समझा जाता है कि केंद्रीय कैबिनेट ने किशोर न्याय बोर्ड को शक्ति प्रदान करने के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत बोर्ड यह फैसला कर सकेगा कि बलात्कार जैसे किसी जघन्य अपराध में संलिप्त 16 साल से ज्यादा उम्र के किसी किशोर को पर्यवेक्षण गृह भेजा जाए या किसी नियमित अदालत में उस पर मुकदमा चलाया जाए।
यह प्रस्ताव बुधवार को कैबिनेट बैठक की कार्यसूची में रखा गया था। सभी केंद्रीय मंत्रालय किशोर न्याय (बच्चों का देखरेख एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000 में संशोधन करने की मंजूरी पहले ही दे चुके हैं।
कानून में परिवर्तन का प्रस्ताव 16 दिसंबर, 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड में दोषी ठहराए एक अवयस्क को तीन साल के लिए सुधारगृह में रखने की हल्की सजा की पृष्ठभूमि में आया है। प्रस्तावित संशोधन में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया तेज करना भी शामिल है।
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