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    अतुल सुभाष सुसाइड केस : मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक संवेदनशीलता जैसे कई सवाल

    अतुल सुभाष केस पर मनोचिकित्सक अंकिता जैन कहती हैं कि आजकल का युवा अंदर से बेहद कमजोर पड़ता जा रहा है, उसकी सहनशक्ति समाप्त हो रही है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिसमें सबसे मुख्य कारण परिवारों का अलग थलग हो जाना है.

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    पैसा हो तो दुनिया सलाम करती है और अगर ना हो तो...पचास साल बाद 'अमीर गरीब'

    पचास साल पहले साल 1974 में रीलीज़ हुई 'अमीर गरीब' फ़िल्म बॉलीवुड की उन फ़िल्मों में शामिल रही, जिसमें कॉमेडी और सस्पेंस दोनों ही शामिल रहे हैं. मोहन कुमार द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में समाज के अंदर अमीर गरीब के बीच अंतर को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है

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    Freedom at Midnight Review: शानदार निर्देशन और स्क्रिप्ट राइटिंग का नमूना है 'फ्रीडम ऐट मिडनाइट'

    साल 1920 में पूर्ण स्वराज की मांग करने से लेकर साल 1947 में मिली आजादी तक के सफ़र को अलग अलग हिस्सों में बांटकर निर्देशक इस किताब को एक बेहतरीन वेब सीरीज का रूप देने में कामयाब रहे हैं.

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    आत्मनिर्भर महिलाओं की मांग करता दिल्ली में बसता एक गुजरात

    पेशे से अध्यापक चेतन कहते हैं कि हमारे यहां युवाओं में नशे की लत और लड़कियों की अब भी जल्दी शादी होने का कारण शिक्षा का स्तर कम होना है. हां, कोरोना के बाद से क्षेत्र में शिक्षा का स्तर थोड़ा उठा जरूर है पर अब भी लोग पढ़ाई लिखाई से दूर रहते हैं.

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    क्या लापता लेडीज के संवादों का कायल होगा ऑस्कर!

    लापता लेडीज, गांव की पृष्ठभूमि पर बनी ऐसी फिल्म जिसने समाज के ताने-बाने को एक बार फिर से उजागर कर दिया. डायलॉग तो बेहतरीन थे ही, कलाकारों ने भी शानदार अभिनय कर फिल्म में जान फूंक दी. अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से फिल्म को ऑस्कर में भेजने का फैसला लिया गया है.

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    इस स्वतंत्रता दिवस, महिलाओं की स्वतंत्रता बनी बड़ा मुद्दा

    जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय परिषद की सदस्य और लखनऊ में रहने वाली वरिष्ठ पत्रकार समीना खान कहती हैं यहां मसला मानसिकता का है, वही मानसिकता जो ढेरों-ढेर और चहुमुखी विकास के बाद और भी सयानेपन के साथ हमारे आपके बीच मौजूद हैं.

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    विश्व पुस्तक दिवस : किताबों से दूर मोबाइल के पास टीनएजर्स

    एक घटना का जिक्र करते आभा कहती हैं कि हाल ही में उन्हें एक लड़की मिली जो हाथ में चाकू पकड़े रहते थी, उसकी टीचर ने बताया कि वह बहुत गुस्सेल है और बिल्कुल भी सामाजिक नहीं है. उसके पापा ने कहा कि उनकी पत्नी नहीं है इसलिए उनकी बेटी स्कूल से बाकी वक्त में जब घर रहती है तो वह उसे मोबाइल देकर काम पर रहते हैं.

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    पढ़ें, देखें और सीखें, एक लघुकथा का फिल्म बन जाना

    सोशल मीडिया, इंटरनेट तक आसान पहुंच और मोबाइल ने आज फिल्ममेकर्स के लिए फिल्म बनाना आसान कर दिया है, अगर कंटेंट में दम हो तो उसे दर्शक मिल ही जाते हैं. मध्य प्रदेश के डिजिटल क्रेटर पलाश राइकवार ने लेखक अनुराग शर्मा की लघुकथा 'पागल' को एक शॉर्ट फिल्म का रूप दे दिया है.