क्या विधानसभा चुनाव में गुजरात फॉर्मूला मध्य प्रदेश में भी लागू होगा. सूत्रों के मुताबिक -सत्ता, संगठन और इंटेलीजेंस के सर्वे से बीजेपी के माथे पर परेशानी झलक रही है. अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 18 साल की एंटी इनकम्बेंसी से बड़ा नुकसान हो सकता है. ऐसे में हल एक ही है, सरकार की बड़ी सर्जरी. मिशन 2023 में ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य बीजेपी के लिए मुश्किलों भरा हो सकता है. इन्हीं इलाकों से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और बीजेपी के मध्यप्रदेश प्रमुख वीडी शर्मा आते हैं. सूत्रों की मानें तो हालिया सर्वे रिपोर्ट्स को ध्यान में रखते हुए पार्टी के रणनीतिकार मध्य प्रदेश में बड़े फेरबदल और सर्जरी पर विचार कर सकते हैं, जिसमें कई मंत्रियों,विधायकों के टिकट पर कैंची चल सकती है.
इसे लेकर बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मध्य प्रदेश नहीं सारे देश में लागू होगा, इस देश में गुजरात एक आइडियल स्टेट हो गया है, वहां हर 5 साल में बीजेपी के लिए वोट प्रतिशत बढ़ा है. बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर गुजरात की तर्ज पर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार और वीडी शर्मा के नेतृत्व वाले राज्य संगठन दोनों में बदलाव की मांग की है. खत को लेकर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि हर राज्य में स्थिति अलग है, मप्र में अभी ऐसा कुछ नहीं है. हां, उन्होंने पहले भी पत्र लिखा है.
हालांकि सूत्रों की मानें तो गुजरात के उलट मध्य प्रदेश में सर्जरी राज्य के पार्टी संगठन के बड़े फेरबदल के साथ शुरू हो सकती है और राज्य सरकार में 4 खाली पदों को भरने के साथ अहम बदलाव हो सकते हैं.
राज्य बीजेपी प्रमुख से हो सकती है बदलाव की शुरुआत
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देश में सबसे लंबे समय तक बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं, एक ताकतवर ओबीसी नेता जिनका विकल्प आसान नहीं. ऐसे में उनकी जगह किसी और को बिठाने की पार्टी में जल्दबाजी नहीं है और पार्टी के शीर्ष नेताओं में इसको लेकर आमराय भी नहीं, ऐसे में माना जा रहा है कि राज्य बीजेपी प्रमुख जिनका तीन साल का कार्यकाल फरवरी में समाप्त हो रहा है, उनकी जगह किसी आदिवासी या दलित चेहरे को बिठाकर बदलाव की शुरुआत होगी.
संगठन के साथ सरकार में भी बदलाव
संगठन के साथ सरकार में भी बदलाव होंगे, जिसमें कई युवा चेहरे, खासकर विंध्य के नेताओं को वरीयता मिलेगी. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, जिससे जाति, उम्र और क्षेत्र को साधा जा सके. फिलहाल राज्य में अभी 30 मंत्री हैं, जिनमें 10 क्षत्रिय, 8 ओबीसी, 3 एससी, 4 एसटी, 2 ब्राह्मण हैं. सूत्रों के मुताबिक- हालिया सर्वे के आधार पर मौजूगा 127 में 60-70 विधायकों के टिकट कट सकते हैं.
मध्य प्रदेश कांग्रेस ने भी उठाए सवाल
मप्र कांग्रेस में मीडिया विभाग के अध्यक्ष के के मिश्रा ने कहा कि बीजेपी अगर गुजरात और प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी तो ये स्पष्ट है कि 16 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज नापसंद शिवराज सिंह का चेहरा लोगों को पसंद नहीं है, ऐसे में 16 सालों से अपने चेहरे को चमकाने के लिये जितनी ब्रांडिंग उन्होंने की है वो पैसे उनसे वसूले जाएंगे. अगर पीएम के चेहरे पर लड़ना है तो हिमाचल में क्यों नहीं लड़ा, अब क्या मप्र में बदलने की कवायद प्रारंभ होगी.
गौरतलब है कि 20-30 सालों से विधानसभा में जमे बड़े नामों को टिकट न देने से हिमाचल जैसे विद्रोह को नकारा नहीं जा सकता, इसलिए सूत्रों के मुताबिक- उन्हें ड्रॉप करने से पहले ऐसे नेताओं को विश्वास में लेकर फैसला होगा, असाधरण स्थिति में ऐसे नेताओं या उनके परिजनों को 2024 में लोकसभा चुनाव में जगह मिल सकती है. 30-40 साल से सक्रिय नेताओं को ड्रॉप करने में उम्र की भी अहमियत होगी, राज्य में ओबीसी मतदाताओं को साधने के लिये उनकी नुमांइदगी पर फोकस होगा क्योंकि उनकी आबादी 48% प्रतिशत से ज्यादा है, पिछले बार कठोर फैसले से चूकने पर 2013 के मुकाबले पार्टी को 56 सीटों का नुकसान हुआ था और सरकार चली गई थी, पार्टी इस बार ऐसे हालात नहीं चाहती.
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