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This Article is From Jul 03, 2022

अमरनाथ यात्रा : कश्मीरी मुस्लिम ने खोजी थी अमरनाथ गुफा, पहले उन्हीं का परिवार करवाता था श्रद्धालुओं को यात्रा

इस साल सरकार ने सुरक्षा के बेहद कड़े इंतज़ाम किए हैं, जिससे यहां रहने वालों और सैलानियों दोनों को दिक़्क़त हो रही है.

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95 साल के गुलाम नबी मलिक ने 60 साल तक अमरनाथ यात्रा करवाई.

श्रीनगर:

दो साल बाद अमरनाथ यात्रा शुरू हो गई है. बीते दो साल कोरोना के साये की वजह से ये यात्रा प्रभावित हुई. अब जब ये यात्रा फिर से शुरू हुई है तो हम आपको ऐसी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो भाईचारे, मोहब्बत, कश्मीरियत और साझा संस्कृति को दिखाती है. पहलगाम के बाटाकोट गांव में 95 साल के गुलाम नबी मलिक वही प्रार्थना करते हैं जो वो अमरनाथ की पवित्र गुफा में किया करते थे. दो साल बाद अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, इससे उनकी यात्राएं ले जाने की और उनके परिवार की गुफा के साथ पुरानी यादें ताज़ा हो गईं, जो इनके परदादा बूटा मलिक ने खोजी थी.

95 साल के गुलाम नबी मलिक ने 60 साल तक अमरनाथ यात्रा करवाई. उनके पास वो तोहफ़ा भी है जो महाराजा हरि सिंह ने उन्हें पवित्र गुफा में साल 1947 में दिया था.

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मलिक अमरनाथ गुफा के साथ अपने परिवार का नाता बयान करते हैं और बताते हैं कि कैसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच रिश्ते और गहरे हुए, जब साल 1850 में बूटा मलिक ने पवित्र गुफा को ढूंढा जहां क़ुदरती तौर पर बर्फ़ शिवलिंग के रूप में जमी हुई थी. साल 2005 तक मलिक परिवार ही यात्राएं करवाता था लेकिन फिर अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने उस परम्परा को ख़त्म कर दिया.

गुलाम नबी मलिक बताते हैं कि शायद 70 साल पहले मैं रानी के साथ यात्रा पर गया था, वहां हमने पूजा करवाई थी. रानी ने उन्हें खजूर से भरी एक थाली दी.

मलिक परिवार के लिए, बूटा मलिक अब भी श्रद्धेय आत्मा हैं और उनके बारे में कई आध्यात्मिक अनुभव बताते हैं. मलिक परिवार का कहना है कि मौजूदा सुरक्षा नियमों से पहले बहुत से यात्रियों की यात्रा पूरी नहीं होती थी जब तक वो उनके घर न आएं.

इस साल सरकार ने सुरक्षा के बेहद कड़े इंतज़ाम किए हैं, जिससे यहां रहने वालों और सैलानियों दोनों को दिक़्क़त हो रही है। घाटी में पहले से ही कड़ी सुरक्षा है, उसके ऊपर अर्द्धसैनिक बलों की 350 अतिरिक्त कंपनियां यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात की गई हैं। लेकिन मलिक और कई दूसरे कश्मीरियों के लिए सुरक्षा को यात्रा पर हावी नहीं होना चाहिए क्योंकि ये कश्मीर की साझा संस्कृति की एक मिसाल है.

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