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This Article is From Jan 01, 2023

प्राचीन उपकरण में बदलाव ने दिखाई कश्मीरी महिलाओं को उम्मीद की किरण

मुजतबा कादरी महिला कताई प्रशिक्षण केंद्र की मालिक हैं और महिलाओं को नए चरखे देती हैं. उनके अनुसार, कुछ साल पहले शेरे-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय ने चरखे में बदलाव किए थे.

प्राचीन उपकरण में बदलाव ने दिखाई कश्मीरी महिलाओं को उम्मीद की किरण
सदियों पुराने चरखे को मोडिफाई करने के बाद शाएस्ता बिलाल जैसी 200 महिलाओं का जीवन बदल गया है.
श्रीनगर:

एक नाजुक पश्मीना धागा कश्मीर घाटी में सैकड़ों महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है. सदियों पुराने चरखे को मोडिफाई करने के बाद शाएस्ता बिलाल जैसी 200 महिलाओं का जीवन बदल गया है. शाएस्ता और इन जैसी महिलाओं की आय कताई के उत्पादन पर आधारित है. फुट पैडल वाले चरखे ने उनके काम को आसान बना दिया है. श्रीनगर के डाउनटाउन क्षेत्र में, शाएस्ता जैसी महिलाएं दुनिया की बेहतरीन सूत कात रही हैं और इस नए चरखे ने उन्हें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता दी है.

शाइस्ता बिलाल ने कहा, "इस नए चरखे ने हमें जीविकोपार्जन का साधन दिया है, ताकि हम आत्मनिर्भर हों. अल्लाह का शुक्र है कि हम अधिक कमा रहे हैं और हम किसी पर निर्भर नहीं हैं. अब मैं आर्थिक रूप से अपने पति पर निर्भर नहीं हूं." शाइस्ता को एक साल पहले श्रीनगर में एक पश्मीना शॉल व्यापारी ने यह नया चरखा और इसे चलाने का प्रशिक्षण दिया था. 

यह पहल पश्मीना शॉल के सदियों पुराने शिल्प की रक्षा और संरक्षण के प्रयास का हिस्सा है, जो नकली और मशीन से बने शॉल के बड़े पैमाने पर आक्रमण का सामना कर रहा है. सरकार ने बाजार में कश्मीरी शॉल के अद्वितीय चरित्र और मूल्य को बनाए रखने के लिए जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैगिंग भी शुरू की है. वर्षों से, कश्मीर घाटी में पश्मीना कताई करने वाली महिलाओं की संख्या में भारी कमी आ रही थी. मुख्य रूप से कम मजदूरी और पारंपरिक चरखे पर कम उत्पादन के कारण महिलाओं ने इसका काम छोड़ दिया था.

मुजतबा कादरी महिला कताई प्रशिक्षण केंद्र की मालिक हैं और महिलाओं को नए चरखे देती हैं. उनके अनुसार, कुछ साल पहले शेरे-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय ने चरखे में बदलाव किए थे. पारिवारिक शाल व्यवसाय चलाने वाली मुजतबा ने कहा, "शुरुआत में मैंने कुछ महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरू किया. जब हमने देखा कि हम इससे उत्पादन को दोगुना करने में सक्षम हो गए थे और इससे महिलाओं की आय भी दोगुनी हो गई, तो मैंने इस कार्यक्रम को चलाने का फैसला किया."

मुफ्त में नए चरखा देने के अलावा, मुजतबा कताई करने वाली महिलाओं को 15 दिन का प्रशिक्षण भी देती हैं. उन्होंने कहा, "हमारे केंद्र से पिछले एक साल में 200 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और हमने उन्हें मोडिफाई किया हुआ चरखा भी प्रदान किया है." इसी बीच, नुसरत बेगम कहती हैं कि नए चरखे का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित होने के बाद उनके लिए जीवन थोड़ा आसान हो गया है. फर्श पर बैठने से लेकर कुर्सी पर बैठने तक, कताई का उत्पादन भी दोगुना हो गया है. बेगम ने कहा, "इससे मुझे बहुत मदद मिली है. मैं पुराने चरखे पर तीन ग्राम सूत कातती थी. अब मैं छह ग्राम सूत कात सकती हूं."

सदियों से, कश्मीर की पश्मीना शॉल के प्रसिद्ध होने का रहस्य महिलाओं द्वारा कताई है. यह आगे बुनाई के लिए उस्ताद कारीगरों के पास जाता है. जटिल काम वाले कुछ शॉल बनाने में महीनों और यहां तक ​​कि एक साल भी लग जाते हैं. जबकि नया चरखा महिलाओं को अधिक सूत कातने और अधिक कमाने में मदद करता है. हालांकि, मजदूरी अभी भी कम है. एक गांठ के लिए, जो सूत के 10 धागे हैं, उन्हें 1.5 रुपये का भुगतान किया जा रहा है. महिलाएं इससे अधिक चाहती हैं. यासमीना ने कहा, "चरखा हमारे लिए बहुत उपयोगी है. हम कादरी साहब के आभारी हैं, क्योंकि उन्होंने हमें यह चरखा मुफ्त में दिया और हम इस पर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. हम घर पर काम करती हैं और दूसरों को भी प्रशिक्षित करती हैं. हमने उनसे अनुरोध किया कि हमारी मजदूरी बढ़ाई जाए." 

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