद, लुधियाना जैसी घटनाओं ने दिखाया कि ऐसा सिस्टम क्यों जरूरी है. ऐसे में सरकार ने यह फैसला किया है. इस निगरानी तंत्र के बनने से हादसों से जुड़ी मौतें और बीमारियां में कमी आएगी. साथ ही पीड़ित को तुरंत राहत भी मिलेगा.
भोपाल गैस त्रासदी के बाद से देश में अब तक 40 से अधिक बड़े केमिकल हादसे हुए हैं. साल 2023 में ही सात राज्यों से 100 से ज्यादा गंभीर एक्सपोजर केस दर्ज किए गए. वहीं, 2020–2023 के बीच देश में 800 से अधिक खतरनाक रासायनिक घटनाएं हुईं, जिनमें से औसत हर महीने 20 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक, लगभग 60% औद्योगिक क्षेत्र उच्च-जोखिम श्रेणी में आते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि हर साल प्रगतिशील देशों में रासायनिक जोखिमों से 20 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित होते हैं.
डिजिटल प्लेटफार्म से जुड़ेगा सिस्टम
एनसीडीसी भविष्य में इस सिस्टम को डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़ेगा ताकि देशभर की घटनाओं की जानकारी तुरंत मिल सके. हर बड़े हादसे के बाद जिले और राज्य की एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जिसमें बताया जाएगा कि क्या गलत हुआ और आगे कैसे सुधार किया जाए. यह रिपोर्ट एनसीडीसी और राज्य स्वास्थ्य विभागों को भेजी जाएगी जिससे राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत बदलाव किए जा सकें और भविष्य की तैयारी ज्यादा बेहतर तरीके से हो सके.
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