प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
अगर विश्व के तापमान में चार डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होती है तो 30 प्रतिशत तक ऐसी आशंका है कि तापमान इतना अधिक हो जायेगा कि उत्तर भारत में सबसे गर्म महीनों में घर के बाहर का सामान्य कामकाज करना नामुमकिन हो जाएगा।
एक नये अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे के प्रति आगाह करते हुए कहा गया है कि अगर वैश्विक औसत तापमान में एक डिग्री की औसत वृद्धि होती है तो इस बात की 40 फीसदी आशंका है कि उत्तर भारत में गर्मी के मौसम में कोई बाहरी गतिविधियों में हिस्सा ले सके।
जलवायु वैज्ञानिकों, ऊर्जा विश्लेषकों और वित्त तथा सैन्य विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन के खतरों का स्वतंत्र आकलन जारी किया।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्लू) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और रिपोर्ट के लेखकों में से एक अरणाभा घोष ने कहा कि किसी भी सरकार को जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अहम फैसला ये लेना है कि इससे निपटने के लिए प्रयासों को कितना बढ़ाया जाना चाहिए। यह रिपोर्ट हावर्ड यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर द इंवाइरन्मेंट, सिंघुआ विश्वविद्यालय चीन, सीईईडब्लू और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एग्जिस्टेन्शल रिस्क के समन्वित कार्यों का नतीजा है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इसी तरह उच्च उत्सर्जन जारी रहा तो गंगा की तलहटी क्षेत्रों में छह गुना अधिक बाढ़ आएगी और सदी के अंत तक हर पांच साल में एक बार ऐसा होगा।
एक नये अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे के प्रति आगाह करते हुए कहा गया है कि अगर वैश्विक औसत तापमान में एक डिग्री की औसत वृद्धि होती है तो इस बात की 40 फीसदी आशंका है कि उत्तर भारत में गर्मी के मौसम में कोई बाहरी गतिविधियों में हिस्सा ले सके।
जलवायु वैज्ञानिकों, ऊर्जा विश्लेषकों और वित्त तथा सैन्य विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन के खतरों का स्वतंत्र आकलन जारी किया।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्लू) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और रिपोर्ट के लेखकों में से एक अरणाभा घोष ने कहा कि किसी भी सरकार को जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अहम फैसला ये लेना है कि इससे निपटने के लिए प्रयासों को कितना बढ़ाया जाना चाहिए। यह रिपोर्ट हावर्ड यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर द इंवाइरन्मेंट, सिंघुआ विश्वविद्यालय चीन, सीईईडब्लू और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ एग्जिस्टेन्शल रिस्क के समन्वित कार्यों का नतीजा है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इसी तरह उच्च उत्सर्जन जारी रहा तो गंगा की तलहटी क्षेत्रों में छह गुना अधिक बाढ़ आएगी और सदी के अंत तक हर पांच साल में एक बार ऐसा होगा।
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