
- बैरन आइलैंड में अंडमान निकोबार में स्थित भारत का इकलौता ज्वालामुखी है जो एक हफ्ते में दो बार सक्रिय हुआ.
- यह ज्वालामुखी करीब 200 सालों से ज्यादा समय तक निष्क्रिय था और 1991 में एक विस्फोट के बाद फिर सक्रिय हुआ था.
- सितंबर में हुए विस्फोटों से पहले क्षेत्र में भूकंप आया था जो गहरी भूगर्भीय गतिविधियों का संकेत देता है.
आज हम आपको भारत के अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में एक ऐसे ज्वालामुखी के बारे में बताने जा रहे हैं जो हफ्ते में दो बार एक्टिव होता है. बैरन आइलैंड में स्थित यह ज्वालामुखी देश का इकलौता एक्टिव ज्वालामुखी है. बैरन आइलैंड एक छोटा सा द्वीप है. यूं तो अंडमान अपने आप में कई खूबियों की वजह से दुनिया में मशहूर है लेकिन यह ज्वालामुखी अंडमान के साथ ही साथ बैरन आईलैंड को भी सुर्खियों में रखे हैं.
200 सालों तक सोया था
बैरन आइलैंड अंडमान और निकोबार के मुख्य द्वीपों से दूर उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह द्वीप करीब 3.5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसे किसी भी स्थायी मानव बस्ती से अलग रखा गया है. द्वीप के बीचों-बीच स्थित ज्वालामुखी लगभग 354 मीटर ऊंचा है और समुद्र तल से इसकी चोटियों तक इसका स्ट्रक्चर पूरी तरह आग की चट्टानों और लावा के बहने से बनी हैं. बैरन आईलैंड पर मौजूद यह ज्वालामुखी पिछले दिनों एक नहीं बल्कि एक हफ्ते में दो बार फटा है. बताते हैं कि यह ज्वालामुखी 200 सालों से ज्यादा समय से सोया पड़ा था. लेकिन साल 1991 में हुए एक ब्लास्ट के बाद यह फिर ये एक्टिव हो गया. उसके बाद पिछले दिनों इसमें दो ब्लास्ट हुए जोकि काफी मामूली थे.
एक हफ्ते में दो बार धधका
ब्लास्ट भले ही मामूली बताए जा रहे हैं लेकिन जियोलॉजिस्ट्स इसे नजरअंदाज करने के मूड में नहीं हैं. उनकी मानें तो यह ब्लास्ट धरती के नीचे हो रही गहरी गतिविधियों की तरफ इशारा करते हैं. न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार आईलैंड पर स्थित ज्वालामुखी 13 और 20 सितंबर को फटा था. 20 सितंबर को हुए विस्फोट से दो दिन पहले 4.2 तीव्रता का भूकंप आया था, जो भारतीय प्लेट और म्यांमार में आया था. बैरन आइलैंड अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है. जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह निर्जन है. वैज्ञानिक इसे 'टिप ऑफ द आइसबर्ग' मानते हैं, यानी इसके संकेत सिर्फ ज्वालामुखी की सक्रियता का प्रारंभिक संकेत हो सकते हैं.
पहली बार 1787 में धधका
अंडमान और निकोबार प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, बैरेन द्वीप ज्वालामुखी में पहला विस्फोट 1787 में हुआ था. आखिरी बार ज्वालामुखी 2017 में फटा था. इसके बाद 1991 में एक बड़े विस्फोट से पहले यह 204 वर्षों तक निष्क्रिय रहा. ज्वालामुखी साल 2005, 2017 और 2022 में फिर से एक्टिव हुआ. एक विशेषज्ञ ने कहा कि इस क्षेत्र की अस्थिर टेक्टोनिक्स, रुक-रुक कर होने वाले विस्फोटों के पीछे हो सकती है. राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक ओपी मिश्रा ने अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि भ्रंश के निर्देशांक बैरन द्वीप ज्वालामुखी के अक्षांश के साथ संरेखित हैं और भूकंप के देशांतर के करीब स्थित हैं. इसकी वजह से मैग्मा कक्ष में 'समय से पहले मैग्मा विस्फोट' होने की संभावना बनी हुई है.
काफी संवेदनशील है जगह
साल 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी ने भी इसके बाद छोटी और बड़ी ज्वालामुखी गतिविधियों को जन्म दिया था. बैरन द्वीप पूरी से सूनसान है लेकिन यहां पर कई ऐसी वनस्पतियां पाई जाती हैं जो कहीं नही मिलती हैं. ज्वालामुखी का एक्टिव होना मछुआरे और कभी-कभी पर्यटकों को भी दूर से नजर आता है.
चमकता हुआ ज्वालामुखी साहसिक पर्यटक कभी-कभी दूर से इसकी चमक देख लेते हैं. यहां के संवेदनशील और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यहां पर किसी का भी आना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इस द्वीप पर मूंग की दिवारों के अलावा कई तरह की दुर्लभ मछलियों की प्रजातियां और समुद्री जीवन मौजूद हे. इसके अलावा द्वीप पर कुछ पक्षियों और छोटे वन्यजीवों की मौजूदगी भी दर्ज की गई है.
सुरक्षा और निगरानी
चूंकि यह द्वीप सक्रिय ज्वालामुखी का स्थल है, इसलिए यहां किसी भी तरह की अनियंत्रित गतिविधि खतरे का कारण बन सकती है. भारतीय नौसेना और जलसैन्य विभाग इस द्वीप की निगरानी करते हैं. इसके अलावा, मौसम विभाग और वोलकैनो रिसर्च इंस्टीट्यूट नियमित तौर पर इस क्षेत्र पर नजर रखते हैं. किसी भी अप्रत्याशित गतिविधि की चेतावनी जारी करते हैं.
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