वो 16 मज़दूर इस रोटी के लिये गये थे, ये रोटी बच गई. साथ बचे रहे जूते, कपड़े. बिखरे पड़े रहे पटरियों पर आखिरी निशानी के तौर पर. ये सारी प्रवासी मजदूर 20 से 35 साल की उम्र के थे, महाराष्ट्र के जालना से 600 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश में उमरिया, शहडोल, कटनी लौटना था. एसआरजी कंपनी में काम करते थे, जो बंद हो गई, रोजगार चला गया. 36 किलोमीटर चल चुके थे, थकान की वजह से पटरियों पर सो गये. सुबह 5.15 बजे पर मालगाड़ी आई तो उसकी आवाज़ तक सुन ना सके. रेल मंत्रालय के ट्वीट के मुताबिक ड्राइवर ने उन्हें देखकर ट्रेन रोकने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा. शायद इन लोगों ने सोचा होगा कि लॉकडाउन में कोई ट्रेन नहीं चल रही होगी. अंतौली गांव ने अपने 8 लाडले खो दिये. उनमें से एक दीपक. दीपक के पिता अशोक की गोद में उनका दो साल का पोता है, कहते हैं पोता पापा-पापा कहता है, मुझे सरकार से कुछ नहीं चाहिये, मेरा तो सब चला गया. ये बस पापा करता है. राजबोरम के पिता पारस सिंह ने कहा, 'हमें प्रशासन से पता चला कि उसकी मौत हो गई. यहां बहुत खेती नहीं होती इसलिये 2-3 साल पहले गया था.'
इस हादसे ने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बीच समन्वय की स्थिति को उधेड़ कर रख दिया है, खासकर तब जब मध्यप्रदेश सरकार ने जो 31 श्रमिक स्पेशल ट्रेन मांगे हैं उनमें से ज्यादातर महाराष्ट्र से शुरू हो रही हैं. 30 अप्रैल को सरकार ने दूसरे राज्यों के साथ समन्व्य के लिये सात वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की टीम बनाई, 1994 बैच की आईएएस अधिकारी दीपाली रस्तोगी पर के साथ समन्वय की जिम्मेदारी थी. लेकिन उमरिया के वीरेंद्र सिंह का कहना है, "हफ्ते भर पहले पास मांगा था. मिला नहीं किस्मत अच्छी थी हादसे में बच गये." पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी ट्वीट कर कहा है, “इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होना चाहिये. मध्यप्रदेश सरकार ने क्या इन प्रवासी मज़दूरों का पंजीयन किया था? यदि किया था तो उन्हें वापस लाने का क्या इंतज़ाम किया गया? शिवराज जवाब दो"
यकीन करेंगे कि जो लोग पैदल आए, मौत हो गई ... उन्हें देखने आदिवासी कल्याण मंत्री मीना सिंह और आला अधिकारी हवाई जहाज से उड़कर गये, अस्पताल में इलाज करा रहे घायलों से मिले और जिन 16 लोगों को जीते जी ट्रेन नहीं मिली उनके शव आखिरी दफा सफर पर निकले ... ट्रेन से.
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