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जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले में BLA ने लिखी CJI बीआर गवई को चिट्ठी

जस्टिस वर्मा फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज हैं. 2 जून, 2025 को लिखे पत्र में BLA ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PC एक्ट) और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत FIR दर्ज करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. 

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले में BLA ने लिखी CJI बीआर गवई को चिट्ठी
(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले में बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (BLA) ने लिखी CJI बीआर गवई को चिट्ठी. इस चिट्ठी में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने को मंजूरी देने की मांग की है. चिट्ठी में BLA ने कहा है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की पुष्टि इन-हाउस पैनल की रिपोर्ट से हो चुकी है.

कानून के शासन को बनाए रखने, जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अभियोजन की आवश्यकता है. 1991 वीरस्वामी फैसला अभियोजन के लिए स्पष्ट तंत्र प्रदान करता है और ये फैसला न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संतुलित करता है और भ्रष्टाचार के विश्वसनीय आरोपों को संबोधित करता है.

जस्टिस वर्मा फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज हैं. 2 जून, 2025 को लिखे पत्र में BLA ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PC एक्ट) और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत FIR दर्ज करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट अहमद आब्दी और इसके सचिव एडवोकेट एकनाथ आर ढोकले की ओर से ये पत्र लिखा गया है.

पत्र में कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत और संस्थागत जवाबदेही की आवश्यकता बताई गई है. इसमें कहा गया है कि कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा साझा की गई तस्वीरों और वीडियो फुटेज सहित विश्वसनीय साक्ष्य, संज्ञेय अपराध के होने का संकेत देते हैं. रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री की गंभीरता के बावजूद, अभी तक कोई FIR  दर्ज नहीं की गई है, और कोई आधिकारिक जब्ती या पंचनामा रिपोर्ट नहीं किया गया है.

BLA ने के वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991) में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित बाध्यकारी मिसाल का भी हवाला दिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि पीसी अधिनियम के तहत एक जज भी 'लोक सेवक' है और जब तक CJI से मंजूरी प्राप्त नहीं होती है तब तक उस पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.

गौरतलब है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका को 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. हालांकि, याचिकाकर्ताओं को आवश्यकता पड़ने पर सक्षम अधिकारियों से संपर्क करने की छूट दी गई.

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