भारत सरकार ने 2020-21 के लिए आम बजट पेश कर दिया है. इस बजट में देश से बाहर रहने वाले भारतीयों (NRI) के लिए विशेष प्रावधान किए हैं. नए प्रावधान के अनुसार अब जो भारतीय विदेश में रहते हुए टैक्स नहीं देता है उसे भारत में कर का भुगतान करना होगा. इसके लिए किसी भी भारतीय को दूसरे देश में 182 दिनों की तुलना में 240 दिनों तक रहना होगा. आयकर अधिनियम की धारा 6 में संशोधन करते हुए, बजट ने प्रस्तावित किया कि "क्लॉज (1) में कुछ भी नहीं होने के बावजूद, एक व्यक्ति - भारत का नागरिक होने के नाते - किसी भी पिछले वर्ष में भारत में निवासी माना जाएगा, यदि वह किसी अन्य देश या क्षेत्र में उसके निवास या समान प्रकृति के किसी भी अन्य मानदंड के कारण कर के लिए उत्तरदायी नहीं है.
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सरकार ने कहा कि उसने एनआरआई टैग के अनुसार प्रावधानों को बदल दिया है ताकि लोगों को देश की कर प्रणाली में खामियों का फायदा उठाने से रोका जा सके. "हमने इनकम टैक्स (सिस्टम) में बदलाव किया है. इससे पहले, एक भारतीय नागरिक एनआरआई बन जाता है अगर वह 182 दिनों से अधिक समय तक देश से बाहर रहता है. अब उसे 241 दिनों तक रहना है. समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से कहा गया है कि कुछ लोग किसी देश के निवासी नहीं थे. हमने कहा है कि यदि कोई भारतीय नागरिक, अगर वह भारत का नागरिक नहीं है, तो उसे भारत का नागरिक माना जाता है और उसकी दुनिया भर में होने वाली आय पर कर लगेगा. समाचार एजेंसी पीटीआई ने राजस्व सचिव अजय भूषण पांडेय के हवाले से यह कहा है.
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बता दें कि केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर जिस वक्त देश में मुस्लिम समुदाय का एक तबका सड़कों पर है, ठीक उस दौरान पेश हुए बजट में मोदी सरकार (Modi Govt) ने अल्पसंख्यकों का खासा ख्याल रखा है. मोदी सरकार ने पिछली बार की तुलना में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय का बजट 329 करोड़ रुपये बढ़ाया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने शनिवार को पेश बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए 5029 करोड़ का बजट दिया है, जबकि पिछले साल 4700 करोड़ रुपये का बजट था.
अब तक मोदी सरकार की ओर से पेश सभी बजट पर नजर डालें तो 6 साल के कार्यकाल में अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट 1500 करोड़ रुपये तक बढ़ चुका है. भाजपा सूत्रों का कहना है कि सरकार 'सबका साथ, सबका विकास' के मूलमंत्र के साथ काम कर रही है. ऐसे में अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में बढ़ोतरी पर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. अगर बजट के आंकड़ों की बात करें तो 2014 में मोदी सरकार से पहले यूपीए शासनकाल में पेश हुए 2013-14 के बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए 3511 करोड़ की व्यवस्था की गई थी.
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इसके बाद जब मोदी सरकार में 10 जुलाई 2014 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पहला बजट पेश किया तो अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट में 200 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर 3711 करोड़ कर दिया था. अगले साल 2015-16 में बढ़ाकर 3713 करोड़ कर दिया. इसके बाद भी हर साल मोदी सरकार अल्पसंख्यकों पर मेहरबान होकर बजट बढ़ाती रही. मिसाल के तौर पर, 2016-17 में 3800 करोड़ रुपये, 2017-18 में 4195 करोड़, 2018-19 में 4700 करोड़ रुपये का बजट जारी किया.
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2019-20 में भी सरकार ने 2018-19 के बराबर यानी 4700 करोड़ रुपये का ही बजट जारी किया था. अब शनिवार को पेश हुए 2020-21 के बजट में 5029 करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था की है. इस प्रकार देखें तो मोदी सरकार करीब 6 साल से अपने कार्यकाल में अब तक 1500 करोड़ रुपये अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए बढ़ा चुकी है. बजट बढ़ाए जाने से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का स्टाफ खुश है. मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार ने बजट बढ़ाकर फिर दिखाया है कि वह सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखती है. अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqvi) ने अपने एक बयान में इसे बहुत प्रैक्टिकल बजट बताया है. उन्होंने मीडिया से बातचीत में इसे 'पीपुल फ्रेंडली' बजट बताते हुए कहा कि इसमें गांव, किसान, खेत, खलिहान सहित सभी का ध्यान रखा गया है.
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