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This Article is From May 09, 2024

क्या वाकई हरियाणा में नायब सरकार गिरा सकते हैं दुष्यंत चौटाला? नियम समझिए

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नायब सरकार (Haryana Political Crisis) को सरकार बचाए रखने के लिए 45 विधायकों की जरूरत है, जब कि उनके पास 43 विधायक हैं. इस तरह से ये तो साफ है कि उनकी सरकार अल्पमत में हैं, क्यों कि विपक्ष के पास 45 विधायक हैं और सरकार के पास सिर्फ 43 विधायक हैं .

क्या वाकई हरियाणा में नायब सरकार गिरा सकते हैं दुष्यंत चौटाला? नियम समझिए
हरियाणा में राजनीतिक संकट.
नई दिल्ली:

हरियाणा में इन दिनों राजनीतिक रस्साकसी (Haryana Political Crisis) लगातार जारी है. पिछले कुछ समय पहले जेजेपी से अलग हुई हरियाणा की बीजेपी सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. तीन निर्दलीय विधायकों ने नायब सैनी सरकार (Nayab Saini Government) से समर्थन वापस ले लिया है, जिसके बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई है और सरकार गिरने का खतरा गहरा गया है. उधर हरियाणा में कभी बीजेपी की सहयोगी पार्टी रही जेजेपी के दुष्यंत चोटाला ने कांग्रेस को बीजेपी नायब सरकार गिराने का खुला ऑफर दे दिया है. दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि अगर कांग्रेस हरियाणा की बीजेपी सरकार गिराती है तो वह उसको बाहर से पूरा समर्थन देंगे.

चौटाला का कहना है कि नायब सरकार गिरने के लिए वह विपक्ष का साथ देने का लिए तैयार हैं. इसके बाद राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के जहन में एक ही सवाल चल रहा है कि क्या दुष्यंत चौटाला वाकई में नायब सरकार गिराने की ताकत रखते हैं. इस सवाल के जवाब आपको बारीकी से समझना होगा. 

दुष्यंत चौटाला के कहे मुताबिक, अगर वह कांग्रेस को नायब सरकार गिराने के लिए बाहर से समर्थन देते हैं और उनके सभी 10 विधायक इसमें उनका साथ दें, और दो अन्य निर्दलीय भी उनके साथ आ जाएं, तब ही नायब सरकार को गिरा पाना चौटाला के लिए संभव हो सकेगा. क्यों कि कांग्रेस के पास फिलहाल 30 विधायक+ 10 विधायक जेजेपी+ 3 बीजेपी से समर्थन वापस लेने वाले निर्दलीय+ 2 अन्य निर्दलीय, ये सभी मिल जाएं, तब ही दुष्यंत चटाला का ये सपना पूरा हो सकेगा.

दरअसल सरकार बनाने के लिए किसी भी दल के पास 45 विधायक होने जरूरी हैं. लेकिन बीजेपी दावा कर रही है कि जेजेपी के 6 असंतुष्ट विधायक उनके साथ हैं. अगर वाकई ऐसा है तो चौटाला का संख्या बल कम हो जाएगा और नायब सरकार को गिराने का उनका सपना अधूरा ही रह जाएगा. 

समझना ये भी जरूरी है कि नियमों के मुताबिक, हरियाणा सरकार को अल्पमत साबित करने के लिए विपक्षी दलों को सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा. लेकिन बड़ी बात ये है कि कांग्रेस मार्च में हरियाणा विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाई थी, ऐसे में तकनीकी तौर पर अभी विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ नहीं लाया जा सकता,  क्यों कि दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच कम से कम 180 दिन का गेप होना जरूरी होता है. इसके हिसाब से 6 महीने तक सैनी सरकार पर कोई खतरा नहीं है. वह आगामी विधानसभा चुनाव तक आसानी से सरकार चला सकेगी.

ये है हरियाणा विधानसभा में नंबरों का गणित

हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की मौजूदा क्षमता 88 है. विधानसभा में बीजेपी के 40, कांग्रेस के 30 और जेजेपी के 10, 6 निर्दलीय, 1 विधायक इनोले और 1 विधायक हरियाणा लोकहित पार्टी से है. विधानसभा में दो सीटें अभी खाली हैं, जिस पर 25 मई को उपचुनाव होना है. नायब सिंह सैनी सरकार के पास बहुमत से दो विधायक कम हैं. नायब सैनी सरकार को दो अन्य निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने अब समर्थन वापस लेते हुए सरकार का साथ छोड़ दिया है. 

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नायब सरकार के पास सरकार बचाए रखने के लिए 45 विधायकों की जरूरत है, जब कि उनके पास 43 विधायक हैं. इस तरह से ये तो साफ है कि उनकी सरकार अल्पमत में हैं, क्यों कि विपक्ष के पास 45 विधायक हैं और सरकार के पास सिर्फ 43 विधायक हैं .ऐसे हालात में विपक्ष राज्यपाल से मिलकर उनको विधानसभा की मौजूदा हालात की जानकारी दे सकता है. इसके साथ ही विपक्ष फ्लोर टेस्ट की मांग करते हुए सत्र बुलाए जाने की मांग की उठा सकता है. हरियाणा के मौजूदा हालात में सबसे अहम भूमिका राज्यपाल की ही होगी. 

...सिर्फ तब ही गिर सकेगी नायब सरकार

वहीं सवाल ये भी उठ रहा है कि विपक्षी दल कांग्रेस राज्यपाल के पास क्यों नहीं जा रही है. तो इस सवाल का जवाब यह है कि राजभवन जाने के लिए कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या बल होना चाहिए. हरियाणा विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 45 है, लेकिन कांग्रेस के पास अपने 30 ही विधायक हैं, जब दुष्यंत चौटाला के कहे मुताबिक, उनकी जेजेपी और इनेलो के साथ सहमति बन जाएगी और उनके पास लिखित रूप से कोई पेपर तैयार हो जाएगा, तब कांग्रेस राजभवन की तरफ कूंच करेगी. गेंद अब राज्यपाल के पाले में होगी. यह राज्यपाल पर निर्भर करेगा कि वह फ्लोर टेस्ट के लिए नायब सैनी को बुलाएंगे या फिर आगामी विधानसभा को देखते हुए इसे पेंडिंग ही रखेंगे.


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