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This Article is From Dec 25, 2016

जन्मदिन विशेष : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिलचस्प इंटरव्यू और भाषण के कुछ अंश

जन्मदिन विशेष : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिलचस्प इंटरव्यू और भाषण के कुछ अंश
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है. अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था. उन्‍होंने न केवल एक बेहतरीन नेता बल्कि एक अच्‍छे कवि के रूप में भी नाम कमाया और एक शानदार वक्ता के रूप में लोगों के दिल जीते.

वाजपेयी ने अपने राजनीतिक करियर के दौरान मीडिया को कई शानदार इंटरव्यू दिए. आज उनके जन्‍मदिन के मौके पर पेश हैं कुछ ऐसे ही इंटरव्यू के अंश जो अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तिगत जीवन के साथ ही उनके राजनैतिक जीवन के बारे में भी बताते हैं. इन इंटरव्‍यू से आपको जिन सवालों के जवाब मिलेंगे उनमें से कुछ इस प्रकार हैं... वाजपेयी राजनीति में क्यों आए? शादी क्यों नहीं कर पाए? अपने अफेयर के बारे में वो क्या कहते हैं? लोकसभा में पंडित नेहरू उन पर क्यों नाराज़ गए थे? क्या क्या खाना बनाना पसंद करते हैं? बाबरी मस्जिद के बारे में क्या सोचते हैं?

राजीव शुक्‍ला के साथ इंटरव्यू के दौरान...

राजीव शुक्ला : एक भ्रम आप के बारे में ज़रूर है. आप उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं या मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं, कभी आप ग्वालियर से चुनाव लड़ते हैं, कभी लखनऊ से लड़ते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी : हमारा पैतृक गांव उत्तर प्रदेश में है. लेकिन पिताजी अंग्रेजी पढ़ने के लिए गांव छोड़कर आगरा चले गए थे, फिर उन्हें ग्वालियर में नौकरी मिल गयी. मेरा जन्म ग्वालियर में हुआ था. इसलिए मैं उत्तर प्रदेश का भी हूं और मध्य प्रदेश का भी हूं.

राजीव शुक्ला : तो आपके पिताजी सिंधिया दरबार में नौकरी करते थे? तो उसी सिंधिया परिवार के बेटे के खिलाफ आपने चुनाव लड़ा?
अटल बिहारी बाजपेयी : जी हां, राज्य की शिक्षा सेवा में थे और बहुत पराक्रमी पुरुष थे. बेटे को मैंने भारतीय जनसंघ में शामिल भी करवाया था. बेटा पहले हमारे साथ था, मां को छोड़कर बेटा चला गया तो बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ना जरूरी हो गया.

राजीव शुक्ला : आप अकेला महसूस करते हैं इसीलिए लिखते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी : हां, अकेला महसूस तो करता हूं, भीड़ में भी अकेला महसूस करता हूं.

राजीव शुक्‍ला : शादी क्यों नहीं की आपने?
अटल बिहारी वाजपेयी : घटनाचक्र ऐसा ऐसा चलता गया कि मैं उसमें उलझता गया और विवाह का मुहूर्त नहीं निकल पाया.

राजीव शुक्‍ला : अफेयर भी कभी नहीं हुआ ज़िंदगी में?
अटल बिहारी वाजपेयी : अफेयर की चर्चा की नहीं जाती है सार्वजनिक रूप से.

रजत शर्मा के साथ इंटरव्यू के दौरान...

रजत शर्मा : अटल जी, आपके नाम में विरोधांतर है. जो अटल है वह बिहारी कैसे हो सकता है?
अटल बिहारी वाजपेयी : मैं अटल भी हूं और बिहारी भी हूं. जहां अटल होने की आवश्यकता है वहां अटल हूं और जहां बिहारी होने की जरुरत है वहां बिहारी भी हूं. मुझे दोनों में कोई अंतर्विरोध दिखाई नहीं देता.

रजत शर्मा : अपने जब राजनीतिक करियर शुरू किया था तब आप कम्युनिस्ट भी थे और आर्यसमाजी भी थे?
अटल बिहारी वाजपेयी : एक बालक के नाते मैं आर्यकुमार सभा का सदस्य बना. इसके बाद मैं आरएसएस के संपर्क में आया. कम्युनिज्म को मैंने एक विचारधारा के रूप में पढ़ा. मैं कभी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा लेकिन छात्र आंदोलन में मेरी हमेशा रुचि थी और कम्युनिस्ट एक ऐसी पार्टी थी जो छात्रों को संगठित करके आगे बढ़ती थी. मैं उनके के संपर्क में आया और कॉलेज की छात्र राजनीति में भाग लिया. एक साथ सत्यार्थ और कार्ल मार्क्स पढ़ा जा सकता है, दोनों में कोई अंतर्विरोध नहीं है.

रजत शर्मा : कवि होकर आप कविता लिखते हैं फिर दूसरी तरफ राजनीति के कठोर रास्ते पर आप चलते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी : मैं इसे अंतर्विरोध नहीं मानता हूं. बचपन से मैंने कविता लिखना आरंभ किया. मैं पत्रकार बनाना चाहता था. लेकिन जब श्रीनगर के सरकारी अस्पताल में नज़रबंदी की अवस्था में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का निधन हो गया तो उनके अधूरे काम को पूरा करने के लिए मैंने राजनीति के क्षेत्र में कूदने का फैसला किया. राजनीति के रेगिस्तान में मेरी कविता की धारा सूख गयी है. कभी कभी मैं कविता लिखने की कोशिश करता हूं लेकिन सच्चाई यह है कि मेरा कवि मेरा साथ छोड़ गया है और मैं कोरी राजनीति का नेता बनकर रह गया हूं.

मैं उस दुनिया में लौटना चाहता हूं लेकिन स्थिति वही है कि व्यक्ति कंबल छोड़ना चाहता है लेकिन कंबल व्यक्ति को नहीं छोड़ता है. इस समय तो राजनीति को छोड़ा नहीं जा सकता लेकिन राजनीति मेरे मन का पहला विषय नहीं है. राजनीति में जो कुछ हो रहा है, मेरे मन में कभी-कभी पीड़ा पैदा होता है. लेकिन इस समय छोड़कर जाना पलायन माना जाएगा और मैं पलायन का दोषी नहीं बनना चाहता हूं. कर्तव्य की पुकार है लड़ूंगा और संघर्ष करूंगा.


तवलीन सिंह के साथ इंटरव्यू के दौरान वाजपेयी...

अटल बिहारी वाजपेयी : मैं जब लोकसभा के लिए पहली बार चुना गया था तो उस समय अशोक होटल बनना था. लोकसभा में एक दिन बहस होने लगी और नेहरू जी मौजूद थे. होटल बनाया जाए या न बनाया जाए, घाटे में रहेगा या फायदे में रहेगा. मैं खड़ा हो गया और बोला, 'सरकार का काम होटल बनाना नहीं, अस्पताल बनाना है.' नेहरू जी नाराज़ हो गए और बोले यह नए मेंबर आए हैं, बातें समझते तो हैं नहीं. नेहरू जी बोले, हम होटल भी बनाएंगे और होटल से हुए फायदे से अस्पताल भी बनाएंगे लेकिन होटल नुकसान में चल रहा है.

तवलीन सिंह : आप क्या-क्या खाना बनाना पसंद करते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी : मैं खाना अच्छा बनाता हूं, मैं खिचिड़ी अच्छी बनाता हूं, हलवा अच्छा बनाता हूं, खीर अच्छी बनाता हूं. वक्त निकालकर खाना  बनाता हूं. इसके सिवा घूमता हूं और शास्त्रीय संगीत भी सुनता हूं, नए संगीत में भी रुचि रखता हूं.

डॉ. प्रणय रॉय के साथ इंटरव्यू में अयोध्या के बारे में...

अटल बिहारी वाजपेयी : अयोध्या में जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है. यह नहीं होना चाहिए था. हम उसे रोकना चाहते थे लेकिन रोक नहीं पाए. हम उसके लिए माफी मांगते हैं.

डॉ. प्रणय रॉय : आप क्यों सफल नहीं हुए, क्या हुआ?
अटल बिहारी वाजपेयी : क्योंकि कुछ करसेवक हमारे कंट्रोल से बहार निकल गए. वह कुछ ऐसा कर गए जो नहीं करना चाहिए था. पूरी तरह साफ़ आश्वासन दिया गया था कि किसी भी हालत में विवादित स्थल पर कोई भी तोड़फोड़ नहीं होने दी जाएगी लेकिन इस आश्वासन का पालन नहीं किया गया. इसलिए हम माफ़ी मांगते हैं.

1996 में सरकार गिर जाने के बाद लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी के शानदार भाषण के कुछ अंश
हम भी अपने देश की सेवा कर रहे हैं. अगर हम देशभक्त नहीं होते, अगर हम नि:स्वार्थ भाव से राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयास न करते और हमारे इस प्रयास के पीछे 40 साल की साधना है. यह कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, यह कोई चमत्कार नहीं हुआ है. हमने मेहनत की, हम लोगों में गए हैं, हमने संघर्ष किया है. यह 360 दिन चलने वाली पार्टी है, यह कोई चुनाव में खड़ी होने वाला पार्टी नहीं है और आज हमें अकारण कटघरे में खड़ा किया जा रहा है क्योंकि हम थोड़ी सी ज्यादा सीटें नहीं ले पाए. हम मानते हैं हमारी कमज़ोरी है. हमें बहुमत मिलना चाहिए था. राष्ट्रपति ने हमें अवसर दिया, हमने उसका लाभ उठाने की कोशिश कि लेकिन हमें सफलता नहीं मिली वह अलग बात है. लेकिन फिर भी हम सदन में सबसे बड़े विरोधी दल के रूप में बैठेंगे और आपको हमारा सहयोग लेकर सदन चलना पड़ेगा, यह बात समझ लीजिये. लेकिन सदन चलाने में और ठीक से चलाने में हम आपको सहयोग देंगे यह आश्वासन देते हैं. लेकिन सरकार आप कैसे बनाएंगे, वह सरकार कैसे चलेगी वह मैं नहीं जनता. आप सारा देश चलाना चाहते हैं, बहुत अच्छी बात है, हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं. हम देश की सेवा के कार्य में लगे रहेंगे. हम संख्या बल के सामने सर झुकाते हैं और आप को विश्वास दिलाते हैं  कि जो कार्य हमने अपने हाथ में लिया है वह जबतक राष्ट्रीय उद्देश्य पूरा नहीं कर लेंगे तब तक विश्राम नहीं करेंगे, आराम से नहीं बैठेंगे. अध्यक्ष महोदय, मैं अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति महोदय को देने जा रहा हूं.

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