नौकरशाहों की पोस्टिंग और तबादलों को लेकर फैसला लेने के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने और ऐसे मामलों पर उपराज्यपाल को अंतिम मध्यस्थ बनाने के लिए केंद्र की ओर से गुरुवार को एक अध्यादेश लाया गया. इसको लेकर दुनिया के कई मामलों का अध्ययन किया गया. पाया गया कि देश की सुरक्षा और घरेलू निवेश को चलाने के लिए दिल्ली की प्रमुख स्थिति महत्वपूर्ण है. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने NDTV को बताया कि दिल्ली में काम करने वाले नौकरशाहों की शिकायतें हैं, जो अक्सर दिल्ली के सीएम और एलजी के झगड़े में फंस जाते थे.
केंद्र ने देखा कि दुनिया भर में राजधानी शहरों की कैसी होती है व्यवस्था
अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने दुनिया भर के कई उदाहरणों को ध्यान से देखा है, विशेष रूप से वाशिंगटन डीसी, कैनबरा, ओटावा, बर्लिन और यहां तक कि पेरिस जैसी राजधानियों वाले शहरों को. ये शहर या तो संघीय सरकार द्वारा शासित हैं, वहां कोई निर्वाचित सरकार नहीं है और मेयर के नेतृत्व में प्रशासन है या फिर इनमें शासन के एक साझा मॉडल का पालन किया जाता है. सरकार के अधिकारियों ने कहा कि उनके आकलन के अनुसार पश्चिम के कई देशों की राजधानियों में भूमि के उपयोग की योजना, प्रमुख बुनियादी ढांचे के विकास और राजनयिक संबंधों सहित शहर के शासन के प्रमुख पहलुओं पर संघीय सरकार का अधिकार है.
एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, "हमने दुनिया भर के राजधानी शहरों को देखा है. उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है कि कैसे राजधानी शहरों को राष्ट्रीय दृष्टि से जोड़ा जाता है. यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि स्थानीय राजनीति पर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्राथमिकता दी जाए."
केंद्र का अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग सहित सेवाओं के मामलों में कार्यकारी शक्ति दिए जाने के बमुश्किल एक हफ्ते बाद आया है. अध्यादेश में हालांकि कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने सेवाओं के विषय से संबंधित किसी विशिष्ट संसदीय कानून की गैरमौजूदगी में फैसला सुनाया. केंद्र सरकार भी इस फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है.
केंद्र का तर्क है कि उसके दिल्ली को अपने नियंत्रण में रखने के लिए सुरक्षा और कूटनीतिक कारण
केंद्र का मानना है कि राष्ट्रीय राजधानी की दोहरी सत्ता और जिम्मेदारी सुरक्षा को खतरे में डाल देगी, समन्वय को प्रभावित करेगी, जो कि देश के प्रशासन के लिए आवश्यक है. और यह तभी स्पष्ट हो गया था जब 1991 में दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) घोषित किया गया था. उक्त अधिकारी ने कहा, "केंद्र राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए जिम्मेदार है, यही कारण है कि दिल्ली के प्रशासन पर नियंत्रण होने से प्रभावी समन्वय और राजधानी शहर में सुरक्षा उपायों का कार्यान्वयन सुनिश्चित होता है."
केंद्र की ओर से कहा गया है कि, ''दिल्ली के प्रशासन पर केंद्रीय नियंत्रण होने से केंद्र को विदेशों के दूतावासों और अन्य राजनयिक संस्थाओं के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि "स्थानीय हितों पर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी जाए." अधिकारियों ने कहा कि चूंकि केंद्रीय शासन नीति-निर्माण पर व्यापक दृष्टिकोण रखने के लिए जाना जाता है, इसलिए यह बड़ी संख्या में राजनयिक मिशनों की मेजबानी करने वाली राजधानी में व्यापक योजना के लिए फैसलों को आगे बढ़ा सकता है. एक अधिकारी ने कहा, "केंद्र सरकार देश को लाभ पहुंचाने वाले विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रभाव और राजनयिक संबंधों का इस्तेमाल कर सकती है."
अधिकारियों से लिया गया फीडबैक
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उठाए गए प्रमुख मुद्दों को लेकर सवाल उठाए गए हैं, वहीं केंद्र के अध्यादेश में उसके पास यह कदम उठाने के अपने कारण हैं और कई कारणों पर विचार भी किया गया है. एक अन्य अधिकारी ने कहा, "हमने नौकरशाहों, विशेष रूप से दिल्ली में काम करने वाले लोगों से व्यापक प्रतिक्रिया ली. कई लोगों ने हमें बताया कि वे कैसे कुशलता से काम करने में असमर्थ हैं और अक्सर केंद्र का पक्ष लेने का आरोप लगाए जाते हैं."
केंद्र का कहना है कि वह दिल्ली को आपात स्थिति से बेहतर तरीके से निपटने में मददगार
अधिकारियों ने यह भी कहा कि चूंकि केंद्र सरकार के पास दिल्ली में संसाधनों को कुशलतापूर्वक आवंटित करने और तैनात करने की शक्ति है, इसलिए प्राकृतिक आपदाओं या सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान एक केंद्रीकृत दृष्टिकोण शहर और इसके निवासियों के लिए बेहतर काम करेगा. उक्त अधिकारी ने कहा कि केंद्र परिवहन, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और सीमा पार के मामलों को संभालने में सक्षम है, यह क्षेत्र दिल्ली के विकास और कल्याण को प्रभावित करते हैं.
केंद्र ने कहा, नौकरशाही पर भारी राजनीति से रुक रहे फैसले
केंद्र के अनुसार, अध्यादेश इसलिए लाया जाना था क्योंकि हाल के वर्षों में निर्वाचित दिल्ली सरकार के केंद्र सरकार के साथ टकराव के कई उदाहरण सामने आए हैं. उसके अनुसार "विभिन्न क्षेत्रीय नियमों, विनियमों और विधानों से उत्पन्न होने वाली विसंगतियों को रोकने की जरूरत है जिससे संभावित संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं." दिल्ली में ब्यूरोक्रेसी और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार के बीच कई तरह की खींचतान हुई है. इससे कई तरह के गतिरोध पैदा हुए हैं. हाल ही में वरिष्ठ नौकरशाह आशीष मोरे ने भी परेशान किए जाने की शिकायत करते हुए केंद्र को पत्र लिखा था, जिसे 'आप' ने खारिज कर दिया है. सन 2018 के बाद केजरीवाल सरकार और नौकरशाहों के बीच विवाद के कई उदाहरणों में से यह एक है, जब पार्टी विधायकों की ओर से तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर हमला किया गया था.
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