बेंगलुरु में प्लास्टिक के कचरे से निपटने का रास्ता निकाल लिया है. हमारे रोज़मर्रा की इस्तेमाल के बाद कचड़े में फेंकी गई दूध की पैकेट के साथ साथ ऐसी दूसरी बेकार प्लस्टिक का इस्तेमाल यहां की सड़क बनाने में की जा रही है. एक किलोमीटर में एक टन प्लास्टिक यानी छोटे शहरों की समस्या चुटकी बजाते ही दूर हो जाएगी. बेंगलुरु के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा के दूसरे टर्मिनल के सामने बन रही इस सड़क में प्लास्टिक की अहम भूमिका है. प्लास्टिक को बीटोंमेन और पत्थर के टुकड़ों के साथ मिलाया गया है. अनुपात तक़रीबन 7 फीसदी प्लास्टिक और 93 फीसदी बीटामिन और दूसरे मैटेरियल्स का है लेकिन एक लेन वाली एक किलोमीटर में लगभग एक टन प्लाटिक का कचड़ा खप जाता है.
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एक किलोमीटर रोड में एक टन कचड़ा प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. दूध के इस्तेमाल किये हुए पैकेट के साथ साथ बिस्किट, चॉकलेट के रैपर और इस जैसे दूसरे प्लाटिक के कचड़े को साफ़ कर इस तरह के टुकड़ों में मशीन से काटा जाता है. फिर गर्म भट्टी में ख़ौला कर सड़क बनाने में इस्तेमाल होने वाले दूसरे मैटेरियल्स जैसे बीटोंमेन और गिट्टी में मिलाया जाता है.
बेंगलुरु में पहले इस तरह प्लास्टिक का इस्तेमाल कर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रयोग किया गया जो काफी सफल रहा. पाया गया कि इन सड़कों में गड्ढे भी आमतौर पर नही बनते. प्लास्टिक की वजह से रोड मॉइश्चर को बनाये रखती है. सामान्य रोड से सस्ता भी है. प्लास्टिक का इस्तेमाल रोड बनाने में एक अच्छा विकल्प है. इससे पर्यावरण की हिफाज़त भी होगी और बेकार प्लास्टिक से छुटकारा पाने का रास्ता भी निकलेगा.
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