सरकार को कोशिशों के बावजूद देश में कोरोनावायरस (Coronavirus) संक्रमित लोगों को संख्या 50 लाख के पार जा चुकी है. कोरोना महामारी को रोकने में सरकार की नाकामी और उसकी रणनीति पर कई सवाल खड़े हो रहे रहे हैं. बुधवार को राज्य सभा में कोरोना पर चर्चा के दौरान स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन (Health Minister Harshvardhan) को विपक्ष के कई तीखे सवाल झेलने पड़े. विपक्ष ने माइग्रेंट वर्कर्स की डेथ पर संसद में आंकड़े पेश करने में श्रम मंत्री की विफलता पर भी सवाल उठाये.
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तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, स्वास्थ्य पर खर्च किए गए प्रत्येक सौ रुपये के लिए सार्वजनिक व्यय, 63 रुपये राज्य सरकार द्वारा खर्च किए जाते हैं, 37 रुपये केंद्र द्वारा खर्च किए जाते हैं और समस्या यह है कि जब चीजें अच्छी हो रही हैं तो आप क्रेडिट लेना चाहते हैं. यदि नहीं तो आप मुख्यमंत्री और बुलडोजर के बारे में बात करना शुरू करते हैं ?
बीजेपी के नेता विनय सहस्रबुद्धे ने राज्य सभा में कहा, ''प्रधानमंत्री और कैबिनेट सचिव ने कम से कम 15 बार राज्य सरकारों से कंसल्ट किया लॉकडाउन के बारे में... किसी भी मुख्यमंत्री ने यह नहीं कहा कि लॉकडाउन नहीं लगना चाहिए.''
बीजेडी के नेता प्रसन्ना आचार्य ने कहा, ''कई राज्य वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं. बहुत सारे जीएसटी मुआवजा फंड और अन्य बकाया केंद्र के पास लंबित हैं. मैं केंद्र से राज्यों को सभी बकाया राशि तुरंत हटाने की अपील करता हूं.''
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कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने महामारी को रोकने कि सरकार की रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहा, ''सिर्फ 4 घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन लगाने से आम लोगों को काफी तकलीफ हुई, सरकार की रणनीति सही होती तो कोरोना गांवों तक नहीं पहुंचता.'' विपक्ष के उपनेता आनंद शर्मा आगे कहा, "जिस तरह से संसद में यह कहा गया कि कितने माइग्रेंट वर्कर्स की डेथ हुई इसके आंकड़े नहीं हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. आपके पास आंकड़े क्यों नहीं है? हर प्रभावित माइग्रेंट वर्कर को मुआवजा दिया जाना चाहिए.''
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उधर श्रम मंत्री संतोष गंगवार कोरोना संकट के दौरान कितने प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई इस पर सरकार के पास आंकड़ा ना होने की बात पर कायम हैं. श्रम मंत्रालय का दावा है कि म्युनिसिपल अथॉरिटीज डेथ और बर्थ के आकड़ें जिला में इकठ्ठा करती हैं लेकिन उनके पास जो मैकेनिज्म है उसमें प्रवासी मज़दूरों की डेथ की जानकारी अलग से इकठ्ठा करने का कोई प्रावधान नहीं है. इसीलिए इस मसले पर श्रम मंत्रालय को मंशा पर सवाल उठाना गलत होगा. अब सबकी नजर स्वाथ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन पर है जो गुरुवार को संसद में कोरोना संकट पर सरकार का रूख साफ़ करेंगे.
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