नई दिल्ली:
पिछले साल 16 दिसंबर की रात को चलती बस में 23-वर्षीय पैरा-मेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के चारों दोषियों विनय, मुकेश, पवन और अक्षय को फांसी की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने इस वारदात को जघन्यतम अपराध बताते हुए दोषियों के प्रति नरमी बरतने से साफ इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटना सहन करने लायक नहीं है।
चारों को सजा-ए-मौत देते हुए जज योगेश खन्ना ने कहा कि आखिरी क्षण तक लड़की को टॉर्चर किया गया। वह एक असहाय महिला थी... ऐसा अपराध बर्दाश्त नहीं किया जा सकता... हम ऐसे जघन्य अपराध पर आंखें मूंदें नहीं रह सकते।
जज ने कहा, अन्य अपराधों पर चर्चा के अलावा, मैं सीधे आईपीसी की धारा 302 (हत्या) पर आता हूं। यह दोषियों के अमानवीय स्वभाव के अंतर्गत आता है और उन्होंने जो अपराध किया है, उसकी गंभीरता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। चारों दोषियों को मौत की सजा दी जाती है। जज ने कहा कि मुकेश सिंह (26), अक्षय ठाकुर (28), पवन गुप्ता (19) और विनय शर्मा (20) द्वारा किया गया अपराध दुर्लभतम श्रेणी में आता है, जिसके लिए सजा-ए-मौत जरूरी है।
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बचाव पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की बात कही है। वहीं दिल्ली पुलिस ने भी इस फैसले पर संतुष्टि जताई है।
पीड़िता के माता-पिता ने इस फैसले पर संतुष्टि जताई और कहा कि लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार न्याय की जीत हुई है। इससे पहले, पीड़ित की मां यह भी कह चुकी थी कि दोषियों के चेहरों पर कोई पछतावा नजर नहीं आता, इसलिए उन्हें फांसी ही मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया था कि उनकी बेटी ने मरने से पहले दोषियों को जिंदा जला डालने की इच्छा जताई थी।
पीड़ित लड़की की मां ने यहां तक कहा था कि जब इन लोगों ने उनकी बेटी को नहीं बख्शा, तो इन पर भी कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए। बुधवार को सजा पर बहस पूरी होने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले में छह आरोपी थे, जिनमें से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी, जबकि एक नाबालिग को इसी महीने तीन साल की सजा सुनाकर स्पेशल होम में भेजा गया है।
अभियोजन पक्ष ने चारों दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी, जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने अलग-अलग तर्क देकर रहम की अपील की थी। पीड़ित परिवार ने भी इन दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी।
फैसले के दौरान कोर्ट के बाहर कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। सुरक्षाबलों की तीन कंपनियां, दो डीसीपी, छह एसीपी, 15 इंस्पेक्टर और तकरीबन छह पुलिस थानों के आधे पुलिस कर्मचारी इंतजाम देख रहे थे। पुलिस पूरे माहौल की वीडियोग्राफी भी करवा रही थी।
फैसले के बारे में जानने के लिए बड़ी तादाद में लोग अदालत परिसर के बाहर जमा थे और जैसे ही सजा की घोषणा हुई, तो लोग नारे लगाने लगे कि मामले में किशोर न्याय बोर्ड द्वारा दोषी ठहराए गए नाबालिग को भी फांसी देनी चाहिए। नाबालिग आरोपी को 31 अगस्त को दोषी ठहराया गया और सुधार गृह में तीन साल गुजारने की सजा सुनाई गई।
पिछले साल 16 दिसंबर की रात राम सिंह, विनय, अक्षय, पवन, मुकेश और नाबालिग ने पैरा-मेडिकल छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया था। चलती बस में लड़की और उसके 28-वर्षीय दोस्त के साथ मारपीट की गई। पीड़िता के दोस्त सॉफ्टवेयर इंजीनियर को भी काफी चोट आई थी। 29 दिसंबर, 2012 को लड़की ने सिंगापुर की एक अदालत में दम तोड़ दिया।
राम सिंह (34) मार्च में जेल में मृत पाया गया और उसके खिलाफ मामला बंद कर दिया गया। इस घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया और विरोध प्रदर्शन होने लगे। इसके बाद केंद्र और दिल्ली सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने, ऐसी घटनाओं को रोकने और मामलों के त्वरित निपटारे के लिए कई तरह के कदम उठाए।
(इनपुट एजेंसियों से भी)
चारों को सजा-ए-मौत देते हुए जज योगेश खन्ना ने कहा कि आखिरी क्षण तक लड़की को टॉर्चर किया गया। वह एक असहाय महिला थी... ऐसा अपराध बर्दाश्त नहीं किया जा सकता... हम ऐसे जघन्य अपराध पर आंखें मूंदें नहीं रह सकते।
जज ने कहा, अन्य अपराधों पर चर्चा के अलावा, मैं सीधे आईपीसी की धारा 302 (हत्या) पर आता हूं। यह दोषियों के अमानवीय स्वभाव के अंतर्गत आता है और उन्होंने जो अपराध किया है, उसकी गंभीरता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। चारों दोषियों को मौत की सजा दी जाती है। जज ने कहा कि मुकेश सिंह (26), अक्षय ठाकुर (28), पवन गुप्ता (19) और विनय शर्मा (20) द्वारा किया गया अपराध दुर्लभतम श्रेणी में आता है, जिसके लिए सजा-ए-मौत जरूरी है।
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बचाव पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की बात कही है। वहीं दिल्ली पुलिस ने भी इस फैसले पर संतुष्टि जताई है।
पीड़िता के माता-पिता ने इस फैसले पर संतुष्टि जताई और कहा कि लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार न्याय की जीत हुई है। इससे पहले, पीड़ित की मां यह भी कह चुकी थी कि दोषियों के चेहरों पर कोई पछतावा नजर नहीं आता, इसलिए उन्हें फांसी ही मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया था कि उनकी बेटी ने मरने से पहले दोषियों को जिंदा जला डालने की इच्छा जताई थी।
पीड़ित लड़की की मां ने यहां तक कहा था कि जब इन लोगों ने उनकी बेटी को नहीं बख्शा, तो इन पर भी कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए। बुधवार को सजा पर बहस पूरी होने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले में छह आरोपी थे, जिनमें से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी, जबकि एक नाबालिग को इसी महीने तीन साल की सजा सुनाकर स्पेशल होम में भेजा गया है।
अभियोजन पक्ष ने चारों दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी, जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने अलग-अलग तर्क देकर रहम की अपील की थी। पीड़ित परिवार ने भी इन दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी।
फैसले के दौरान कोर्ट के बाहर कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। सुरक्षाबलों की तीन कंपनियां, दो डीसीपी, छह एसीपी, 15 इंस्पेक्टर और तकरीबन छह पुलिस थानों के आधे पुलिस कर्मचारी इंतजाम देख रहे थे। पुलिस पूरे माहौल की वीडियोग्राफी भी करवा रही थी।
फैसले के बारे में जानने के लिए बड़ी तादाद में लोग अदालत परिसर के बाहर जमा थे और जैसे ही सजा की घोषणा हुई, तो लोग नारे लगाने लगे कि मामले में किशोर न्याय बोर्ड द्वारा दोषी ठहराए गए नाबालिग को भी फांसी देनी चाहिए। नाबालिग आरोपी को 31 अगस्त को दोषी ठहराया गया और सुधार गृह में तीन साल गुजारने की सजा सुनाई गई।
पिछले साल 16 दिसंबर की रात राम सिंह, विनय, अक्षय, पवन, मुकेश और नाबालिग ने पैरा-मेडिकल छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया था। चलती बस में लड़की और उसके 28-वर्षीय दोस्त के साथ मारपीट की गई। पीड़िता के दोस्त सॉफ्टवेयर इंजीनियर को भी काफी चोट आई थी। 29 दिसंबर, 2012 को लड़की ने सिंगापुर की एक अदालत में दम तोड़ दिया।
राम सिंह (34) मार्च में जेल में मृत पाया गया और उसके खिलाफ मामला बंद कर दिया गया। इस घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया और विरोध प्रदर्शन होने लगे। इसके बाद केंद्र और दिल्ली सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने, ऐसी घटनाओं को रोकने और मामलों के त्वरित निपटारे के लिए कई तरह के कदम उठाए।
(इनपुट एजेंसियों से भी)
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