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FSL रिपोर्ट सिर्फ पुष्टिकारी साक्ष्य, इससे ज़मानत का अधिकार नहीं मिलता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

यह आदेश जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने आवेदक रणधीर की दूसरी जमानत याचिका को खारिज करते हुए दिया.

FSL रिपोर्ट सिर्फ पुष्टिकारी साक्ष्य, इससे ज़मानत का अधिकार नहीं मिलता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने NDPS एक्ट से जुड़े मामले में फॉरेंसिक विज्ञान लैब रिपोर्ट को कपुष्टिकारी साक्ष्य माना
  • इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि FSL रिपोर्ट न होने से आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता
  • कोर्ट ने कहा कि इस धारा के तहत जमानत तभी दी जा सकती है जब कोर्ट को विश्वास हो जाए कि आरोपी दोषी नहीं
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इलाहाबाद:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट से जुड़े एक मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अहम कानूनी स्थिति स्पष्ट की है. इस मामले में कोर्ट ने कहा है कि फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (FSL) की रिपोर्ट केवल पुष्टिकारी साक्ष्य होती है और इसे आरोप पत्र के साथ न जोड़ने मात्र से आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता. खासकर जब मामला व्यावसायिक मात्रा का हो. यह फैसला जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज थाने में दर्ज NDPS केस में आरोपी रणधीर की दूसरी जमानत याचिका को खारिज करते हुए सुनाया.

क्या है मामला? जानिए

रणधीर को 2023 में हरियाणा नंबर की एक डीसीएम ट्रक से 151.600 किलोग्राम गांजा ले जाते हुए पकड़ा गया था. यह मात्रा NDPS एक्ट के तहत व्यावसायिक श्रेणी में आती है. आरोपी के खिलाफ धारा 8/20 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. रणधीर की पहली जमानत याचिका 12 अगस्त 2024 को खारिज हो चुकी थी. वहीं दूसरी याचिका में उसने तर्क दिया कि वह दिहाड़ी मजदूर है और आरोप पत्र में FSL रिपोर्ट न होने के कारण उसे जमानत मिलनी चाहिए.

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने साफ किया कि FSL रिपोर्ट की अनुपस्थिति आरोप पत्र को अधूरा नहीं बनाती, जब जांच अधिकारी के पास पहले से पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हों. इस रिपोर्ट केवल पहले से एकत्रित साक्ष्यों की पुष्टि करती है. कोर्ट ने यह भी दोहराया कि NDPS एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत तभी दी जा सकती है जब यह साबित हो जाए कि आरोपी दोषी नहीं है. सरकारी वकील ने दलील दी कि गांजा की बरामदगी जानबूझकर की गई थी और FSL रिपोर्ट बाद में केस डायरी का हिस्सा बना दी गई थी, जो CRPC की धारा 293 के तहत स्वीकार्य है.
 

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