चिकित्सकों की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार गंभीर है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने NDTV से कहा है कि इसके लिए नया कानून बनाने की कोशिश शुरू की जा रही है. इसके लिए उन्होंने सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखे हैं. उन्होंने बताया कि मुजफ्फरपुर में विशेषज्ञों की एक नई टीम भेजी गई है.
बंगाल में डॉक्टरों की पिटाई के बाद शुरू हुए आंदोलन ने देशव्यापी शक्ल ले ली है. डॉक्टर मांग कर रहे हैं कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अलग क़ानून बनाया जाए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी अर्ज़ी डाली है. इस बीच सरकार नए क़ानून की संभावना पर विचार कर रही है.
क़रीब एक हफ़्ते बाद बंगाल के डॉक्टरों ने हड़ताल ख़त्म कर दी. इसके पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से उनकी लंबी बातचीत चली. ममता सरकार पहले ही उनकी मांगें मान चुकी है. लेकिन डॉक्टरों की सुरक्षा का सवाल अब भी बना हुआ है. रविवार रात एम्स के ट्रॉमी सेंटर से डॉक्टरों के साथ बदसलूकी की बात सामने आई.अब सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर नए क़ानून की संभावना देख रही है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा है कि हम डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नया कानून लाने के प्रस्ताव का अध्ययन कर रहे हैं. सन 2017 में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक कानून बनाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय में एक प्रयास हुआ था. एक अंतर संसदीय समिति भी बनी थी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक ड्राफ्ट भी स्वास्थ्य मंत्रालय को दिया था.
हर्षवर्धन ने कहा कि मैंने ममता समेत सभी मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी है. हम केंद्र में भी नए सिरे से नए कानून को लेकर अध्ययन की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मैंने डॉक्टरों से पहले ही दिन हड़ताल वापस लेने की अपील की थी. अब डॉक्टरों को फैसला करना है. वे निश्चित रूप से इस पर गंभीरता से विचार करेंगे.
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि मैं आज विशेषज्ञों की एक नई टीम मुजफ्फरपुर भेज रहा हूं. इसमें आईसीएमआर के विशेषज्ञ शामिल हैं.
दरअसल पश्चिम बंगाल में कई दिनों तक चली डाक्टरों की हड़ताल के बाद कई सांसद नए कानून की मांग कर रहे हैं. अधीर रंजन चौधरी, सांसद, कांग्रेस ने एनडीटीवी से कहा देश में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक नया कानून बनाना चाहिए. पश्चिम बंगाल में डॉक्टर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
जबकि बीजेपी के राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा ने एनडीटीवी से कहा -- "पूरे देश में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकारों को गाइडलाइन बनानी चाहिए. अभी सिर्फ 19 राज्यों में इस तरह की गाइडलाइन है."
लेकिन असली सवाल ये है कि अचानक ऐसा क्या हुआ है कि डॉक्टर असुरक्षित हो गए हैं? वजह एक तरफ अस्पतालों की कमी से डॉक्टरों पर बढ़ता बोझ है और दूसरी तरफ़ डॉक्टरी के पेशे में आई व्यावसायिकता है जिसने मरीज और डॉक्टर को आमने-सामने ला खड़ा किया है.
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