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NDTV EXCUSIVE: सरकार ने अचानक क्यों लिया जाति जनगणना का फैसला, पूरी इनसाइड स्टोरी पढ़िए

जाति जनगणना कराने को लेकर सरकार का कहना है कि ओबीसी की संख्या बढ़ने पर सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की 27% सीमा बढ़ाने पर विचार हो सकता है...

केंद्र सरकार ने रणनीति के तहत जाति जनगणना कराने का किया है ऐलान

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार का जाति जनगणना कराने का फैसला कोई जल्दबाजी में लिया गया फैसला नहीं, बल्कि एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. सूत्रों के अनुसार सरकार ने यह फैसला कई फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए लिया है. आला सरकारी सूत्रों से एनडीटीवी को मिली जानकारी के अनुसार 2029 में महिला आरक्षण लागू करना, बिहार विधानसभा चुनाव में संदेश देना, मुस्लिम समुदाय में पिछड़ों की पहचान करना और विपक्ष के हाथ से मुद्दा छीनना भी सरकार का मकसद है. बताया जा रहा है कि सरकार ने यह फैसला परिसीमन को ध्यान में रखकर भी किया है. सरकार जाति जनगणना के फैसले से पहलगाम आतंकी हमले से ध्यान हटाने की कोशिश नहीं कर रही है. 

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सूत्रों के अनुसार जाति जनगणना की प्रश्नावली में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए जाएंगे. जनगणना में पूछे जाने वाले प्रश्नों में धर्म के अलावा जाति का कॉलम भी जोड़ा जाएगा. यह कॉलम भरना सभी धर्मों के अनुयाइयों के लिए अनिवार्य होगा. इनमें Enumerators (एन्यूमेरेटेर) या गिनती करने वाले मुस्लिम धर्म के मतावलंबियों से भी उनकी जाति पूछी जाएगी. गौरतलब है कि मुसलमानों में भी पसमांदा माने जाने वाली कई पिछड़ी जातियां हैं. इस बार की जनगणना में मुसलमानों की सामाजिक स्थिति और जाति व्यवस्था को भी सामने लाया जाएगा. इसके आधार पर पिछड़े मुस्लिमों के लिए आरक्षण की मांग उठाई जा सकती है, लेकिन चूंकि संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है, लिहाजा यह मांग स्वीकार नहीं की जा सकती. 

टाइमिंग पर भी सवाल

राजनीतिक हलकों में जाति जनगणना के फैसले की टाइमिंग को लेकर हैरानी है. पूछा जा रहा है कि एक ऐसे वक्त जब सारा देश सांसें रोककर पहलगाम आतंकी हमले के गुनहगारों को सजा देने का इंतजार कर रहा है, सरकार ने अचानक जाति जनगणना का फैसला क्यों कर लिया. इस पर आला सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह फैसला अचानक नहीं हुआ बल्कि इस पर पिछले कई महीनों से काम चल रहा था. बीजेपी ने अपने मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों को इस बारे में आगाह कर दिया था. सरकार के नेतृत्व की ओर से भी जाति जनगणना कराने के संकेत सार्वजनिक रूप से दे दिए गए थे. 

दरअसल, सरकार का मकसद है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने के फैसले को लागू कर दिया जाए. वहीं परिसीमन पर लगा फ्रीज अगले साल हटने जा रहा है और उसके बाद परिसीमन आयोग का गठन होगा. आयोग को काम करने के लिए जनसंख्या के आंकड़ों की दरकार होगी और यह काम बिना जनगणना के नहीं हो सकेगा. परिसीमन आयोग देश भर का दौरा करेगा और जनता से सुझाव आमंत्रित करेगा. उसी के आधार पर नई लोकसभा सीटों के गठन और उनकी संख्या बढ़ाने के बारे में फैसला होगा.

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परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू हो सकेगा. सरकार की गणना बताती है कि 2029 की डेडलाइन को पूरा करने के लिए जरूरी है कि जनगणना का काम शुरू किया जाए. वैसे तो 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण दशक आधा निकल जाने के बाद इस काम ने गति पकड़ी है. 

कैसे होगी जनगणना

सूत्रों के अनुसार अगले दो से तीन महीनों में जनगणना का काम शुरू हो जाएगा. राज्यों में अधिकारियों की डेपुटेशन पर नियुक्ति की प्रक्रिया जल्दी ही प्रारंभ हो जाएगी. नियम के अनुसार जनगणना का काम पंद्रह दिन में पूरा किया जाता है. इस बार डिजिटल तरीके से जनगणना होगी. इसके लिए ऐप आधारित व्यवस्था होगी। एन्यूमैरेटर को स्मार्टफोन दिए जाएंगे जिनके माध्यम से वे जवाबों की रिकॉर्डिंग करेंगे. ऐप को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा और उनका वैरीफिकेशन भी किया जाएगा, ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोका जा सके. इस बार जनगणना करते समय बायोमेट्रिक रिकॉर्ड भी रखा जाएगा और अत्याधुनिक तकनीक जिनमें एआई भी शामिल है, उनका इस्तेमाल होगा.

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आंकड़े जुटाने के बाद विश्लेषण और रिपोर्ट बनाने का काम शुरू होगा

आंकड़ों के विश्लेषण में एक-दो साल का समय लग सकता है. उसी के बाद भारत की जनसंख्या की विस्तृत रिपोर्ट सामने आएगी, जिनमें आजादी के बाद पहली बार जातिवार आंकड़े भी दिए जाएंगे. जातियों की गिनती की व्यवस्था के लिए विभिन्न पैमाने तय किए जाने हैं. केंद्र और राज्यों की अधिसूचना में दी गईं जातियों का रिकॉर्ड लिया जाएगा. अंतरजातीय विवाहों और उनकी संतानों तथा ऐसे लोग जो जातियां नहीं बताना चाहते हैं, उनके रिकॉर्ड का भी इंतजाम किया जाएगा. सरकार चाहती है कि यह काम पूरी पारदर्शिता से हो. जनगणना महापंजीयक का बजट बढ़ाया जाएगा. यह अभी 574.80 करोड़ रुपये है, लेकिन पूरक बजट के जरिए आवंटन बढ़ेगा.
 

रिपोर्ट आने के बाद क्या होगा

बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक में जातियों की संख्या गिनने के लिए सर्वेक्षण कराए गए थे. संविधान के अनुसार जनगणना का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है, लिहाजा राज्यों ने केवल सर्वे किए. इन राज्यों में सर्वे के आधार पर ओबीसी की संख्या 1931 की तुलना में काफी अधिक बताई गई है. अगर जाति जनगणना में भी यह संख्या अधिक निकलती है तो जाहिर है आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने की मांग उठेगी.  सरकार का कहना है कि ओबीसी की संख्या बढ़ने पर सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की 27% सीमा बढ़ाने पर विचार हो सकता है. इसके लिए वही फॉर्मूला इस्तेमाल हो सकता है जो आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10% आरक्षण देते समय लागू किया गया यानी सीटों की संख्या बढ़ाना. हालांकि 50 प्रतिशत की सीलिंग को पार करने के बारे में अभी कोई विचार नहीं है, क्योंकि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले आए हैं.

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एक दूसरा मुद्दा आरक्षण के भीतर आरक्षण देने का है
 

ओबीसी के उपवर्गीकरण पर जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट आ चुकी है, लेकिन सरकार ने उस पर अभी तक कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन जातीय जनगणना के बाद रोहिणी आयोग की रिपोर्ट पर विचार किया जा सकेगा. सरकार जाति जनगणना को लेकर विपक्ष के सुझावों का स्वागत करेगी. वह उनसे विचार-विमर्श करने को भी तैयार है. लेकिन जातीय जनगणना पर राहुल गांधी का तेलंगाना फॉर्मूला खारिज कर दिया गया है. यह फॉर्मूला ओबीसी और एससी एसटी वर्ग की सुरक्षा के लिए खतरनाक माना गया है, जिसमें जाति पूछने के साथ-साथ काम की जगह भी पूछी गई है. 
 

सियासी समीकरण भी सधेंगे
 

सरकार को लगता है कि जाति जनगणना से राजनीतिक समीकरण भी साधे जा सकेंगे. बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और जाहिर है तब तक जाति जनगणना नहीं हो सकेगी. लेकिन यह एक बड़ा मुद्दा रहेगा और विपक्षी आरजेडी कांग्रेस गठबंधन को इस पर राजनीति करने और एनडीए को कठघरे में खड़ा करने का मौका नहीं मिलेगा. एनडीए को इससे फायदा मिल सकता है, क्योंकि जाति जनगणना पर सबसे बड़ी पहल नीतीश कुमार ने ही की थी. इसी तरह जातीय जनगणना के फैसले से डिलिमिटेशन पर इंडिया गठबंधन में भी दरार आ सकती है. 
 

उत्तर बनाम दक्षिण की बहस इंडिया गठबंधन में भी छिड़ सकती है

गौरतलब है कि दक्षिण के राज्य डिलिमिटेशन को टालने के पक्ष में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण के उनके उपायों के कारण उनकी सीटें कम हो सकती हैं, जबकि उत्तर भारत के राज्यों को अधिक आबादी के कारण अधिक सीटों का फायदा मिल सकता है. लेकिन सरकार का आकलन है कि इससे इंडिया गठबंधन के दलों में ही मतभेद बढ़ेगा, क्योंकि जाति जनगणना में उत्तर भारतीय राज्यों में ओबीसी की संख्या अधिक आ सकती है और इससे उनकी अधिक राजनीतिक नुमाइंदगी की मांग जोर पकड़ेगी. लिहाजा जहां इंडिया गठबंधन के उत्तर भारतीय दल अधिक सीटों की मांग करेंगे, वहीं दक्षिण भारतीय राज्य परिसीमन की कवायद को टालने की मांग पर कायम रहेंगे.

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सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जातीय जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभा में एससी एसटी आरक्षण की ही तरह ओबीसी के भी राजनीतिक आरक्षण की मांग उठाई जा सकती है. लेकिन यह मांग पूरी कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि संविधान में केवल एससी एसटी के राजनीतिक आरक्षण का ही प्रावधान किया गया है. वहीं निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग उठाई जा सकती है, लेकिन यह मांग बेमानी है. मनमोहन सिंह सरकार के समय भी निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग उठाई गई थी, लेकिन इसका प्राइवेट सेक्टर ने इसका विरोध किया था. कांग्रेस ने हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 15(5) का मुद्दा उठाया है, लेकिन सरकारी सूत्रों के अनुसार यह निजी शैक्षणिक संस्थानों के बारे में है और यह पहले से लागू है. 

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