- बिहार की GDP में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान मात्र 5-6 प्रतिशत है जो चिंताजनक स्थिति है
- राज्य के उद्योगपति अपनी फैक्ट्रियां बिहार के बजाय दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों में लगाना पसंद करते हैं
- बिजली संकट, नीतिगत अस्थिरता, भूमि और लॉजिस्टिक्स जैसी समस्याएं औद्योगिक विकास की प्रमुख बाधाएं हैं
बिहार में चुनाव की सरगर्मी जैसे-जैसे बढ़ रही है, विकास के वादों की गूंज हर तरफ से सुनाई दे रही है. लेकिन इस गूंज के बीच एक बड़ा सवाल गुमसुम तरीके से मुंह बाए खड़ा है. देश का तीसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य होने के बावजूद औद्योगिक मोर्चे पर इतनी फिसड्डी क्यों है? बिहार में उद्योगों के नाम पर इतना सन्नाटा क्यों है? आंकड़े बताते हैं कि बिहार की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान महज 5-6 पर्सेंट है. यह एक ऐसा आंकड़ा है, जो न सिर्फ चौंकाता है बल्कि गंभीर सवाल भी उठाता है.
बिहार ने दिए कई दिग्गज उद्योगपति
बिहार के लोग देश ही नहीं, दुनिया में भी अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रहे हैं. देश की ब्यूरोक्रेसी से लेकर हर क्षेत्र में बिहार के लोग ऊंचाइयां छू रहे हैं. बिहार ने देश को कई नामी उद्योगपति दिए हैं. वेदांता के अनिल अग्रवाल और एल्केम के संप्रदा सिंह जैसे दिग्गज उद्योगपति भी इस धरती की देन हैं. लेकिन ऐसा क्या है कि उनके खुद के कारखानों की चिमनियां बिहार में नहीं, बाहर धधक रही हैं.

अपने ही राज्य में उद्योग क्यों नहीं लगाते
चुनावी मंचों पर विकास की बात होती है, लेकिन औद्योगिक मोर्चे पर तस्वीर बिल्कुल उलट है. फैक्ट्रियों की कमी बिहार की सबसे बड़ी विडंबना है. बिहार के दिग्गजों की फैक्ट्रियां बिहार में नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों में धधकती हैं. पटना की रिटेल चेन कंपनी आदित्य विजन को छोड़ दें तो राज्य में एक भी प्रमुख लिस्टेड मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी नहीं है.
उद्योगों की राह के सबसे बड़े कांटे
एक्सपर्ट्स का मानना है कि बिहार में औद्योगिक विकास की रुकावटें दशकों पुरानी हैं. नीतिगत स्थिरता की कमी, बिजली संकट, भूमि और लॉजिस्टिक्स संबंधी जटिलताएं निवेशकों के कदम रोक लेती हैं. CII बिहार के चेयरमैन गौरव साह कहते हैं कि स्टॉक मार्केट में बिहार में सिर्फ 2 लिस्टेड कंपनिया हैं. पारंपरिक रूप से बिहार के उद्यमियों ने ब्रांडों के बजाय संपत्तियां बनाई. बाजार तक बेहतर पहुंच और आसान नियम-कानूनों की वजह से वे अपनी कंपनियां दिल्ली, कोलकाता या मुंबई जैसे शहरों में लगाना पसंद करते हैं. साह का हालांकि कहना है कि अब स्थिति बदल रही है. इंडस्ट्री में कॉन्फिडेंस का रिवर्स फ्लो हो रहा है. लोकल इन्वेस्टर और उद्यमी लौट रहे हैं, राज्य में बिजनेस जमा रहे हैं और पब्लिक मार्केट में प्रवेश कर रहे हैं.
अब नई पीढ़ी और नीतिगत सुधारों से उम्मीद
उद्योग जगत की उम्मीदें अब उस नई पीढ़ी से हैं जो डिजिटली एक्सपर्ट है, ब्रांड की अहमियत पहचानती है और पैसों के सही इस्तेमाल को लेकर सचेत है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि राज्य सरकार की इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट प्रमोशन पॉलिसी और BIADA के तहत प्लग एंड प्ले पार्क अफसरशाही को कम करके निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं. टैक्स छूट, सब्सिडी और जल्दी जमीन आवंटन जैसे कदम भी उत्साह बढ़ाने वाले हैं. एथेनॉल, टेक्सटाइल, फूड प्रोसेसिंग और क्लीन एनर्जी जैसे सेक्टरों में शुरुआती नतीजे दिख भी रहे हैं, लेकिन असल चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि नीतियों पर सही तरीके से अमल हो.
(इनपुट- श्रीमि चौधरी की रिपोर्ट)
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