नीतीश कुमार की खामोशी से नाराज है सहयोगी भाजपा, अग्निपथ योजना के विरोध के निशाने पर है भाजपा

सरकार की नई सेना भर्ती योजना का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार में उनके गठबंधन सहयोगी नीतीश कुमार के बीच एक बड़े अहम् के टकराव में तब्दील होता दिख रहा है.

नीतीश कुमार की खामोशी से नाराज है सहयोगी भाजपा, अग्निपथ योजना के विरोध के निशाने पर है भाजपा

अग्निपथ योजना के खिलाफ आक्रोशित देशभर के युवा

पटना:

केंद्र सरकार अपनी नई अग्निपथ योजना के तहत जवानों की भर्ती को लेकर अडिग नजर आ रही है. और जहां तक बिहार का सवाल है तो तमाम हिंसक विरोध के बावजूद यह मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार में उनके गठबंधन सहयोगी नीतीश कुमार के बीच एक बड़े अहम् के टकराव में तब्दील होती जा रही है. जाहिर है कि भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री के अग्निपथ योजना के सैद्धांतिक विरोध से नाराज है. नीतीश कुमार ने अपना विरोध पार्टी के राष्ट्रीय प्रमुख राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और एक अन्य वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा के ट्वीट के माध्यम से व्यक्त किया है.

इतना ही नहीं नीतीश कुमार के एक वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कैमरे के सामने जा कर केन्द्र से अपील की कि उन्हे प्रदर्शनकारियों से बात करनी चाहिए.  भाजपा की नाराजगी इन तथ्यों से भी भड़क गई कि इस मुद्दे पर नीतीश कुमार की चुप्पी के बाद जनता दल-यूनाइटेड पार्टी के नेताओं के एक वर्ग ने राज्य में विरोध प्रदर्शन को हवा दी जिसकी वजह से रेलवे जैसे केंद्र के प्रतिष्ठानों पर हिंसक हमले हुए. ये एक आम सहमति है कि नीतीश कुमार की सरकार की निष्क्रियता की वजह से तोड़फोड़ हुई औऱ भाजपा के आधा दर्जन कार्यालयों पर भी हमला किया गया. विधायकों को भी परेशान किया गया.

बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शनिवार को साफ तौर पर ये आरोप लगाया कि प्रशासन ने आंखें मूंद लीं हैं. उन्होंने अपने दावे को साबित करने के लिए मीडिया के लिए मधेपुरा का एक वीडियो चलाया जहां बिहार पुलिस के जवानों की मौजूदगी में पार्टी कार्यालय पर हमला किया गया था. नीतीश कुमार के खिलाफ भाजपा की मुख्य शिकायत यह है कि तमाम हिंसक विरोध के बावजूद वो खामोश रहे और अधिकारियों को प्रदर्शनकारियों से निपटने का निर्देश भी नहीं दिया. भाजपा नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री ने न तो एक ट्वीट ही किया और न ही शांति बनाए रखने और शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए एक बयान जारी किया.  

संजय जायसवाल की टिप्पणियों का नीतीश कुमार के करीबी राजीव रंजन ने तुरंत ही खंडन किया. उन्होंने भाजपा नेता पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इस तरह के आरोपों के लिए उनका "मानसिक असंतुलन" जिम्मेदार है.  

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मामले में कूद पड़े और कहा कि बिहार की जनता भाजपा और जदयू के बीच तनाव का खामियाजा भुगत रही है. उन्होंने हिंदी में ट्वीट किया, " बिहार जल रहा है और दोनों दल के नेता मामले को सुलझाने के बजाए एक दूसरे पर छींटाकशी और आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त हैं."  

कई भाजपा नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार गठबंधन में होने के बावजूद कई मुद्दों पर पार्टी की नीति से असहमत रहे हैं जैसे अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला, जाति जनगणना, या इतिहास की किताबों में संशोधन का मुद्दा हो. दरअसल नीतीश कुमार अभी भी गुस्से से भरे हुए हैं भाजपा को उनके पतन की साजिश रचने के लिए माफ नहीं कर पाए हैं. जदयु का मानना है कि नवंबर,2020 के राज्य चुनावों में शीर्ष भाजपा नेतृत्व का  चिराग पासवान के साथ मौन समझौता था और यही कारण था कि चिराग पासवान की पार्टी ने केवल उन सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए जहां जनता दल-यूनाइटेड के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. गौरतलब है कि जिन सीटों पर बीजेपी लड़ रही थी वहां लोजपा ने अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए थे.  

नीतीश कुमार के समर्थकों का कहना है कि सीट-बंटवारे का काम भाजपा के पास था जिसने बिहार के मुख्यमंत्री के कद को छोटा करने के लिए षडयंत्र रची. और ये हकीकत है कि भाजपा आंशिक रूप से सफल भी रही क्योंकि जद (यू) चुनाव नतीजों में तीसरे स्थान पर रहा.  नीतीश कुमार ने अपने गुस्से में सभी शिष्टाचारों को नजरअंदाज कर दिया. जब उनके सहयोगी नितिन नबीन पर रांची में हमला किया गया था तो उन्होंने हाल-चाल भी नहीं पूछा. हालांकि, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तुरंत पूछताछ की और उनकी सुरक्षा में अतिरिक्त लोगों को भेजने का भी वादा किया. 

इस बार यहां तक कि नीतीश कुमार के समर्थकों ने स्वीकार किया है कि निष्क्रियता और चुप्पी की वजह से उनकी छवि मे किसी तरह का सुधार नहीं हुआ है . बहरहाल, शुक्रवार शाम को लंबे समय के अंतराल के बाद उन्होंने दो अहम फैसले लिए जैसे 19 जिलों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया और प्रशासन को प्रदर्शनकारियों से निपटने का निर्देश दिया. उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि जानबूझकर लगातार दो दिन तक खामोशी बरती गई.  

उनकी छवि को तब और चोट पहुंची जब नाराज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दो उपमुख्यमंत्रियों और कई विधायकों सहित दस नेताओं को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने का फैसला लिया. यह दरअसल राज्य की कानून और व्यवस्था की स्थिति न निपट पाने की राज्य सरकार की क्षमता पर एक आरोप ही था. लगातार जारी किए जा रहे प्रेस विज्ञप्तियों में रेलवे ने स्पष्ट रूप से बिहार में मौजूदा कानून और व्यवस्था को ही जिम्मेवार ठहराया जिसकी वजह से न तो ट्रेन समय पर चल पा रही थी और न ही रेलवे संपत्ति और यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी ही मिल पा रही थी. रेलवे विभाग को रिकॉर्ड संख्या में ट्रेनों को रद्द करना पड़ा जिसके बाद लगातार तीन दिनों तक दिन के दौरान ट्रेनों की आवाजाही नहीं हुई. यह निश्चित ही अभूतपूर्व है लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि केंद्र को अब नीतीश कुमार पर भरोसा नहीं है. 

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नीतीश कुमार बनाम पीएम मोदी की यह लड़ाई हर दिन की तरह संदेहास्पद होती जा रही है. भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार से अनुरोध किया कि वे यह ऐलान करें कि बिहार पुलिस में अग्निवीरों के लिए भर्ती में दस प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था होगी. लेकिन नीतीश कुमार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. नीतीश कुमार के समर्थकों का कहना है कि इसकी घोषणा करने का मतलब वस्तुतः केंद्र सरकार की नई नीति का समर्थन करना होगा. नतीजतन अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ गुस्से और विरोध को आमंत्रित करना होगा जो फिलहाल भाजपा तक सीमित है. 

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