MCD में एल्डरमैन नियुक्त करने का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट तय करेगा कि नियुक्ति पर दिल्ली सरकार या LG किसका अधिकार होगा. सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या स्थानीय निकाय में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले लोगों का नामांकन केंद्र सरकार के लिए इतनी बड़ी चिंता है? LG को यह अधिकार दिया गया तो वह लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई एमसीडी को अस्थिर कर सकते हैं?
वहीं LG ने एल्डरमैन की नियुक्ति को सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि एल्डरमैन की नियुक्ति दिल्ली सरकार नहीं, बल्कि उनके अधिकार क्षेत्र में है. ये मामला निगम ऐक्ट के तहत आता है. इसमें अनुच्छेद 239 AA के तहत कैबिनेट की सलाह की जरूरत नहीं. इस मामले में संविधान का अनुच्छेद 243 लागू होता है. कोर्ट बुधवार को विस्तार से इस मामले पर सुनवाई करेगा.
दिल्ली सरकार की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पिछले 30 साल से एल्डरमैन को दिल्ली सरकार नियुक्त करती रही है. एलजी सिर्फ सलाहकार की भूमिका में थे. पहली बार एलजी ने एल्डरमैन नियुक्त किया है, जो नियम के खिलाफ है. दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 2 जनवरी 2023 को नोट जारी किया जाता है, जिस पर निगम मंत्रालय द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं और वह सीधे कहते हैं कि एलजी नॉमिनेट करेंगे. यह पहला ऐसा मौका है, जब सीधे एलजी ने नॉमिनेट किया है.
दिल्ली सरकार ने कहा पहले भी कई बार दिल्ली और केंद्र में अलग सरकार रही है, लेकिन तब भी LG ने दिल्ली सरकार की सलाह को माना था. कोर्ट ने ASG से पूछा कि कौन से पॉवर एलजी के हैं, जिसके तहत एलजी ने एल्डरमैन नियुक्त किए. क्या संविधान के GNCT एक्ट का 239 AA ये पॉवर देता है? LG की ओर से ASG संजय जैन ने कहा कि अनुच्छेद 243 (E) और (Q) के तहत ये अधिकार है. ये मामला दिल्ली सरकार नहीं, बल्कि निगम ऐक्ट के तहत आता है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद की सलाह पर दिल्ली नगर निगम में 10 एल्डरमेन को नामित करना चाहिए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी एमसीडी में एल्डरमेन के नामांकन को चुनौती देने वाली आप सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान की. CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने एलजी को दिए गए संविधान पीठ के फैसले के मुताबिक नया हलफनामा दाखिल करने को कहा. दरअसल, पिछले गुरुवार को संविधान पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन को चलाने वाले उपराज्यपाल के अधिकारों को सीमित किया था. संविधान पीठ ने कहा था कि उपराज्यपाल, मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेंगे.
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