- केंद्रीय कैबिनेट ने SHANTI नामक परमाणु ऊर्जा बिल 2025 को मंजूरी दी है
- यह बिल प्राइवेट सेक्टर को परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश और निवेश की अनुमति देगा
- भारत का लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना है
पीएम मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने SHANTI सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया नाम से एटॉमिक एनर्जी बिल, 2025 को मंज़ूरी दे दी है. यह कानून भारत के एटॉमिक एनर्जी सेक्टर में इसकी शुरुआत के बाद से सबसे बड़ा सुधार माना जा रहा है, जो एटॉमिक एनर्जी डिपार्टमेंट (DAE) के दशकों पुराने एकाधिकार को खत्म करेगा और एक ऐसे क्षेत्र में प्राइवेट भागीदारी के रास्ते भी खोलेगा जो 60 से ज़्यादा सालों से बहुत सख्ती से कंट्रोल में थाच
भारत के पास एटॉमिक एनर्जी बनाने की एंड-टू-एंड क्षमताएं हैं. यह बिल अगले हफ़्ते की शुरुआत में, सोमवार या मंगलवार को, चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पेश किए जाने की उम्मीद है. एक बार लागू होने के बाद, SHANTI कई मौजूदा कानूनों को एक साथ लाएगा, रेगुलेटरी कमियों को दूर करेगा, और बड़े पैमाने पर न्यूक्लियर विस्तार में तेजी लाने के लिए एक यूनिफाइड कानूनी ढांचा तैयार करेगा.
क्या है शांति बिल?
यह विधेयक छह दशक से ज्यादा लंबे वक्त से चले आ रहे परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के एकाधिकार को समाप्त करेगा और पहली बार प्राइवेट सेक्टर को इस अत्यधिक नियंत्रित और गोपनीय क्षेत्र में दाखिल होने की इजाजत देगा. भारत के पास परमाणु ऊर्जा उत्पादन की एंड-टू-एंड क्षमता है. यह बिल अगले हफ्ते संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा. इसके लागू होने के बाद यह मौजूदा कई कानूनों को समेकित करेगा, नियामकीय खामियों को दूर करेगा और परमाणु ऊर्जा विस्तार के लिए एकीकृत कानूनी ढांचा तैयार करेगा.
क्यों है यह अहम?
भारत ने दरअसल एक महत्वाकांक्षी टारगेट को तय किया है. जो कि 2047 तक 100 गीगावॉट (GW) परमाणु ऊर्जा क्षमता, जो मौजूदा स्तर से करीब 11 गुना ज्यादा है. आपको बता दें कि फिलहाल भारत में 25 रिएक्टर हैं जिनकी कुल क्षमता 8,880 मेगावॉट है, 17 और रिएक्टर निर्माणाधीन हैं. यह कदम नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य (2070) और विकसित भारत के विजन को हासिल करने के लिए भी जरूरी है. कोयला और गैस आधारित थर्मल प्लांट बंद होने के बाद बेस लोड पावर की जरूरत परमाणु ऊर्जा से ही पूरी होगी.
प्राइवेट सेक्टर की भूमिका क्यों जरूरी?
इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारी-भरकम निवेश, मॉडर्न टेक्नोलॉजी और तेज प्रोजेक्ट टाइमलाइन की जरूरत होगी जो कि महज सरकारी फंडिंग से संभव नहीं है. शांति बिल निजी कंपनियों को परमाणु पारिस्थितिकी तंत्र में लाकर निवेश, इनोवेशन और परमाणु ऊर्जा को भारत की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति का स्तंभ बनाने का रास्ता खोलेगा.
पीएम मोदी का संकेत
27 नवंबर 2025 को स्काईरूट एयरोस्पेस कैंपस के उद्घाटन पर पीएम मोदी ने कहा था कि हम परमाणु क्षेत्र को भी खोलने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. प्राइवेट सेक्टर की मजबूत भूमिका के लिए नींव रखी जा रही है और यह सुधार हमारी ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व को नई ताकत देगा. भारत पहले से ही परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र है, जिसने 1998 में परमाणु बम हासिल किया था.
शांति बिल में क्या बदलाव होंगे?
- प्राइवेट सेक्टर की एंट्री: पहली बार निजी कंपनियां परमाणु खनिजों की खोज, ईंधन निर्माण, उपकरण निर्माण और कुछ हद तक प्लांट संचालन में भाग ले सकेंगी.
- मॉडर्न कानूनी ढांचा: 1962 के पुराने कानून को बदलकर लाइसेंसिंग, सुरक्षा और अनुपालन के लिए सुव्यवस्थित संरचना बनेगी.
- नियामकीय मजबूती: वैश्विक मानकों के अनुरूप पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र परमाणु सुरक्षा प्राधिकरण का गठन होगा.
- लॉयबिलिटी रिफॉर्म: Civil Liability for Nuclear Damage Act में संशोधन कर ऑपरेटर और सप्लायर की जिम्मेदारियां स्पष्ट होंगी, बीमा आधारित कैप और सरकारी बैकस्टॉप दिए जाएंगे. जो विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए जरूरी हैं.
निर्मला सीतारमण का बड़ा ऐलान
हालिया बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘विकसित भारत के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन' की घोषणा की और कहा कि साल 2047 तक कम से कम 100 GW परमाणु ऊर्जा का विकास हमारी ऊर्जा संक्रमण के लिए जरूरी है. प्राइवेट सेक्टर की सक्रिय भागीदारी के लिए Atomic Energy Act और Civil Liability for Nuclear Damage Act में संशोधन किए जाएंगे. उन्होंने 20,000 करोड़ रुपये के आउटले के साथ Small Modular Reactors (SMRs) के अनुसंधान और विकास का ऐलान किय. जिसका लक्ष्य साल 2033 तक कम से कम 5 स्वदेशी SMRs को चालू करना. ये कॉम्पैक्ट रिएक्टर औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन और ग्रिड फ्लेक्सिबिलिटी में अहम भूमिका निभाएंगे.
आगे की राह
NPCIL (Nuclear Power Corporation of India Limited) 100 GW लक्ष्य का कम से कम 50% योगदान देगा, बाकी निजी कंपनियों और आयातित रिएक्टरों से आएगा. NPCIL के CMD भुवन चंद्र पाठक ने NDTV से कहा कि हम हर साल कम से कम एक रिएक्टर कमीशन करेंगे.
चुनौतियां:
- परमाणु प्रोजेक्ट पूंजी-गहन और जटिल होते हैं
- मजबूत सुरक्षा निगरानी और जनसंपर्क जरूरी
- ईंधन सुरक्षा, देयता स्पष्टता और नियामकीय क्षमता सफलता की कुंजी होगी
क्यों है यह गेम-चेंजर?
- ऊर्जा सुरक्षा: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटेगी.
- जलवायु लक्ष्य: परमाणु ऊर्जा भारत की डीकार्बोनाइजेशन रणनीति की रीढ़ बनेगी.
- आर्थिक अवसर: इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी में घरेलू और वैश्विक खिलाड़ियों के लिए अरबों डॉलर का बाजार खुलेगा.
शांति बिल सिर्फ नीति सुधार नहीं है बल्कि यह भारत के स्वच्छ ऊर्जा भविष्य पर एक साहसिक दांव है. अगर संसद ने इसे मंजूरी दी, तो भारत एक नए युग में प्रवेश करेगा जहां प्राइवेट इनोवेशन और सार्वजनिक निगरानी मिलकर सुरक्षित, विश्वसनीय और कार्बन-फ्री ऊर्जा देंगे.
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