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This Article is From May 05, 2025

सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद अब रुकी हुई जलविद्युत परियोजनाओं में आ सकती है तेजी, बैठक जल्द

इस हफ्ते होने वाली बैठक में कुछ अन्य जुड़े हुए महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्रियों और अधिकारियों के भी शामिल होने की संभावना है. भारत की कोशिश है कि जम्मू कश्मीर में रुकी हुई पनबिजली परियोजनाओं में तेजी लाई जाए.

सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद अब रुकी हुई जलविद्युत परियोजनाओं में आ सकती है तेजी, बैठक जल्द
(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद अब रुकी हुई जलविद्युत परियोजनाओं में तेजी लाने की कोशिश की जा सकती है. यहां आपको बता दें कि इसी हफ्ते गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक और बड़ी बैठक होने की संभावना है. सिंधु जल संधि निलंबित करने के बाद से ही गृहमंत्री अमित शाह और जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल के बीच दो बैठकें हो चुकी हैं. 

इस हफ्ते होने वाली बैठक में कुछ अन्य जुड़े हुए महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्रियों और अधिकारियों के भी शामिल होने की संभावना है. भारत की कोशिश है कि जम्मू कश्मीर में रुकी हुई पनबिजली परियोजनाओं में तेजी लाई जाए. सिंधु जल संधि निलंबित होने से इनमें तेजी लाई जा सकती है. ऐसे में पिछले चार साल से रुके कई प्रोजेक्ट फिर से शुरू किए जा सकते हैं. 

सिंधु जल संधि के अनुसार भारत को कोई भी नया प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले पाकिस्तान को छह महीने का नोटिस देना जरूरी था. अब संधि निलंबित करने से ऐसा करना जरूरी नहीं है. साथ ही डेटा शेयर भी नहीं होगा. चेनाब और झेलम पर नए प्रोजेक्ट बनाना और वूलर झील को पुनर्जीवित करना अब संभव हो सकेगा.

सिंधु जल संधि इस काम में आड़े आ रही थी. जम्मू कश्मीर में छह पनबिजली परियोजनाओं के काम में तेजी आने की उम्मीद है. ये हैं वो परियोजनाएं -

  • सावलकोट परियोजना (1,856 मेगावाट) – चिनाब नदी पर, जम्मू-कश्मीर के रामबन और उधमपुर जिलों में प्रस्तावित
  • किर्थाई-I और II (कुल 1,320 मेगावाट)
  • पाकल दुल (1,000 मेगावाट)
  • रतले (850 मेगावाट)
  • बर्सर (800 मेगावाट)
  • किरू (624 मेगावाट)

इनके अलावा तुलबुल, बगलिहार, किशनगंगा, उड़ी, लोवर कलनाई जैसी अन्य परियोजनाओं के लिए भी यह महत्वपूर्ण होगा. पाकिस्तान संधि की वजह से इनके काम में रोड़े आते रहे हैं. जम्मू कश्मीर से दस हजार मेगावॉट तक अतिरिक्त बिजली उत्पादन संभव हो सकता है. साथ ही, मैदानी राज्यों में सिंचाई और पेयजल के लिए पानी की उपलब्धता कई गुना बढ़ सकती है. 

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