आज से 20 साल पहले, जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान एक 24 वर्षीय पत्रकार के रूप में मैंने भारतीय वायुसेना के मिराज 2000 लड़ाकू बम वर्षक विमानों में तीन बार उड़ान भरी थी. बेहद ऊंचे और दुर्गम इलाके में हो रही लड़ाई में भारतीय वायुसेना की भूमिका से जुड़ी खबरों को करने के लिए कुछ सख्त नियम बनाए गए थे - मुझे कभी भी मिराज विमानों में लगे एक इजरायली किट के महत्वपूर्ण हिस्से के बारे में रिपोर्ट नहीं करनी थी जिसे मैंने देखा या उसके बारे में सुना. यह एक जटिल बदलाव यानी मोडिफिकेशन था जिसने भारतीय वायुसेना को ऐसे दुर्गम इलाके में सटीक बमबारी करने में मदद की.
उपकरण का वह मुख्य टुकड़ा इजरायल लिटनिंग लेजर डिज़ाइनर पॉड था, जो एक अदृश्य बीम के साथ लक्ष्य को भेदता था. इस बीम के मार्ग को अनिवार्य तौर पर लेजर-निर्देशित बम द्वारा फॉलो किया जाता था. बम लेजर को ट्रैक करते हैं और प्रभाव के ठीक चयनित बिंदु पर उड़ान भरते हैं.
24 जून, 1999 को विंग कमांडर रघुनाथ नांबियार की अगुवाई में मिराज 2000 ने टाइगर हिल के शीर्ष पर पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर बम गिराए. भारतीय वायुसेना के इस हमले के कुछ मिनट बाद लक्ष्य को ध्वस्त कर दिया गया. इस युद्ध में भारतीय वायु सेना द्वारा पहली बार युद्ध में लेजर निर्देशित मूनिशन का इस्तेमाल किया गया था.
24 जून 2019 को टाइगर हिल हमले की 20 वर्षगांठ पर भारतीय वायुसेना ने मिराज को कैसे एकीकृत किया गया, इस पर विस्तार से जानकारी दी. इसमें से कुछ को पहली बार द इंडियन एक्सप्रेस ने कारगिल युद्ध की 18वीं वर्षगांठ पर रिपोर्ट किया था.
भारतीय वायुसेना के पश्चिमी वायु कमान के एयर मार्शल रघुनाथ नांबियार कहते हैं कि लिटेनिंग पॉड और 1,000 पाउंड लेजर निर्देशित बमों के एकीकरण को बाहर दिनों में पूरा किया गया था.
1997 में, कारगिल के युद्ध से दो साल पहले भारत ने इजराइल पॉड के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया था. इसके तहत जगुआर विमा के लिए पंद्रह और मिराज 2000 के लिए पांच पॉड खरीदे जाने थे. इनका उपयोग अमेरिका द्वारा आपूर्ति की गई पेववे लेजर गाइडेड बम किट के साथ किया जना था. लेकिन 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप, भारत ने कभी भी उन फ्यूज को प्राप्त नहीं किया, जिन्हें पेववे बमों का काम करने की आवश्यकता थी. इसके अलावा और क्या, मिराज 2000 के हिथयार वितरण प्रणाली से जुड़ा सॉफ्टवेयर कभी भी संशोधित नहीं किया गया था क्योंकि विमान को 1985 में फ्रांस से हासिल किया गया था.
'हमें इजराइल की मदद मिली' ऐसा कहना है एयर मार्शल नांबियर का. उन्होंने एक प्रक्रिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि जहां इजराइल के तकनीकी विशेषज्ञों ने भारतीय वायुसेना के विमान और सिस्टम परीक्षण प्रतिष्ठान (ASTE) के साथ कारगिल में हमलों के लिए लिटिनिंग / फुटपाथ संयोजन तैयार करने के लिए काम किया था. वे कहते हैं कि एकीकरण के साथ तीन समस्याएं थीं. हमने कभी लिटनिंग पॉड को एकीकृत नहीं किया था, पेववे तैयार नहीं था और हमारे पास सही फ़्यूज़ नहीं था.
भारतीय वायुसेना की समस्याओं को सुलझाने की प्रक्रिया एक दिन बाद नहीं हो सकती थी। भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों, जैसे मिग -27 और मिग -21, कारगिल की ऊंचाइयों पर अपने लक्ष्यों को सटीक रूप से हिट करने में सक्षम नहीं थे. पाकिस्तानी मिसाइलों की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (एसएएम) के संपर्क में आने के बाद से ही उन्हें निशाना बनाने और मार गिराने के लिए बहुत करीब से उड़ना था. मिग -21 लड़ाकू और एमआई -17 हेलीकॉप्टर सहित दो आईएएफ विमान लापता हो गए थे, इसमें वायुसेना के पांच जवान मारे गए थे.
मिराज 2000 अपग्रेड बेंगलुरु में शुरू हुआ और ग्वालियर तक जारी रहा, जहां भारतीय वायुसेना अपने मिराज 2000 स्क्वाड्रन का बेस है.
24 जून, 19999 डी डे था.
सुबह 6:30 मिनट पर तीन मिराज 2000 ने पंजाब के आदमपुर से उड़ान भरी. एयर मार्शल नांबियर जिन्हें टाइगर हिल पर पेववे लेजर बम गिराने की जिम्मेदारी दी गई थी ने कहा कि टाइगर हिल को लिटनिंग पॉड में लगभग 50 किमी की दूरी से देखा गया था और हम यह देखकर रोमांचित थे कि हिल के चारों ओर एक भी बादल नहीं थे. उन्होंने कहा कि मैनें सीधे एयरक्राफ्ट टैक लगाने के लिए हेंडिंग बदल दी थी. टाइगर हिल पर मुझे सात आर्कटिक टेंड का सेट दिखा था.
एयर मार्शल नांबियर ने कहा कि टाइगर हिल 16,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. लड़ाके 28,000 फीट तक नीचे उतरे, हमले के लिए उनकी निर्धारित ऊंचाई थी लेकिन इस ऊंचाई पर हवा तेज होने के कारण उन्हें नीचा उड़ना था.
टाइगर हिल पर हमला शुरू हो गया था.
उन्होंने कहा कि 28 किलोमीटर की दूरी पर मैंने पहली बार लक्ष्य को निर्धारित करने के लिए लेजर छोड़ा. लिटनिंग पॉड ने तुरंत लक्ष्य की दूरी तय की. मैंने बार-बार लक्ष्य को फिर से निर्दिष्ट किया. रिलीज रेंज में, मैंने ट्रिगर दबाया और हमें लगा कि विमान में ऊपर की तरफ अचानक 600 किलोग्राम भार आ गया है.
उन्होंने कहा कि डिलीवरी की शर्तों के तहत एक लेजर-निर्देशित बम की उड़ान का समय, जिसे हमने इसे गिरा दिया था, तीस सेकंड के भीतर था, लेकिन कॉकपिट में हमारे लिए यह एक अनंत काल के रूप में दिखाई दिया. हम इतने खुश थे कि हमें पता नहीं था कि लक्ष्य की पूरी वीडियो छवि एक ध्वनिविहीन विस्फोट में फट गई थी.
उस वीडियो को पहली बार एनडीटीवी पर प्रसारित किया गया था. और यह देखते ही देखते अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बन चुका था. साथ ही यह भारत की क्षमता को साफ तौर पर प्रदर्शित करता था.
#CrossHair on #TigerHill : 24 June 1999- 2XMirage2000, in the first-ever combat use of Laser-Guided Bombs (LGB) by the IAF, struck & destroyed the Pak Infantry's Command & Control bunkers on Tiger Hill.#RememberingKargil @DrSubhashMoS @nsitharamanoffc
— Indian Air Force (@IAF_MCC) June 23, 2018
पेववे बम के साथ लिटनिंग पॉड का एकीकरण एक शानदार सफलता थी. नंबियार ने आठ लेजर गाइडेड बमों में से पांच को लॉन्च किया जो कि कारगिल के दौरान भारतीय वायुसेना द्वारा दागे गए थे. यह आखिरी बार नहीं था कि पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लिटिंगन और पाववे का इस्तेमाल किया जाएगा.
तीन साल बाद, 2 अगस्त, 2002 को, भारतीय और पाकिस्तानी सेना ने संसद पर आतंकवादी हमले के बाद अपना गतिरोध समाप्त करने के कुछ महीने बाद, IAF ने जम्मू कश्मीर के केल सेक्टर में एक रिज लाइन पर खाली नहीं किए गए पाकिस्तानी पोस्ट को निशाना बनाया जो भारतीय क्षेत्र के लगभग चार किलोमीटर अंदर था.
IAF के वायु अधिकारी कमांडिंग इन सेंट्रल कमांड के प्रमुख राजेश कुमार ने कहा कि हमे जो संदेश मिला था उसमें किसी तरह की बकवास बर्दाश्त नहीं करेंने की बात थी. राजेश कुमार चार मिराज 2000 के पायलटों में से एक थे, जो पाकिस्तानी पोस्ट पर हिट करने के लिए तैनात थे. जो 12,000 फीट थे. एयर मार्शल कुमार ने कहा कि हमारे दो उद्देश्य थे - उन्हें एक संदेश भेजें. लेकिन हम एक युद्ध शुरू नहीं करना चाहते थे . हमारा निशाना यह सुनिश्चित कर रहा था कि बम अपने लक्ष्य को सटीक रूप से मारें. यदि आप एक रिज से चूक गए, तो आप खुद केल (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के एक गांव) को तबाह कर देंगे.
अब तक, भारतीय वायु सेना ने अपने लिटिंगेन पॉड्स और लेजर-गाइडेड बमों को उन्नत किया था. ये एक ऑपरेशन में पाकिस्तानी घुसपैठियों की रिज लाइन को साफ करने में इस्तेमाल किए गए थे, जिसे भारतीय वायुसेना ने आज तक आधिकारिक रूप से कभी नहीं कहा है.
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