दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में छोटा गुजरात बसा हुआ है. दरअसल यहां एक लाख से ऊपर गुजराती समाज के लोग रहते हैं. जब पूरा देश बदलाव के दौर से गुजर रहा है, तब भी इस समाज में महिलाओं की स्थिति वक्त के साथ ज्यादा बदली नहीं है. अपने रीति रिवाजों, भाषा को जीवित रखते इस समाज में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार से जुड़े कोर्स शुरू करवाने की आवश्यकता महसूस होती है.
कभी था जंगल और अब पैर रखने की भी जगह नही
दिल्ली में आदर्शनगर इलाके के आसपास हम सुबह सुबह जहांगीरपुरी के आसपास रहने वाली गुजराती महिलाओं को आदर्शनगर के घरों में साफ सफाई का काम करने के लिए निकलते हुए देख सकते हैं. जहांगीरपुरी में गुजराती लोगों ने बीस से तीस गज के मकानों की बस्ती बनाई हुई हैं, इस इलाके में गुजराती समाज के लोगों की संख्या एक लाख से ऊपर है और अपनी बस्ती को यह लोग मेडले कहते हैं.
फोटो क्रेडिट- श्रद्धा चौहान
मेडले में हमें लगभग सत्तर साल की अम्बा मिली, वह कहती हैं कि मुझे यहां रहते लगभग पचास साल हो गए होंगे. 12 साल की उम्र में जब मैं यहां शादी होकर आई, तब इस इलाके में बस वीरान जंगल ही था. दिन में भी लोग इस इलाके में आने से डरते थे, अब हालात यह हैं कि यहां लोगों की बेहिसाब बसासत की वजह से पैर रखने की भी जगह नही है. यहां हमारे साथ या हमारे बाद में आए गुजराती समाज के लोगों की तीसरी पीढ़ी भी रहने लगी है.
नशे के आदि पुरुष तो महिलाओं ने संभाला है घर का जिम्मा
26 साल की दीपा आर्दशनगर में लोगों के घर में साफ सफाई का काम करती हैं, वह कहती हैं कि मैं घर में अपने 2 साल के बच्चे को छोड़कर काम करने आती हूं. वह कहती हैं कि मैं यह काम शौक में नही करती, घर में मेरा पति दिन में नशे की हालत में रहता है, घरों में साफ सफाई के बाद मिलने वाले सात हजार रुपयों से घर का गुजारा चलता है. दीपा कहती हैं कि यहां मेडले में रहने वाले हमारे समाज के बहुत से पुरुष आजादपुर मंडी में काम करते हैं, उनमें से कई पुरुष नशे के आदि भी हैं.
तीस वर्षीय पुष्पा आदर्शनगर बाजार में सब्जी का ठेला लगाती हैं, वह कहती हैं कि पढ़ाई से बेहतर हमारे यहां अब भी खुद के काम को समझा जाता है इसलिए वक्त से पहले ही लड़के दिहाड़ी मजदूरी और लड़कियां साफ सफाई के काम में लग जाती हैं. वह कहती हैं कि हमारे समाज की लड़कियों में अब सोशल मीडिया का प्रभाव साफ दिखने लगा है, शादी से पहले वह जीन्स टॉप पहने दिखने लगी हैं.
हालांकि शादी के बाद वह साड़ी ही पहनती हैं. गुजराती त्योहारों पर बात करते पुष्पा के साथ ही सब्जी का ठेला लगाने वाली चालीस वर्षीय चंपा कहती हैं कि हमने अपने त्योहारों की धूम धाम बरकरार रखने के लिए पांच साल पहले ही मेडले में चंदे से मंदिर बनवाया है, अपना सबसे लोकप्रिय त्योहार नवरात्रि हम वहीं मनाते हैं और उसमें किया जाने वाला गरबा नृत्य भी सभी युवक युवतियां धूमधाम के साथ वहीं करते हैं.
फोटो क्रेडिट- श्रद्धा चौहान
आगे बात करते चंपा कहती हैं कि समय के साथ गुजराती समाज की महिलाएं अपनी सेहत को लेकर जागरूक होती आई हैं, कपड़े की जगह अब लगभग सभी महिलाएं पीरियड्स होने पर पेड का ही इस्तेमाल करती हैं. वह कहती हैं कि मेडले में कोई अलग अस्पताल नही है, जहांगीरपुरी का मोहल्ला क्लिनिक ही बीमारी में मेडले के लोगों का सहारा है.
मेडले की महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए क्या है आवश्यक!
पेशे से अध्यापक चेतन कहते हैं कि हमारे यहां युवाओं में नशे की लत और लड़कियों की अब भी जल्दी शादी होने का कारण शिक्षा का स्तर कम होना है. हां, कोरोना के बाद से क्षेत्र में शिक्षा का स्तर थोड़ा उठा जरूर है पर अब भी लोग पढ़ाई लिखाई से दूर रहते हैं. कोरोना काल में हमारे यहां के सरकारी स्कूल में गुजराती भाषा की पढ़ाई भी शुरू की गई थी. गुजराती समाज द्वारा भी यहां साल 2022 में एक स्कूल खोला गया है, जहां सौ से ऊपर बच्चे पढ़ते हैं. इस स्कूल में वृक्षारोपण, नाटक जैसे कार्यक्रमों से क्षेत्र के बच्चों में जागरूकता बढ़ रही है.
45 वर्षीय अशोक सोलंकी की मेडले के पास ही परचून की दुकान है, वह सामाजिक कार्यों में भी काफी सक्रिय रहते हैं. अशोक कहते हैं कि यहां बसी हुई अधिकतर आबादी गुजरात के पाटन जिले से है और शिक्षित न होने की वजह से यहां के लोगों को रोजगार के ज्यादा अवसर प्राप्त नही होते. बेरोजगारी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हमारे लोगों की यहां रहने वाली लगभग एक लाख की आबादी में मुश्किल से दस लोग सरकारी नौकरी में होंगे.
महिलाओं के अच्छे जीवन के लिए स्वरोजगार बेहद आवश्यक
इस कारण ही यहां के लोग जीवन की गाड़ी चलाने के लिए दूसरों के घरों में साफ सफाई व मंडी में मजदूरी करते हैं. अशोक कहते हैं कि हमारे यहां रहने वाली महिलाओं के अच्छे जीवन के लिए स्वरोजगार बेहद आवश्यक है. कमलानगर जैसे आसपास के इलाकों में मेहंदी लगाना, नेल आर्ट खूब चलन में है. मेडले की युवतियों को नया काम सीखने की रुचि भी है, यदि किसी संस्थान में इसका प्रशिक्षण दिया जाए तो यहां की महिलाओं का जीवन स्तर ऊंचा उठ सकता है.
राजीव नगर एक्सटेंशन में स्थित वंडर फाउंडेशन ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रद्धा चौहान कहती हैं कि वह दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह चला रही हैं. इसमें हम महिलाओं को सिलाई, ब्यूटी पार्लर संबंधित कार्य सिखाने के बाद, छोटी धनराशि देकर स्वरोजगार शुरू करने का मौका देते हैं. वह कहती हैं कि जहाँगीर पुरी के पास मेडले में रहने रहने वाली महिलाओं की भी यह काम सीख कर आगे बढ़ने में रुचि है और अब तक तीन चार महिलाओं ने हमसे यह काम सीखकर लोगों के घर में साफ सफाई का काम छोड़कर अपना सिलाई और ब्यूटी पार्लर का काम शुरू कर लिया है.
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