पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह खान एक ही जगह पर हवन करते और नमाज पढ़ते थे. 9 अगस्त 1925 को काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ब्रिटिश खजाना लूटने वाले क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी. अशफाक उल्ला ने शाहजहांपुर आर्य समाज मंदिर पर हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंसा की कोशिश की थी.