अयोध्या की विवाद से जुड़ी पहचान का पटाक्षेप, गतिमान हो रही राम की जन्मभूमि

अयोध्या का तीर्थ के रूप में जितना बड़ा नाम है, वह यहां देखने को नहीं मिलता था, 9 नवंबर 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया माहौल

नई दिल्ली:

अयोध्या (Ayodhya) में सरयू नदी के घाट राम की पैड़ी में दिवाली जैसा माहौल हो गया है. अक्सर दिवाली पर इस तरह का त्यौहारनुमा जश्न होता है. यहां लगता है पांच  अगस्त को ही जैसे दिवाली का जश्न मनाया जा रहा हो. एक  ऐसा शहर जिसकी पहचान विवाद बनकर रह गई थी वहां आज एक हल निकला है और शहर में उसी पर बात हो रही है. यह विवाद 9 नवंबर 2019 को खत्म हो गया. ट्रस्ट बन गया और जो भी होना था, हो रहा है. और अब 5  अगस्त को राम मंदिर (Ram Mandir) का भूमिपूजन भी हो जाएगा. 

अयोध्या में 5 अगस्त को दोपहर साढ़े बारह बजे से दो बजे तक यह कार्यक्रम होने वाला है. मंच पर प्रधानमंत्री समेत सिर्फ पांच लोग होंगे. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी मंच पर होंगे. डेढ़ सौ से अधिक लोगों को निमंत्रण पर भेजे गए हैं. इससे ज्यादा लोगों को अनुमति नहीं दी जाएगी. निमंत्रण पर खास सिक्यूरिटी कोड होगा. यानी जिसके नाम पर निमंत्रण पत्र है वही अंदर जा सकता है. मोबाइल,कैमरा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बैन हैं. रंगमहल बैरियर तक ही गाड़ियां जा सकेंगी. भूमिपूजन के लिए 135 संतों को निमंत्रण दिया गया है. नेपाल से भी संत आएंगे. इकबाल अंसारी को भी न्योता दिया गया है. पद्मश्री मोहम्मद शरीफ को भी बुलाया गया है. कई नदियों, समुद्रों का जल आया है. शिवसेना की तरफ से एक करोड़ का दान दिया गया है. 

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राम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा है कि ''देश की करीब 36 आध्यात्मिक परंपराओं के 136 संतों को निमंत्रण भेजा है. यह आध्यात्मिक परंपराएं भारत के भूगोल का लगभग प्रत्येक हिस्सा स्पर्श करती हैं. नेपाल के संत भी आएंगे. जनकपुर का बिहार से उत्तर प्रदेश से अयोध्या से रिश्ता है. जानकी जी जनकपुर की थीं, वहां के जानकी मंदिर के महंत जी आएंगे. ''

अयोध्या टिपिकल उत्तरप्रदेश का छोटा सा टाउन है. यहां लोग धीरे खाते हैं, धीरे बोलते हैं, धीरे चलते हैं. सब कुछ धीरे-धीरे होता है. लेकिन अब एक गति दिखी, सड़कों के किनारे पोस्टर लग जाना. दिवाली जैसा नजारा, एक फर्क दिखा अयोध्या में. 

सन 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान राम की पैड़ी पर ऐसी चकाचौंध नहीं थी. उसके बाद सरकारें बदलीं और बीजेपी का एक बड़ा एजेंडा राम मंदिर था. अयोध्या का लहजा वही है लेकिन सड़कों, इमारतों में थोड़ी तेजी दिख रही है. अयोध्या पीले रंग से रंग दी गई है. रामचंद्र जी के भजन बज रहे हैं. सड़कों पर बच्चे राम-सीता बनकर घूमते दिख जाएंगे. इसके अलावा कोरोना का कहर है तो सैनिटाइज करती हुई सरकारी गाड़ियां भी मिल जाएंगी. अयोध्या पहले उजाड़ दिखता था. सड़कें बना दी गई हैं, लेकिन विकास नहीं था. अयोध्या का तीर्थ के रूप में जितना बड़ा नाम है, वह यहां देखने को नहीं मिलता था.  

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अयोध्या में रहने वाले हिन्दू-मुसलमानों में एक जबर्दस्त समन्वय है. अयोध्या में कभी उनके बीच विवाद नहीं था लेकिन इस पर एक विवाद थोप दिया गया. इसकी पहचान अब बदलेगी. अब साफ है कि राम मंदिर यहां है, अब विवाद नहीं है. पहले अयोध्या में हमेशा विवादित ढांचा कहा जाता था. यहां स्थानीय लोगों में विवाद नहीं है. कार सेवक तो बाहर से ही आए थे. उस समय आंदोलन था, भावनाएं थीं और जो होना था वह हुआ.  

बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी को राम मंदिर के भूमिपूजन का निमंत्रण दिया गया है. उन्होंने कहा कि ''अयोध्या में जो तहजीब है, वह यहां बरकरार है. हमारा हिंदू-मुसलमानों में कोई विवाद नहीं है. मुकदमा 70 साल चला, लोअर कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट. नौ नवंबर को पूरी दुनिया ने देख लिया कि मंदिर-मस्जिद का फैसला हो चुका है. सारे मुसलमानों ने सम्मान किया. अब कोई विवाद रह ही नहीं गया.'' 

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अंसारी ने कहा कि ''अयोध्या में गंगा-जमुनी तहजीब है. साधु संतों में हमारा सम्मान रहा, हम भी सम्मान करते हैं, उन्हीं के बीच रहते हैं. प्रधानमंत्री को हम हिंदू धर्म की प्रमुख किताब रामचरित मानस भेंट करेंगे. अयोध्या धर्म की नगरी है. मंदिर बन जाएगा, विकास की भी जरूरत है. साधु-संतों को तो मंदिर चाहिए लेकिन गृहस्थों के लिए भी कारोबार जरूरी है.''