"सभी नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी" : गहलोत ने SC की टिप्पणी का किया स्वागत

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून देश में 10 सितंबर 2013 को यूपीए सरकार के दौरान लागू हुआ था. इसका उद्देश्य लोगों को गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित कराना है, ताकि लोगों खाद्य और पोषण सुरक्षा दी जा सके.

गहलोत ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का दायरा वर्तमान जनसंख्या के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए.

जयपुर:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि केंद्र इस बात को सुनिश्चित करे कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (National Food Security Act) के तहत अनाज अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे. कोई भी व्यक्ति भूखे पेट न सोए. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी का स्वागत किया है. गहलोत ने कहा, 'सभी नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराना हर सरकार की जिम्मेदारी है.'

अशोक गहलोत ने इस बारे में एक खबर शेयर करते हुए ट्वीट किया, 'सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं. हमारी केंद्र सरकार से निरंतर मांग रही है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का दायरा वर्तमान जनसंख्या के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए. सभी नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराना हर सरकार की जिम्मेदारी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान "कोई भूखा ना सोए" के संकल्प के साथ सभी को भोजन उपलब्ध कराया.'

गहलोत ने लिखा कि आज भी राज्य में करीब 900 इंदिरा रसोई संचालित हैं जहां 8 रुपये में भरपेट भोजन मिलता है, जिसमें राज्य सरकार 17 रुपये प्रति थाली अनुदान देती है.' 

बता दें कि शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि एनएफएसए के तहत खाद्यान्न अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे. हम ऐसा नहीं कह रहे कि केंद्र कुछ नहीं कर रहा. केंद्र सरकार ने कोविड के दौरान लोगों तक अनाज पहुंचाया है. हमें यह भी देखना होगा कि यह जारी रहे. हमारी संस्कृति है कि कोई खाली पेट नहीं सोए. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कोविड और लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को हुई परेशानियों पर सुनवाई हो रही थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की.

2013 में लागू हुआ था खाद्य सुरक्षा कानून  
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून देश में 10 सितंबर 2013 को यूपीए सरकार के दौरान लागू हुआ था. इसका उद्देश्य लोगों को गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित कराना है, ताकि लोगों खाद्य और पोषण सुरक्षा दी जा सके. इस कानून के तहत 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को कवरेज मिला है, जिन्हें बेहद कम कीमतों पर सरकार द्वारा अनाज मुहैया कराया जाता है. सरकार प्रति व्यक्ति प्रति माह 1-3 रुपये प्रति किलोग्राम पर पांच किलोग्राम खाद्यान्न प्रदान करती है. इस अधिनियम के तहत व्यक्ति को चावल 3 रुपये, गेहूं 2 रुपये और मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है. 

तीन तरह के अधिकारों की गारंटी देता ये कानून
यह अधिनियम तीन तरह के अधिकारों की गारंटी देता है. इसके अंतर्गत बच्चों को पोषण आहार देना, मातृत्व लाभ देना तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए सस्ते दर पर खाद्य पदार्थ देना शामिल है. जिला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र भी स्थापित किया गया है, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके. बिहार जैसे राज्यों में इस अधिनियम को लागू करने से आम लोगों को काफी लाभ मिला है. 

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