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This Article is From Jun 27, 2022

AIADMK में वर्चस्व की लड़ाई : पन्नीरसेल्वम को हाशिये पर डालने के लिए हो सकती है बैठक

बता दें कि पार्टी के नंबर 2 और पूर्व मुख्यमंत्री ईपीएस पार्टी के महासचिव बनना चाहते हैं. पन्नीरसेल्वम या ओपीएस जबकि ऐसा नहीं चाहते और वह दोहरा नेतृत्व जारी रखना चाहते हैं.

AIADMK में वर्चस्व की लड़ाई : पन्नीरसेल्वम को हाशिये पर डालने के लिए हो सकती है बैठक
अन्नाद्रमुक में दो वरिष्ठों के विवाद से बढ़ी कलह

तमिलनाडु में अपने दो शीर्ष नेताओं के बीच सत्ता को लेकर भारी खींचतान में फंसी विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक ने पार्टी प्रमुख ओ पन्नीरसेल्वम को बर्खास्त या निष्कासित किए जाने की अटकलों के बीच बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि पन्नीरसेल्वम के प्रतिद्वंद्वी एडप्पादी पलानीसामी या ईपीएस ने बैठक बुलाई थी, हालांकि नोटिस में किसी का नाम नहीं है. पार्टी के नंबर 2 और पूर्व मुख्यमंत्री ईपीएस पार्टी के महासचिव बनना चाहते हैं. पन्नीरसेल्वम या ओपीएस जबकि ऐसा नहीं चाहते और वह दोहरा नेतृत्व जारी रखना चाहते हैं.

ओपीएस ने एक ट्वीट में बैठक को "अवैध" कहा और कहा कि इस तरह के कदम पर कॉर्डिनेटर और को कॉर्डिनेटर दोनों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए. वहीं ईपीएस खेमे का कहना है कि पार्टी में 'दोहरा नेतृत्व नहीं' है. उनके एक करीबी प्रवक्ता ने कहा, "ईपीएस पार्टी का संचालन करता है और इस बैठक में कुछ भीअवैध जैसा या गलत नहीं है."

अन्नाद्रमुक के एकमात्र प्रमुख के रूप में पदभार ग्रहण करने के ईपीएस के प्रयासों को पिछले सप्ताह उस समय झटका लगा जब मद्रास उच्च न्यायालय ने पार्टी नेताओं को अन्नाद्रमुक के आंतरिक चुनावों में पार्टी के एक नेता की चुनौती को लेकर बैठक में कोई भी निर्णय लेने से रोक दिया.

ये बैठक अराजक हो गई थी क्योंकि ईपीएस खेमे के वरिष्ठ नेताओं ने ओपीएस के सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया था और ईपीएस के महासचिव के रूप में पद ग्रहण का रास्ता साफ करने के लिए 11 जुलाई को एक नई जनरल काउंसिल की बैठक बुलाई गई है.

वरिष्ठ नेता सीवी क्षणमुगम ने जो कि ईपीएस शिविर में हैं ने बताया कि "अब ओपीएस केवल कोषाध्यक्ष है और ईपीएस मुख्यालय सचिव हैं.बता दें कि अन्नाद्रमुक पूर्व मुख्यमंत्री और अपनी नेता जे जयललिता, जिनका 2006 में निधन हो गया था कि मृत्यु के बाद से गुटबाजी और कलह से जूझ रही है. जयललिता ने दो बार ओपीएस को स्टैंड-इन सीएम बनाया था, जब उन्हें अदालत की सजा के बाद पद छोड़ना पड़ा था. उनकी मृत्यु के कुछ दिनों पहले उन्होंने एक बार फिर कार्यभार संभालने के लिए कदम रखा, लेकिन जयललिता की करीबी सहयोगी वीके शशिकला ने उनकी मृत्यु के बाद पार्टी की कमान संभाली
और उनके खिलाफ बगावत करने पर उन्हें बर्खास्त कर दिया था.

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