प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने बीते चार सालों में सोशल मीडिया के जरिए आम लोगों की जासूसी कराने की कोशिश की. इसका खुलासा एनडीटीवी की पड़ताल में हुआ है. पड़ताल में पता चला है कि सरकार ने 2014 से 2018 के बीच कुल 7 बार ऐसा करने की कोशिश. इसके लिए बकायदा निजी फर्म से संपर्क भी किया गया. इसी साल मई मे आई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार ने 25 अप्रैल 2018 को एक ऐसा ही टेंडर निकाला था जिसे सुप्रीम कोर्ट के हस्तेक्षेप के बाद रद्द कर दिया गया.
यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथिरिटी ऑफ इंडिया द्वारा सोशल मीडिया को मॉनिटर करने के लिए इसी तरह के एक प्रयास 18 जुलाई 2018 को सभी के सामने आया. हालांकि इस कोशिश को भी सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया. इस मामले की पहली सुनवाई इसी शुक्रवार को पूरी गई गई है.गौरतलब है कि एनडीटीवी ने अपनी जांच में पाया कि इस तरह के फर्म से केंद्र सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद ही संपर्क करना शुरू कर दिया था. इसे लेकर पहला टेंडर 1 दिसंबर 2014 को निकाला गया. यह टेंडर विदेश मंत्रालय ने जारी किया था. और इसके साथ ही स्पेशल मीडिया मॉनिटरिंग फोल्डर बनाने की भी बात कही गई थी.
जबकि दूसरा टेंडर 3 दिसंबर 2015 को निकाला गया. इस बार टेंडर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जारी किया था. इसमें व्यक्तिगत सोशल मीडिया एकाउंट और यूजर की मॉनिटरिंग करने को कहा गया था.
इसी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आगे चलकर दो और टेंडर जारी किए. पहला टेंडर 5 फरवरी 2016 और दूसरा 10 जुलाई 2017 को जारी किया गया. 5 फरवरी को जारी किए गए टेंडर में लिसनिंग टूल जबकि 10 जुलाई के टेंडर में सोशल मीडिया पर चल रहे ओवर ऑल ट्रेंड्स को ट्रैक करने की बात कही गई.
जबकि 16 मई 2016 को जारी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के टेंडर निगेटिव सेंटिमेंट्स को न्यूट्रलाइज करने को कहा गया था.
खास बात यह है कि जब एनडीटीवी ने इन टेंडर को लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से संपर्क किया तो मंत्रालय के मीडिया एंड कम्यूनिकेशन डिविजन के डिप्टी डायरेक्टर अरुण कुमार ने कहा कि हम आपके सवालों को वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा देंगे और अगर उन्होंने इन सवालों पर कोई जवाब दिया तो इसकी सूचना आपको दे दी जाएगी. जानकारों का कहना है कि हालांकि अब सरकार खुदको पीछे कर लिया है लेकिन इसके बावजूद भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकान ने बड़े स्तर पर लोगों की जासूसी कराने की कोशिश की.
इंटरनेट पॉलिसी की जानकार अंबा काक ने कहा कि इस तरह का एक उपकरण निश्चित रूप से सभी के सोशल मीडिया खातों का सर्वेक्षण करता है, लेकिन दो बड़े प्रश्न हैं. पहला तो यह कि वह इसे कैसे करते. खासकर तब जब अगर वो आम लोगों के निजी पोस्ट को देखते. अगर वह ऐसा करते तो निश्चित तौर पर वह सोशल मीडिया सर्विस के नियमों का उल्लंघन करते.
यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथिरिटी ऑफ इंडिया द्वारा सोशल मीडिया को मॉनिटर करने के लिए इसी तरह के एक प्रयास 18 जुलाई 2018 को सभी के सामने आया. हालांकि इस कोशिश को भी सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया. इस मामले की पहली सुनवाई इसी शुक्रवार को पूरी गई गई है.गौरतलब है कि एनडीटीवी ने अपनी जांच में पाया कि इस तरह के फर्म से केंद्र सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद ही संपर्क करना शुरू कर दिया था. इसे लेकर पहला टेंडर 1 दिसंबर 2014 को निकाला गया. यह टेंडर विदेश मंत्रालय ने जारी किया था. और इसके साथ ही स्पेशल मीडिया मॉनिटरिंग फोल्डर बनाने की भी बात कही गई थी.
जबकि दूसरा टेंडर 3 दिसंबर 2015 को निकाला गया. इस बार टेंडर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जारी किया था. इसमें व्यक्तिगत सोशल मीडिया एकाउंट और यूजर की मॉनिटरिंग करने को कहा गया था.
इसी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आगे चलकर दो और टेंडर जारी किए. पहला टेंडर 5 फरवरी 2016 और दूसरा 10 जुलाई 2017 को जारी किया गया. 5 फरवरी को जारी किए गए टेंडर में लिसनिंग टूल जबकि 10 जुलाई के टेंडर में सोशल मीडिया पर चल रहे ओवर ऑल ट्रेंड्स को ट्रैक करने की बात कही गई.
जबकि 16 मई 2016 को जारी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के टेंडर निगेटिव सेंटिमेंट्स को न्यूट्रलाइज करने को कहा गया था.
खास बात यह है कि जब एनडीटीवी ने इन टेंडर को लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से संपर्क किया तो मंत्रालय के मीडिया एंड कम्यूनिकेशन डिविजन के डिप्टी डायरेक्टर अरुण कुमार ने कहा कि हम आपके सवालों को वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा देंगे और अगर उन्होंने इन सवालों पर कोई जवाब दिया तो इसकी सूचना आपको दे दी जाएगी. जानकारों का कहना है कि हालांकि अब सरकार खुदको पीछे कर लिया है लेकिन इसके बावजूद भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकान ने बड़े स्तर पर लोगों की जासूसी कराने की कोशिश की.
इंटरनेट पॉलिसी की जानकार अंबा काक ने कहा कि इस तरह का एक उपकरण निश्चित रूप से सभी के सोशल मीडिया खातों का सर्वेक्षण करता है, लेकिन दो बड़े प्रश्न हैं. पहला तो यह कि वह इसे कैसे करते. खासकर तब जब अगर वो आम लोगों के निजी पोस्ट को देखते. अगर वह ऐसा करते तो निश्चित तौर पर वह सोशल मीडिया सर्विस के नियमों का उल्लंघन करते.
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