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बिहार म्यूजियम बिनाले 2025: नजर आती है मगध की‌ संस्कृति यहां

अरविंद दास
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 10, 2025 21:32 pm IST
    • Published On अगस्त 10, 2025 21:31 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 10, 2025 21:32 pm IST
बिहार म्यूजियम बिनाले 2025: नजर आती है मगध की‌ संस्कृति यहां

प्रवासी होने की पीड़ा है कि आप घर में रह कर बेघर होते हैं. पिछले दस सालों में पटना जब भी आया महज दो-चार घंटे के लिए. इन वर्षों में बिहार संग्रहालय देखने की उत्कट चाह रही.बिहार म्यूजियम बिनाले 2025 ने मुझे यह अवसर दिया. असल में दस सालों में बिहार संग्रहालय ने देश और दुनिया में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है.  

मुझे पेरिस, लंदन, पर्थ, लिंज, वियना, म्यूनिख, शंघाई आदि शहरों के संग्रहालयों को देखने का मौका मिला है. अपने सीमित अनुभव के आधार पर मैं कह सकता है बिहार संग्रहालय विश्व स्तरीय है. हैदराबाद से बिनाले में भाग लेने आए संस्कृतिकर्मी सीवीएल श्रीनिवास ने मुझसे कहा,''सच पूछिए तो देश में भी ऐसा कोई संग्रहालय नहीं है.''

पटना में बना 'ग्लोबल विलेज'

वास्तुशिल्प, परिकल्पना, खुले स्पेस, कला दीर्घाओं के संयोजन में बिहार संग्रहालय का कोई जोड़ नहीं. बिहार की प्राचीन सभ्यता और कला-संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक कला-संस्कृति का यह घर वास्तव में एक 'ग्लोबल विलेज' है. आश्चर्य नहीं कि इस बिनाले (जिसका आयोजन हर दो साल पर हो) की परिकल्पना के केंद्र में 'ग्लोबल साउथ: इतिहास की साझेदारी' है.

बिहार म्यूजियम के इस बार के द्विवार्षिक आयोजन का विषय ग्लोबल साउथ: इतिहास की साझेदारी रखा गया है.

बिहार म्यूजियम के इस बार के द्विवार्षिक आयोजन का विषय 'ग्लोबल साउथ: इतिहास की साझेदारी' रखा गया है.

संग्रहालय में विभिन्न भाव-भंगिमाओं में बुद्ध, सम्राट अशोक के शासन काल के दौरान बनाए गए दीदारगंज की बहुचर्चित यक्षी की प्रतिमा आदि कला प्रेमियों को आकर्षित करता है.

कवि श्रीकांत वर्मा ने अपनी बहुचर्चित मगध कविता में लिखा है, 'वह दिखाई पड़ा मगध, लो, वह अदृश्य'. यहां मगध की सांस्कृतिक विरासत इतिहास के पन्नों से निकल कर अपनी कहानी खुद बयान करती है.इसके साथ ही क्षेत्रीय और लोक कलाओं का दीर्घा भारत की बहुस्तरीय रचनात्मकता और आधुनिक भाव बोध को दर्शाता है.

कलाओं का अनूठा संगम

मगध बौद्ध सभ्यता का केंद्र था और मिथिला वैदिक सभ्यता का. आधुनिक भारत में मिथिला कला अपनी लोक तत्वों के अनूठेपन के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बना चुकी है.समकालीन कला के साथ-साथ मिथिला लोक कला को जगह देकर यह संग्रहालय अपने वृहद दृष्टि का परिचय देता है. यहां पर यह नोट करना उचित होगा कि जापान स्थित मिथिला म्यूजियम में मिथिला कला की मूर्धन्य कलाकारों मसलन,गंगा देवी,सीता देवी, गोदावरी दत्त, बौआ देवी आदि की पेंटिंग संग्रहित है. क्या ही अच्छा हो कि बिहार म्यूजियम उसे देश में लाने की पहल करे.

बिहार म्यूजियम में समकालीन कला के साथ-साथ मिथिला लोक कला को जगह देकर यह संग्रहालय अपने वृहद दृष्टि का परिचय देता है.

बिहार म्यूजियम में समकालीन कला के साथ-साथ मिथिला लोक कला को जगह देकर यह संग्रहालय अपने वृहद दृष्टि का परिचय देता है.

बहरहाल, यह बिनाले सिर्फ कला-संस्कृति के प्रदर्शनी तक सीमित नहीं है, जो कि हर बिनाले का मूल तत्व रहता आया है.जैसा कि आयोजन के कर्ता-धर्ता कहते हैं, ''यह बिनाले पूरी तरह संग्रहालय केंद्रित है जो वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक संस्थाओं की बुनियादी संरचना को पुनर्परिभाषित करने का प्रयास करता है.'' सेमिनार के दौरान हुए संवाद में वक्ताओं ने 'ग्लोबल साउथ'के देशों के बीच आपसी अनुभवों की  साझेदारी और एकजुटता पर जोर दिया. 

पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के विकसित देशों की तरफ से भूमंडलीकरण पर जिस तरह से सवाल उठाए जा रह हैं और भूराजनीति तेजी बदल रही है 'बल साउथ'के देशों के बीच न सिर्फ राजनीति बल्कि कला-संस्कृति को लेकर समन्वय और सामंजस्य समय की मांग है.  

मुखौटों की दुनिया

इस बिनाले में विभिन्न सभ्यताओं में मुखौटे की अवस्थिति को लेकर बेहद दिलचस्प दीर्घा सजाई गई है. खौटे की उत्पत्ति को लेकर कलाकारों में सहमति नहीं है,पर भारत की बात करें तो हड़प्पाकालीन सभ्यता में भी टेराकोटा के मुखौटे मिलते हैं.प्रदर्शनी में चिरांद, बिहार में मिले पहली-दूसरी शताब्दी के टेराकोटा मास्क शामिल हैं. मास्क के बारे में रेखांकित किया गया है कि यह आदमकद मास्क भारत की प्राचीन मास्कों में से एक है.मुखौटे का इस्तेमाल झाड़-फूंक, जादू-टोने, रीति-रिवाज , अनुष्ठान, अभिनय आदि में सदियों से चला आता रहा है और आज भी कायम है.आधुनिक कलाकारों, मसलन, सचिंद्रनाथ झा  की 'गंगा घाट (मास्क)' नाम से कलाकृति परंपरा और आधुनिकता के बीच एक पुल की तरह दिखाई देती है.असल में मुखौटा जितना छिपाता है उससे ज्यादा कहीं उजागर करता है. मुखौटा एक रूपक है.

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इसके साथ ही प्रदर्शनी में भारत के अलावे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की सभ्यता-संस्कृति में रामकथा की उपस्थिति  को लेकर 'विश्वरूप राम: रामायण की सार्वभौमिक विरासत'  नाम से एक अलग दीर्घा है. इंडोनेशिया की चर्चित छाया कठपुतली में 'वायांग क्लितिक' में राम की नृत्यकारी मुद्राएं हैं. भारतीय कथा में पुरुषोत्तम राम को धीरोदात्त नायक के रूप में ही चित्रित किया जाता रहा है, राम की यह मुद्रा अह्लादकारी है!

वर्तमान में उत्तर औपनिवेशिक देशों में ज्ञान के उत्पादन के क्षेत्र में विउपनिवेशीकरण पर जोर है.बिनाले में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देश भाग ले रहे हैं जिनका इतिहास उपनिवेशवाद से संघर्ष का रहा है.इंडोनेशिया के अलावा श्रीलंका, कजाख्स्तान, इथोपिया, मैक्सिको, अर्जेंटीना, इक्वाडोर, पेरु और वेनेजुएला के साथ देश के तीन संस्थान- नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और मेहरानगढ़ म्यूजियम आयोजन में  शामिल हैं.

प्राचीन काल में बिहार की एक पहचान ज्ञान के केंद्र की रही है. बिहार म्यूजियम बिनाले का तीसरा संस्करण साल के आखिर तक संस्कृतियों के मेल-जोल और वाद-विवाद-संवाद का मंच बना रहेगा. विश्वविद्यालय की चाहरदिवारी से बाहर कला-संस्कृति में आम लोगों की यहां हिस्सेदारी सुखद है.

अस्वीकरण: अरविंद दास डीवाई पाटिल इंटरनेशनल युनिवर्सिटी, पुणे के स्कूल ऑफ मीडिया एंड जर्नलिज्म के निदेशक और प्रोफेसर हैं. वो कला-संस्कृति विषय पर लिखते रहते हैं.इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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