गुजरात में गोधरा कांड के बाद 2002 में बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषियों की रिहाई के मामले में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है और दोषियों की रिहाई का बचाव किया है. गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि राज्य ने अपनी क्षमा नीति के तहत ही उनकी रिहाई की मंजूरी दी थी. राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि तीसरी पार्टी इस मामले में केस दायर नहीं कर सकती है. गुजरात सरकार ने कहा है कि इस केस से सुभाषिणी अली का कोई लेना देना नहीं है. उनकी याचिका राजनीति से प्रेरित है. वह एक साजिश है.
इससे पहले के कई केस में कोर्ट का फैसला है कि क्रिमिनल मामले में PIL नहीं डाला जा सकता है. दोषियों को पहले छोड़ने के खिलाफ इस याचिका को खारिज किया जाए, तब भी हम बताना चाहेंगे कि 11 दोषियों को रिमिशन(क्षमा) राज्य सरकार ने अपने अधिकारों के तहत दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस पर राज्य ने विचार किया. अमृत महोत्सव प्लान के तहत रिमिशन नहीं दी गई है.
बताया गया कि 1992 के नियमों के मुताबिक़ जिस राज्य में अपराध हुआ वहां से निर्णय के लिए कहा गया है. CRPC 432 qJ 433 से राज्या का अधिकार बनता है. केंद्र ने भी हरी झंडी दी क्योंकि CRPC 435 के तहत अगर किसी मामले की जांच केंद्रीय एजेंसी करें तो केंद्र की सहमति चाहिए होती है. आरोपियों का व्यवहार जेल में अच्छा पाया गया था.
मुंबई में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को 21 जनवरी 2008 को सामूहिक बलात्कार और बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा. बता दें कि मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को इस साल 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा कर दिया गया था.
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