तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है (प्रतीकात्मक चित्र)
नई दिल्ली:
तीन तलाक पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ मे ऐतिहासिक सुनवाई शुरू हुई. कोर्ट विचार करेगा कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. यह सुनवाई छह दिनों में समाप्त होगी. इस बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने कहा है कि तीन तलाक को प्रतिबंधित करने से मुस्लिम महिलाओं को लाभ नहीं होगा.
उन्होंने कहा, ‘अगर तीन तलाक को गैरकानूनी बनाया जाता है तो जो अपनी पत्नियों को पेरशान करना चाहते हैं वे ऐसा करना जारी रखेंगे और अपनी पत्नियों को वैवाहिक अधिकार देना बंद कर देंगे. इससे कई जटिलताएं होंगी और महिलाओं की हैसियत और गरिमा खतरे में पड़ जाएगी.’
उमरी इस्लामी मंच जमात-ए-इस्लामी हिन्द के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने दोहराया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की समस्या को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है और आकंड़े इस दावे का समर्थन नहीं करते हैं कि यह समस्या मुस्लिम समुदाय में सर्वव्यापी है.
पर्सनल लॉ बोर्ड का यह बयान उस वक्त आया है जब सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. 11 मई, गुरुवार को पांच जजों की संविधान पीठ ने ट्रिपल तलाक से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई शुरु कर दी है. खास बात यह है कि सुनवाई करने वाले सभी जज अलग-अलग धर्मों से हैं और मुद्दे की अहमियत को देखते हुए गर्मियों की छुट्टी में भी इस पर सुनवाई करने का फैसला किया गया है.
(इनपुट भाषा से भी)
उन्होंने कहा, ‘अगर तीन तलाक को गैरकानूनी बनाया जाता है तो जो अपनी पत्नियों को पेरशान करना चाहते हैं वे ऐसा करना जारी रखेंगे और अपनी पत्नियों को वैवाहिक अधिकार देना बंद कर देंगे. इससे कई जटिलताएं होंगी और महिलाओं की हैसियत और गरिमा खतरे में पड़ जाएगी.’
उमरी इस्लामी मंच जमात-ए-इस्लामी हिन्द के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने दोहराया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की समस्या को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है और आकंड़े इस दावे का समर्थन नहीं करते हैं कि यह समस्या मुस्लिम समुदाय में सर्वव्यापी है.
पर्सनल लॉ बोर्ड का यह बयान उस वक्त आया है जब सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. 11 मई, गुरुवार को पांच जजों की संविधान पीठ ने ट्रिपल तलाक से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई शुरु कर दी है. खास बात यह है कि सुनवाई करने वाले सभी जज अलग-अलग धर्मों से हैं और मुद्दे की अहमियत को देखते हुए गर्मियों की छुट्टी में भी इस पर सुनवाई करने का फैसला किया गया है.
(इनपुट भाषा से भी)
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