
- अरुणाचल प्रदेश के सारली गांव की 12 वर्षीय मिली याबी ने सैनिक स्कूल सियांग में प्रवेश हासिल कर नई मिसाल पेश की
- सेना ने सीमावर्ती गांवों के बच्चों को सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा के लिए व्यापक मेंटॉरशिप प्रोग्राम शुरू किया
- इस कार्यक्रम में 33 छात्रों को चयनित कर 88 कक्षा, 18 मॉक टेस्ट और परामर्श सत्र आयोजित किए गए थे
अरुणाचल प्रदेश के सुदूरवर्ती जनजातीय गांव सारली की 12 वर्षीय मिली याबी ने सैनिक स्कूल सियांग में प्रवेश प्राप्त कर एक नई मिसाल कायम की है. यह सफलता पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है और इस बात का प्रमाण भी कि सही मार्गदर्शन और अवसर से दूरस्थ इलाकों के बच्चे भी असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं.
करीब 1,500 की आबादी वाला सीमा गांव सारली, ईटानगर से लगभग 350 किलोमीटर दूर स्थित है. सीमित भौगोलिक और शैक्षिक संसाधनों के बावजूद यहां के बच्चों में सेना में शामिल होने का उत्साह सदैव बना रहता है. इसका एक बड़ा कारण इस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के जवानों की प्रतिबद्धता और समर्पण की भावना भी है. इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए भारतीय सेना की स्पीयर कोर ने मई 2024 में सीमावर्ती गांवों के विद्यार्थियों को सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा (एनटीए द्वारा आयोजित) के लिए तैयार करने हेतु एक व्यापक मेंटॉरशिप कार्यक्रम शुरू किया है.
इस पहल के अंतर्गत कक्षा 5 और 8 के 33 विद्यार्थियों का चयन कर उन्हें सुनियोजित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया गया. सितंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक 88 कक्षाएं, 18 मॉक टेस्ट और परामर्श सत्र आयोजित किए गए थे. विद्यार्थियों को इंटीग्रेशन एवं मोटिवेशनल टूर पर भी ले जाया गया, जहां उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के माननीय राज्यपाल से मुलाकात की और राज्य के महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थानों का दौरा किया. सेना ने परीक्षा के लिए आवश्यक अध्ययन सामग्री तैयार करने में सहयोग किया और छात्रों को अप्रैल 2025 में ईटानगर ले जाकर परीक्षा दिलाई.

इस पहल का अभूतपूर्व परिणाम सामने आया जब 33 में से 32 अर्थात 99% विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त की. परामर्श की प्रक्रिया जारी रहते हुए 18 अगस्त 2025 को मिली याबी पहली छात्रा बनीं, जिन्होंने सैनिक स्कूल ईस्ट सियांग में अपना अंतिम चयन सुनिश्चित किया. सेना को विश्वास है कि आगामी चरणों में और 4–6 विद्यार्थी प्रवेश प्राप्त करेंगे.

भारतीय सेना को मिली याबी की उपलब्धि पर गर्व है. यह न केवल सीमावर्ती समुदायों की आकांक्षाओं का प्रतीक है, बल्कि अरुणाचल के युवाओं की जिजीविषा और सामर्थ्य को भी दर्शाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. मिली की यात्रा यह सिद्ध करती है कि मार्गदर्शन और अवसर मिलने पर सबसे दूरस्थ और सीमित सुविधावाले गांव भी भविष्य के नेतृत्वकर्ताओं को जन्म दे सकते हैं. संभावना है कि आने वाले समय में मिली राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़कवासला में भी चयनित हों और सेना की वर्दी में राष्ट्र को अपनी सेवा समर्पित करे.
यह वर्षभर चला सतत प्रयास भारतीय सेना की राष्ट्र निर्माण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता और नेशन फर्स्ट की भावना को और सुदृढ़ करता है.
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