नई दिल्ली:
लोकसभा में अर्थव्यवस्था पर चर्चा के दौरान भाजपा के यशवंत सिन्हा ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे समय से गुजर रही है, जिसका सुबूत यह है कि 1991 में चालू खाता घाटा जीडीपी का 2.5 प्रतिशत था जो पिछले साल पांच प्रतिशत हो गया।
2012-13 तक भारत सरकार का कुल वाह्य ऋण 390 अरब डॉलर था। अल्प अवधि का ऋण 172 अरब डॉलर था, जिसे 31 मार्च 2014 तक वापस करना है।
उन्होंने कहा कि दुनियाभर का अनुभव है कि जब विदेशी मुद्रा में कमी आती है तो बहुत तेजी से आती है। सिन्हा ने कहा कि सरकार कहती है कि अल्पावधि ऋण को लेकर वह ऋणदाता से बात आगे बढ़ाएगी, लेकिन जानकार कहते हैं कि आपके चालू खाते में 25 अरब डॉलर नहीं आया तो भुगतान संतुलन का संकट खड़ा हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री चाहे जितनी बहादुरी से बयान दें, लेकिन वह बयान खोखला है। साथ ही आरोप लगाया कि ये जानते हुए भी सरकार ने फिजूलखर्ची की कि इसका असर मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। निवेशकों को जब पता चल गया कि मुनाफा नहीं होगा तो उन्होंने निवेश करना बंद कर दिया।
सिन्हा ने कहा, ‘‘आज का संकट सरकार की अकर्मण्यता का संकट है। विश्वास का संकट है।’’ भाजपा नेता के मुताबिक सरकार ने कहा था कि 2012-13 में राजकोषीय घाटे को 5.1 प्रतिशत पर रोक लेंगे और उसे 4.9 प्रतिशत पर ही रोक लिया, लेकिन इसके लिए इसने 1,00,000 करोड़ रुपये योजनागत आवंटन में कटौती कर दी।
सिन्हा ने कहा कि वैश्विक संकट आज भी है, ऐसे में सरकार खर्च घटाए। उन्होंने हैरत व्यक्त की कि इस साल सरकार 5,50,000 करोड़ रुपये कर्ज लेगी। सोना बहुत आयात हो रहा है, इसी के चलते सारी समस्या पैदा हुई है। सोने पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क है और 20 प्रतिशत की निर्यात बाध्यता होती है, जिससे ज्वैलर्स का उद्योग बैठ गया है।
उन्होंने कहा कि देश में कोयले का पर्याप्त भंडार है ,लेकिन हम 18 अरब डॉलर का कोयला आयात करते हैं। जब अकूत भंडार है तो आयात क्यों करते हैं? क्यों नहीं इसे रोकते? कोयला संकट क्यों है? हर साल कोयला आयात बढ़ रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड से सरकार क्यों नहीं कहती कि वह उत्पादन बढ़ाए।
सिन्हा ने कहा कि 1,00,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। भाजपा नेता ने कहा, ‘‘अज्ञानता का सुख है हमारे पास। सबसे बड़ा बोझ ज्ञान का होता है और जानबूझ कर अनजान बनना सबसे बड़ा पाप है। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री सब जानते हैं कि नतीजा क्या होगा, फिर भी ऐसे कदम उठा रहे हैं जो देश को रसातल की ओर ले जाएगा।’
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार के जाने का समय आ गया है। आप हमसे (विपक्ष से) मत पूछिए कि समाधान क्या है? अर्थव्यवस्था के साथ सरकार ने खिलवाड़ किया है, जिसका खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है। इस परिस्थिति से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है कि इस सरकार को विदा करो। जनता के पास चलो, जनता फैसला करेगी। इतनी भ्रष्ट सरकार आज तक देश के इतिहास में कभी नहीं बनी।’’
2012-13 तक भारत सरकार का कुल वाह्य ऋण 390 अरब डॉलर था। अल्प अवधि का ऋण 172 अरब डॉलर था, जिसे 31 मार्च 2014 तक वापस करना है।
उन्होंने कहा कि दुनियाभर का अनुभव है कि जब विदेशी मुद्रा में कमी आती है तो बहुत तेजी से आती है। सिन्हा ने कहा कि सरकार कहती है कि अल्पावधि ऋण को लेकर वह ऋणदाता से बात आगे बढ़ाएगी, लेकिन जानकार कहते हैं कि आपके चालू खाते में 25 अरब डॉलर नहीं आया तो भुगतान संतुलन का संकट खड़ा हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री चाहे जितनी बहादुरी से बयान दें, लेकिन वह बयान खोखला है। साथ ही आरोप लगाया कि ये जानते हुए भी सरकार ने फिजूलखर्ची की कि इसका असर मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। निवेशकों को जब पता चल गया कि मुनाफा नहीं होगा तो उन्होंने निवेश करना बंद कर दिया।
सिन्हा ने कहा, ‘‘आज का संकट सरकार की अकर्मण्यता का संकट है। विश्वास का संकट है।’’ भाजपा नेता के मुताबिक सरकार ने कहा था कि 2012-13 में राजकोषीय घाटे को 5.1 प्रतिशत पर रोक लेंगे और उसे 4.9 प्रतिशत पर ही रोक लिया, लेकिन इसके लिए इसने 1,00,000 करोड़ रुपये योजनागत आवंटन में कटौती कर दी।
सिन्हा ने कहा कि वैश्विक संकट आज भी है, ऐसे में सरकार खर्च घटाए। उन्होंने हैरत व्यक्त की कि इस साल सरकार 5,50,000 करोड़ रुपये कर्ज लेगी। सोना बहुत आयात हो रहा है, इसी के चलते सारी समस्या पैदा हुई है। सोने पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क है और 20 प्रतिशत की निर्यात बाध्यता होती है, जिससे ज्वैलर्स का उद्योग बैठ गया है।
उन्होंने कहा कि देश में कोयले का पर्याप्त भंडार है ,लेकिन हम 18 अरब डॉलर का कोयला आयात करते हैं। जब अकूत भंडार है तो आयात क्यों करते हैं? क्यों नहीं इसे रोकते? कोयला संकट क्यों है? हर साल कोयला आयात बढ़ रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड से सरकार क्यों नहीं कहती कि वह उत्पादन बढ़ाए।
सिन्हा ने कहा कि 1,00,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। भाजपा नेता ने कहा, ‘‘अज्ञानता का सुख है हमारे पास। सबसे बड़ा बोझ ज्ञान का होता है और जानबूझ कर अनजान बनना सबसे बड़ा पाप है। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री सब जानते हैं कि नतीजा क्या होगा, फिर भी ऐसे कदम उठा रहे हैं जो देश को रसातल की ओर ले जाएगा।’
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार के जाने का समय आ गया है। आप हमसे (विपक्ष से) मत पूछिए कि समाधान क्या है? अर्थव्यवस्था के साथ सरकार ने खिलवाड़ किया है, जिसका खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है। इस परिस्थिति से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है कि इस सरकार को विदा करो। जनता के पास चलो, जनता फैसला करेगी। इतनी भ्रष्ट सरकार आज तक देश के इतिहास में कभी नहीं बनी।’’
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