
- पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह खान एक ही जगह पर हवन करते और नमाज पढ़ते थे.
- 9 अगस्त 1925 को काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ब्रिटिश खजाना लूटने वाले क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी.
- अशफाक उल्ला ने शाहजहांपुर आर्य समाज मंदिर पर हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंसा की कोशिश की थी.
आजादी की लड़ाई की एक ऐतिहासिक घटना ''काकोरी ट्रेन एक्शन'' (Kakori Train Action) के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान एक ही जगह हवन करते और नमाज पढ़ते थे और एक ही थाली में खाना खाते थे. वे हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे. अशफाक और बिस्मिल की सौहार्द व भाईचारे की यह क्रांतिकारी कहानी मिसाल के तौर पर याद की जाती है.
9 अगस्त, 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के क्रांतिकारियों बिस्मिल, अशफाक उल्लाहह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन को रोककर गार्ड के केबिन से ब्रिटिश खजाने को लूट लिया था. ब्रिटिश सरकार ने इस योजना को अंजाम देने के लिए चारों को 19 दिसंबर, 1927 को फांसी दे दी थी.
बिस्लिम और अशफाक की दोस्ती की कहानी
अशफाक उल्ला खान के बड़े भाई रियासत उल्लाहह खान के पोते अफाक उल्लाहह खान (55) ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया, "उन दिनों, जब बिस्मिल साहिब शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में हवन करते थे, अशफाक उल्लाह साहब उसी स्थान पर नमाज पढ़ते थे. उन्होंने याद किया कि वे दोनों न केवल एक ही थाली में खाना खाते थे, बल्कि हर समय एक-दूसरे के साथ खड़े भी रहते थे.
मंदिर में हुआ था सांप्रदायिक दंगा
अफाक उल्ला ने कहा, "काकोरी ट्रेन एक्शन से कुछ महीने पहले, शाहजहांपुर में आर्य समाज मंदिर पर भीड़ के धावा बोलने के बाद सांप्रदायिक दंगा हुआ था. तब अशफाक उल्ला साहब भीड़ का सामना करने वाले पहले व्यक्ति थे.''
उन्होंने कहा, "अशफाक साहब ने बवाल करने वालों को दूर रहने की चेतावनी दी थी और कहा था कि अगर ऐसा न हुआ तो वह गोली चलाने से नहीं हिचकिचाएंगे." उन्होंने यह भी याद किया कि शुरुआत में, अशफाक उल्लाहह काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम देने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे लोगों में गलत संदेश जाएगा.
बिस्मिल और अशफाक की दोस्ती की कहानी
अफाक उल्लाहह ने कहा, हालांकि, बिस्मिल साहब ने उन्हें आश्वस्त किया कि यह कार्रवाई स्वतंत्रता संग्राम के व्यापक हित में है. संस्कृति मंत्रालय की एक पहल, 'भारतीय संस्कृति' पोर्टल के मुताबिक, "अशफाक उल्लाहह 1920 में बिस्मिल से मिले और 1927 में उनकी मृत्यु तक उनकी दोस्ती बनी रही."
अशफाक उल्लाह और बिस्मिल ने असहयोग आंदोलन के लिए साथ मिलकर काम किया, स्वराज पार्टी के लिए प्रचार किया और 1924 में सचिंद्र नाथ सान्याल, जोगेशचंद्र चटर्जी और बिस्मिल द्वारा स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए मिशन चलाए. पोर्टल के अनुसार, "फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले, अशफाक उल्लाह खान ने लिखा था, 'तंग आकर हम उनके जुल्म बेदाद से, चल दिए सुए-आदम फैजाबाद से." अशफाक उल्लाह को 19 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद जिला जेल में फांसी दे दी गई और वे अपने पीछे एक अनोखी विरासत छोड़ गए.
अशफाक उल्ला की फांसी की दुखद यादें
उन्होंने बताया, "अशफाक उल्लाह साहब ने अपनी वसीयत अपने बड़े भाई रियासतुल्लाह खान के साथ साझा की, जिसमें कहा गया था कि परिवार में एक बच्चे का नाम अशफाक उल्लाह रखा जाए. फाक उल्लाह ने कहा, "फांसी के कुछ साल बाद मेरे पिता का जन्म हुआ, लेकिन उनका नाम अशफाक उल्लाह नहीं रखा जा सका, क्योंकि यह महसूस किया गया कि अशफाक उल्लाह साहब की फांसी के इतने करीब नामकरण दुखद यादें ताजा कर देगा. इसलिए मेरे पिता का नाम इश्तियाक उल्लाह खान रखा गया." उन्होंने कहा, "अशफाक साहब की वसीयत के अनुसार मेरे पिता के विवाह के बाद पैदा हुए पहले बच्चे का नाम अशफाक उल्लाहह खान रखा गया, जो मेरे बड़े भाई हैं"
साल 2021 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस क्रांतिकारी घटना का नाम बदलकर काकोरी ट्रेन एक्शन कर दिया. आधिकारिक संचार में इस घटना के उल्लेख के लिए काकोरी ट्रेन एक्शन नाम इस्तेमाल किया गया है. इससे पहले इसे आमतौर पर 'काकोरी ट्रेन डकैती' या 'काकोरी ट्रेन षड्यंत्र' कहा जाता था.
इनपुट- भाषा के साथ
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