आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत 'भारत रत्न' देने की घोषणा को राज्य में पिछड़ी जातियों, खासकर अति पिछड़ा वर्ग के लोगों का समर्थन हासिल करने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा लालू प्रसाद के सामाजिक समीकरण की काट के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और जद (यू) अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेताओं की इन वर्गों में मजबूत पकड़ को ही एक बड़ा कारण माना जाता रहा है कि भाजपा अब तक बिहार में उस तरह का प्रभाव दिखाने में असमर्थ रही है जैसा कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में उसका इस समुदाय पर रहा है.
'जननायक' के रूप में मशहूर ठाकुर दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनका 17 फरवरी, 1988 को निधन हो गया था. कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित शीर्ष भाजपा नेताओं ने उन्हें पिछड़ों, दलितों, गरीबों और किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले मसीहा के रूप में याद किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रखर समाजवादी नेता को 'भारत रत्न' (मरणोपरांत) से नवाजे जाने की घोषणा पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि यह हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक योद्धा और समानता व सशक्तीकरण के दिग्गज के रूप में उनके स्थायी प्रयासों का एक प्रमाण है. मोदी ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, 'यह प्रतिष्ठित मान्यता हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक योद्धा और समानता और सशक्तीकरण के दिग्गज के रूप में उनके स्थायी प्रयासों का एक प्रमाण है.'
ठाकुर को यह सम्मान ऐसे समय में दिए जाने की घोषणा हुई है जब देश उनकी जन्म शताब्दी मना रहा है. हाल में बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया था जिसके मुताबिक ठाकुर की जाति अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) का हिस्सा है. इसके मुताबिक, ईबीसी 36 प्रतिशत हैं जबकि ओबीसी राज्य की कुल आबादी का 27 प्रतिशत हैं. ईबीसी की गिनती में कई मुस्लिम जातियां भी शामिल हैं. जातियों में सबसे अधिक यादव हैं और उनकी आबादी 14.26 प्रतिशत है.
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद भी लंबे समय से ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग करते रहे हैं. ठाकुर के प्रशंसक कुमार के लिए माना जाता है कि उन्होंने ईबीसी और गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग के एक बड़े हिस्से का गठबंधन बनाकर राजनीतिक सफलता अर्जित की है. ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर को राज्यसभा का सदस्य बनाया जाना भी उनकी इसी रणनीति का हिस्सा रहा है.
शाह ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा पर कहा कि बिहार की भूमि के वीर सपूत जननायक कर्पूरी ठाकुर ने देश की स्वतंत्रता से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक, एक सर्वसमावेशी शासन-व्यवस्था बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया. उन्होंने कहा, 'वे जीवनपर्यन्त पिछड़ों, दलितों, गरीबों और किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए समर्पित रहे.'
भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा, 'महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक व बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने संपूर्ण जीवन वंचित वर्ग के कल्याण को समर्पित कर दिया. यह सम्मान उनके आजीवन संघर्ष, पिछड़ों, गरीबों, दलितों, किसानों के अधिकार के लिए समर्पण को सच्ची श्रद्धांजलि है.' भाजपा महासचिव व बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े ने कहा, 'यह घोषणा पूरे बिहार के लिए गर्व का विषय है. कर्पूरी ठाकुर आजीवन दलितों एवं पिछड़ों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध रहे. आज उनके पदचिह्नों पर चलते हुए मोदी सरकार हर वर्ग का संपूर्ण विकास कर रही है. यही मोदी जी की गारंटी है.''
बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि हाल के वर्षों में नीतीश कुमार के राजनीतिक ग्राफ में गिरावट देखी गई है और इसीलिए भाजपा विभिन्न उपायों के जरिए उनके वोट बैंक को साधने का प्रयास कर रही है. उनके अनुसार, पिछड़े कोइरी समाज से आने वाले नेता सम्राट चौधरी को इसी रणनीति के एक हिस्से के रूप में भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. भाजपा का मानना है कि ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने से उसके अभियान को और गति मिलेगी. कर्पूरी ठाकुर ने 70 के दशक में ईबीसी के लिए एक अलग कोटा सुनिश्चित करके बिहार में पिछड़े वर्गों के आरक्षण के उप-वर्गीकरण को लागू किया था ताकि उनका हिस्सा अधिक प्रभावशाली अन्य पिछड़ा वर्ग से प्रभावित न हो.
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