अयोध्या मामले में मध्यस्थता को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामला शुक्रवार को मध्यस्थता के लिए भेज दिया. न्यायालय ने शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफ एम आई खलीफुल्ला को मध्यस्थता के लिये गठित तीन सदस्यीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है. सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि पैनल के अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर (Sri Sri Ravi Shankar) और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद श्री श्री रविशंकर (Sri Sri Ravi Shankar) की पहली प्रतिक्रिया आई है. श्री श्री रविशंकर ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से कहा है कि उन्हें सबका सम्मान करते हुए समाज में समरसता कायम करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना है. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में ट्वीट किया है.
उन्होंने लिखा- सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना- इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है.
सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना - इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है।#AyodhyaVerdict
— Sri Sri Ravi Shankar (@SriSri) March 8, 2019
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या मामले में मध्यस्थ नियुक्त किए जाने पर श्री श्री रविशंकर ने कहा कि मैंने अभी यह न्यूज सुना. मुझे लगता है कि यह देश के लिए अच्छा होगा. मध्यस्थता ही एक मात्र रास्ता है.
Sri Sri Ravishankar on being appointed in Ayodhya mediation panel by Supreme Court: I just heard of this news, I think this will be good for the country, mediation is the only way pic.twitter.com/aj2mQAKE4i
— ANI (@ANI) March 8, 2019
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होगी और यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जानी चाहिए. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. पीठ ने कहा कि मध्यस्थता करने वाली यह समिति चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट दायर करेगी. पीठ ने कहा कि यह प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ‘अत्यंत गोपनीयता'' बरती जानी चाहिए और प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं करेगा. पीठ ने कहा कि मध्यस्थता समिति इसमें और अधिक सदस्यों को शामिल कर सकती है और इस संबंध में किसी भी तरह की परेशानी की स्थिति में समिति के अध्यक्ष शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को इसकी जानकारी देंगे.
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 याचिकाएं दायर हुई हैं. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाए.
VIDEO: अयोध्या केस में जानिए क्यों होगा मध्यस्थता से फैसला
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