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भारतीय न्याय संहिता Vs ममता का अपराजिता महिला एवं बाल कानून; यहां जानिए डिटेल

‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024’ शीर्षक वाले इस प्रस्तावित कानून का उद्देश्य बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नये प्रावधानों के जरिये महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा मजबूत करना है.

भारतीय न्याय संहिता Vs ममता का अपराजिता महिला एवं बाल कानून;  यहां जानिए डिटेल
नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल विधानसभा (West Bengal Legislative Assembly) में मंगलवार को 'अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक' सर्वसम्मति से पारित हो गया. इस कानून के तहत बलात्कार और हत्या के मामलों में या बलात्कार के ऐसे मामलों में जहां पीड़िता को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, आरोपी को मौत की सजा का प्रावधान है. विधानसभा में भाजपा ने वादे के अनुसार, विधेयक का समर्थन किया और मत विभाजन की मांग नहीं की. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि यह शर्म की बात है कि प्रधानमंत्री वह काम नहीं कर सके जो उनकी सरकार ने किया. हालांकि अब चर्चा शुरू हो गयी है कि ममता बनर्जी की सरकार के द्वारा लाए जा रहे नए कानून के मसौदे और भारतीय न्याय संहिता के कानूनों में से कौन अधिक सख्त हैं. 

भारतीय न्याय संहिता Vs ममता का कानून

रेप के दोषियों पर क्या होगी कार्रवाई?
भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 64 में इसका उल्लेख है. इसके तहत कम से कम 10 साल और अधिकतम उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है. बंगाल सरकार की तरफ से लाए जा रहे कानून अपराजिता बिल में उल्लेख है कि दोषी को ताउम्र जेल या सजा-ए-मौत और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. 

रेप से पीड़ित की मौत या स्थायी दिव्यांगता के मामले में क्या है सजा?
भारतीय न्याय संहिता (BNS) के  (सेक्शन 66) में इसका जिक्र है. इसके तहत कम से कम 20 साल की सजा और अधिकतम उम्रकैद या मृत्युदंड का प्रावधान है. ममता बनर्जी की सरकार की तरफ से जो बिल लाए गए हैं उसके तहत 
सजा-ए-मौत और जुर्माना का प्रावधान है. 

गैंगरेप में क्या है सजा का प्रावधान? 
भारतीय न्याय संहिता BNS सेक्शन 70 (1 ) में इसका जिक्र किया गया है. कम से कम 20 साल का कठोर कारावास. अधिकतम उम्रकैद और जुर्माना का प्रावधान है. ममता सरकार की तरफ से लाए जा रहे कानून में ताउम्र कैद या सजा-ए-मौत और जुर्माना का प्रावधान है. 

बंगाल के बिल में जांच और सुनवाई फार्स्ट बनाने पर जोर
बंगाल सरकार की तरफ से लाए गए बिल में बीएनएस की धारा 193 में संशोधन करने की मांग की गयी है. बंगाल सरकार की तरफ से लाए जा रहे बिल में 21 दिनों में जांच को पूरा करने की बात कही गयी है. केस डायरी के लिए 15 दिनों के समय की बात है. चार्जशीट 30 दिन के भीतर दायर करने की बात भी कही गयी है. 

स्पेशल कोर्ट की स्थापना की मांग
बंगाल सरकार की तरफ ले लाए गए बिल में विशेष अदालत की बात भी कही गयी है. यह अदालत रेप से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई करेगी. बीएनएस के अंतर्गत इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है

अपराजिता टास्क फोर्स के गठन की बात
प्रस्ताविक कानून में अपराजिता टास्क फोर्स के नाम से एक विशेष टास्क फोर्स  के गठन की बात कही गयी है. इस टास्क फोर्स का नेतृत्व डीएसपी लेवर के अधिकारी करेंगे. 

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