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"17,500 फीट की ऊंचाई, चलती रहीं गोलियां" : टाइगर हिल विजय की कहानी महावीर योद्धा की ज़ुबानी

कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि हमारा नुकसान हुआ. हमारे 6 जवान शहीद हुए थे. घायल जवानों को नीचे लाना बहुत मुश्किल था.  

"17,500 फीट की ऊंचाई, चलती रहीं गोलियां" : टाइगर हिल विजय की कहानी महावीर योद्धा की ज़ुबानी
दुश्मनों को मार भगाया, 4 जुलाई 1999 में टाइगर हिल पर लहराया तिरंगा
नई दिल्ली:

करगिल युद्ध में सबसे ख़तरनाक लड़ाई थी टाइगर हिल की. जहां 17 हज़ार फ़ुट से ज़्यादा की ऊंचाई पर दुश्मन छुपा बैठा था. भारतीय सेना की टुकड़ी को कर्नल बलवान सिंह लीड कर रहे थे. 4 जुलाई को उनकी टीम ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहराया था. महावीर चक्र विजेता कर्नल बलवान सिंह से एनडीटीवी ने ख़ास बातचीत की. बता दें महावीर चक्र, परमवीर चक्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा बहादुरी सम्मान है. कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि आखिर उस दिन क्या हुआ था. उन्होंने कहा  'ये दिन ऐतिहासिक है. 3 जुलाई की रात टाइगर हिल की चढ़ाई शुरू की थी. दुश्मन ऊपर से वार कर रहा था. रस्सों के सहारे हम ऊपर पहुंचे और 'दुश्मन को मार भगाया.' 

"12 घंटे की चढ़ाई की..."

उन्होंने कहा करगिल जंग को पूरे 25 साल हो गए हैं. आज हम नेशनल वॉर मेमोरियल पर खड़े हैं. जो भी जवान हमने खोए थे, उन सबको श्रद्धांजलि अर्पित की है. टाइगर हिल जो था, आज का दिन हमारा हिस्टोरिक दिन है. मेरे को स्वभाग्य प्राप्त हुआ था घातक प्लाटून लीड करने का, और टाइगर हिल टॉप को कब्ज़ा करने का. 3 तारीख़ की रात को, हमने 12 घंटे की चढ़ाई शुरू की थी, जो कि पॉइंट 4460 से शुरू हुई थी. टाइगर हिल टॉप के ऊपर हमने फुटहोल्ड बनाया. गुत्थम-गुत्था की जो लड़ाई हुई हमारी, हैंड टू हैंड लड़ाई हुई थी. हमने 25 पाकिस्तानियों को खदेड़ कर मार भगाया था और टाइगर हिल टॉप के ऊपर हमने कब्ज़ा किया. 

इस दौरान वहां कैसा मौसम था और किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इस पर उन्होंने कहा कि टाइगर हिल की हाइट 17,500 फ़ुट है. इसके अलावा वहां माइनस 30 डिग्री का टेंपरेचर था. बारिश हो रही थी, स्नोफ़ॉल हो रहा था. 75 डिग्री की चढ़ाई थी. बिल्कुल खड़ी चढ़ाई थी. जिसमें हमने माउंटनेरीयरिंग इंस्ट्रूमेंट का भी यूज़ किया. बीच-बीच में बर्फ़ थी, जिसे पार करते हुए हमने चढ़ाई की. ऑक्सीजन लेवल बहुत कम था. हमारी लड़ाई सिर्फ़ दुश्मन से नहीं बल्कि वेदर से भी थी. 

'दुश्मन की तादात बहुत ज़्यादा थी'

उन्होंने बताया कि दुश्मन बहुत ज़्यादा तादात में ऊपर बैठा हुआ था, हमने ऊपर चढ़ाई शुरू की. ये एक बहुत ही मुश्किल टास्क था. पर हमने ट्रेनिंग पाई हुई थी कि देश सर्वोपरि है तो उसमें हमने कैप्चर किया.  तोलोलिंग पर हम 27 दिन थे. 21 मई से हमारी शुरुआत हुई तोलोलिंग से. शुरू से ही हम तोलोलिंग की लड़ाई में शामिल थे. हमारे 25 लोग शहीद हुए. 2 ऑफ़िसर, 2 जेसीओ और 21 जवान, कुल 25. हमने तोलोलिंग कैप्चर किया. एक आरटी शेल जो गिरा, उसमें मेरी प्लाटून के 12 जवान शहीद हुए और 8 घायल हुए. मैं भी उन्हीं के पास बैठा हुआ था. भगवान की दया से मुझे गोली नहीं लगी. टाइगर हिल के ऊपर मुझे ज़रूर पैर और हाथ में एक-एक गोली लगी. जज्बा इतना था, जो मोराल था, कि हमने बदला लेना है.

शुरू-शुरू में दुश्मन की जो इंफ़ॉर्मेशन थी बहुत कम थी. 4-5 मुजाहिद्दीन की ख़बर आई थी कि ऊपर बैठे हैं. जब ऊपर जाकर हमने तोलोलिंग के ऊपर हमला शुरू किया तो बहुत तादात में दिखे. तो धीरे-धीरे पता लगा कि वो तो बहुत ज़्यादा स्ट्रेंथ में हैं. फिर हमारी रिज़र्व कंपनी ऊपर आई, फिर हमने कैप्चर किया. 

'घायलों को नीचे लाना भी मुश्किल था'

कर्नल बलवान सिंह ने बताया कि हमारा नुकसान हुआ. हमारे 6 जवान शहीद हुए थे. घायल जवानों को नीचे लाना बहुत मुश्किल था.  फ़ील्ड ड्रेसिंग, मॉर्फ़ीन इंजेक्शन हमारे पास सब था. हमने फ़र्स्ट एड वहीं ली. लड़ाई में सब शामिल थे. लड़ाई जब ख़त्म हुई, तब हमने सबको नीचे पहुंचाया.

जब उनसे पूछा गया कि जीत के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी? इसपर उन्होंने कहा कि भारी कीमत चुकानी पड़ती है.हमें नीचे से ऊपर जाना था. वो हमारे ऊपर बार-बार पत्थर भी फेंक रहे थे. वो उस समय गोलियों जैसे लग रहे थे. लेकिन एकबार जब हमने टाइगर हिल टॉप कैप्चर कर लिया तो दुश्मन उसके बाद इधर-उदर तितर-बितर भाग खड़ा हुआ.

"जीत की ख़ुशी, साथियों को खोने का ग़म"

महावीर चक्र मिलने पर उन्होंने कहा कि टाइगर हिल से जब नीचे आए. 15 अगस्त को महवारी चक्र से नवाज़ा गया. इसमें काफ़ी ख़ुशी भी हुई थी. कई बार दुख होता है. जो हमारे बीच में आज नहीं हैं. जिनके कारण ये सब हुआ. ये टीम वर्क था. मैं उनका लीडर था, मैं सबको साथ लेकर चला. और हमने टाइगर हिल को कैप्चर किया . जिस पर सबकी नज़रें थीं कि ये कैप्चर हो जाएगा तो सीज़फ़ायर हो जाएगा. 

हमें तोलोलिंग और टाइगर हिल दोनों जगह तिरंगा फहराया था. हमें कई सम्मान मिले.. 1 परमवीर चक्र, 2 को महावीर चक्र, 6 वीर चक्र , 20 सेना मेडल समेत कुल 52 अवॉर्ड मिले थे. इसके अलावा हमें बैटल ऑफ ऑनर टोलोलिंग, बैटल ऑफ ऑनर टाइग्रे हिल और ऑनर ऑफ कारगिल भी मिला

कर्नल बलवान सिंह की उस समय आयु 24 साल की थी. उन्होंने कहा कि अभी भी वैसा ही जज्बा है आर्मी में. अब भी वैसा ही हौसला हैं. अब भी मौका मिला तो जाएंगे, मौका कहीं मिले तो छोड़नी नहीं चाहिए.  दुश्मन चाहे कितना भी ऊपर हो.  मार के दम लेंगे

मेरे एक हाथ और टांग में लगी गोली

टाइगर हिल पर हमारा चारों ओर से अटैक था. जब हम ऊपर पहुंचे तो वहां बहुत ज़्यादा तादात में एक गुफ़ा टाइप थी, उसमें से निकल कर आए. जो मेरा रेडियो ऑपरेटर था उसकी उंगली में एक गोली लगी. उसके बाद हमने बोफ़ोर्स का आरटी फ़ायर भी मांगा. वो हमारे ऊपर भी आ सकता था. इस फायर से दुश्मन डर गए और तितर-बितर होने लगे. फिर हमारा 10 से 15 मीटर के बीच फ़ायरिंग शुरू हुई. योगेंद्र यादव मेरे साथ थे, उनकी राइफ़ल हाथ से छूट गई थी. उनको 10-12 गोलियां लगीं, उसने उनकी रायफ़ल उठाई और फ़ायर शुरू कर दिया. मेरे एक हाथ में लगी एक टांग में लगी. लेकिन हमने जब तक वहां दुश्मन थे उनको खदेड़े बग़ैर हमने चैन की सांस नहीं ली. हमने तिरंगा फहराया.  जीत का सुकून है गर्व है, उसका गर्व हमारी यूनिट को है. देश को है, इंडियन आर्मी को है, सबको है.

Kargil War: Mahavir Chakra Winner Colonel Balwan Singh ने बताई Tiger Hill की पूरी कहानी NDTV पर

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