दस मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए अब मैदान तैयार हो चुका है. तीनों प्रमुख दलों बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के उम्मीदवारों की सूची का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इन्हें तय करने में तीनों ही दलों ने जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने सबसे ज्यादा टिकट लिंगायत और फिर वोक्कालिंगा समुदाय को दिए. जबकि जेडीएस ने वोक्कालिंगा को सबसे अधिक टिकट दिए हैं.
बीजेपी ने किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया. कांग्रेस ने 15 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं और जेडीएस ने बीस. हालांकि सवाल यह भी है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की छवि और लाभार्थी की उनकी राजनीति जातिगत समीकरणों पर भारी पड़ेगी?
जातीय समीकरण साधने में जुटी तीनों पार्टियों किस तरह ने उम्मीदवारों का चयन किया है? दलों का लिंगायत-वोक्कालिगा पर पूरा फ़ोकस है. टिकट बांटने में जातीय समीकरण का ध्यान रखा गया है. इस बार भी लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय पर ही पूरा फोकस है.
बीजेपी के कुल 30% उम्मीदवार लिंगायत समुदाय के हैं. कर्नाटक में करीब 17% लोग लिंगायत समुदाय के हैं. जेडीएस ने सबसे ज़्यादा 22% टिकट वोक्कालिगा समुदाय को दिए हैं. कांग्रेस ने 23% टिकट लिंगायत और 20% वोक्कालिंगा को दिए हैं. बीजेपी ने यूपी, गुजरात की तरह कर्नाटक में भी किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. कांग्रेस ने 13% मुस्लिम आबादी वाले कर्नाटक में 7% टिकट मुसलमानों को दिए हैं.
साल 2018 में बीजेपी ने 25% से ज़्यादा आबादी वाली 78 लिंगायत सीटों में से 37 सीटें जीती थीं. 2018 में बीजेपी वोक्कालिंगा की 44 सीटों में से सिर्फ 12 सीटें जीत पाई थी. वोक्कालिंगा बहुल सीटों में सेंध लगाना बीजेपी के लिए चुनौती है. जेडीएस का प्रदर्शन अपने कोर वोटर वोक्कालिंगा पर ही निर्भर है. 2018 में जेडीएस ने वोक्कालिंगा की 44 सीटों में से 37.1% वोटों के साथ 22 सीटें जीती थीं.
बीजेपी ने लिंगायत समुदाय के 68 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं. कांग्रेस के 51 और जेडीएस के 23 उम्मीदवार लिंगायत समाज से हैं. वोक्कालिंगा की बात करें तो इस समुदाय के बीजेपी के 224 में से 42 उम्मीदवार, कांग्रेस के 45 और जेडीएस के 37 उम्मीदवार हैं. जेडीएस का सबसे बड़ा आंकड़ा इसी समुदाय का है.
अनुसूचित जाति के बीजेपी ने 38, कांग्रेस ने 36 और जेडीएस ने 31 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. अनुसूचित जनजाति समुदाय से बीजेपी के 17, कांग्रेस के 16 और जेडीएस के 12 प्रत्यशी हैं. मुस्लिम उम्मीदवारों की बात करें तो कांग्रेस के 15 और जेडीएस के 20 उम्मीदवार इस समुदाय से हैं. बीजेपी ने किसी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया है.
जाति-धर्म और उनकी आबादी के आधार पर टिकटों के बंटवारे को देखें तो कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17 प्रतिशत है. इस समुदाय को बीजेपी ने 30 प्रतिशत, कांग्रेस ने 23 और जेडीएस ने 14 प्रतिशत सीटों पर उम्मीदवारी दी है. वोक्कालिंगा की आबादी 12 प्रतिशत है. बीजेपी के इस समुदाय से 19 प्रतिशत, कांग्रेस के 20 प्रतिशत और जेडीएस के 22 प्रतिशत उम्मीदवार हैं. राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 17 प्रतिशत है. बीजेपी के 17 प्रतिशत, कांग्रेस के 16 और जेडीएस के 19 प्रतिशत उम्मीदवार अनुसूचित जाति के हैं. अनुसूचित जनजाति की आबादी 7 प्रतिशत है. बीजेपी के इस समुदाय के 8, कांग्रेस के 7 और जेडीएस के 7 फीसदी उम्मीदवार हैं. कर्नाटक में मुस्लिम आबादी 13 प्रतिशत है. बीजेपी का मुस्लिम समुदाय का कोई उम्मीदवार नहीं है. कांग्रेस के 7 प्रतिशत और जेडीएस के 12 प्रतिशत मुस्लिम उम्मीदवार हैं. यह विश्लेषण जेडीएस के 224 में से 167 उम्मीदवारों का ही है.
साल 2018 के चुनाव परिणाम में राज्य की 78 लिंगायत बहुल सीटों पर नजर डालें तो बीजेपी ने 2018 में लिंगायत की 47 सीटें जीती थीं और इन पर 42.5% वोट हासिल किए थे. कांग्रेस को 25 सीटें और 38.6% वोट मिले थे. जेडीएस और बीएसपी ने 5 सीटें जीती थीं और 10.6% वोट हासिल किए थे. अन्य ने लिंगायत की एक सीट जीती थी और 8.3% वोट प्राप्त किए थे.
साल 2018 के चुनाव में वोक्कालिंगा समुदाय के प्रभाव वाली 44 सीटों के नतीजों में बीजेपी को 12 सीटें और 23.6% प्रतिशत मत मिले थे. कांग्रेस को 10 सीटें और 33.5% वोट, जेडीएस और बीएसपी को 22 सीटें और 37.1% वोट एवं अन्य को कोई सीट नहीं मिली थी, हालांकि 5.8% वोट मिले थे.
लिंगायत समुदाय में कई उपजातियां हैं. इस बार चुनाव में इन उपजातियों के आधार पर उतारे गए उम्मीदवारों को देखें तो पंचमसाली के बीजेपी ने 18 और कांग्रेस ने 14 उम्मीदवार उतारे हैं. सदरू के बीजेपी के 11, कांग्रेस के 7, वीराशैवा के बीजेपी के 8, कांग्रेस के 3, बनजिगा के बीजेपी के 7, कांग्रेस के 4, अन्य उपजातियों के बीजेपी के 24 और कांग्रेस के 18 उम्मीदवार हैं.
तीनों पार्टियों ने जातिगत समीकरणों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कर्नाटक में जाति का फैक्टर महत्वपूर्ण है. लिंगायत में भी कई उपजातियां हैं. इन्हें टिकट देने में किन पैमानों का ध्यान रखा गया है.
एनडीटीवी के डिप्टी एडिटर-साउथ नेहाल किदवई ने कहा कि, जब उम्मीदवारों का चयन किया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा आबादी किस समुदाय की है. यह भी ध्यान रखा जाता है कि उस आबादी को समर्थन देने वाली कौन सी जाति है. उसी के आधार पर टिकटों का बंटवारा होता है.
BQ प्राइम के एग्ज़ीक्यूटिव एडिटर वीर राघव ने कहा कि, 1990 के बाद से कांग्रेस ने कुछ सीटों पर कम्पीट करना ही छोड़ दिया है. जैसे हुगली धारवाड़ की जगदीश शेट्टार की सीट है. कांग्रेस चाहती है कि वह इन सीटों पर वापस जोर लगाए.
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