योगी सरकार का ‘किसान कल्याण मिशन’ किसानों के गुस्से को दबाने का प्रचार स्टंट : किसान यूनियन

देश भर किसान कारपोरेट पक्ष में मोदी सरकार द्वारा बनाए गये खेती के कानूनों का विरोध कर रहे हैं. भाजपा नेता इस गलत प्रचार में जुटे हैं कि ये कानून किसानों की आमदनी दोगुना कर देंगे.

योगी सरकार का ‘किसान कल्याण मिशन’ किसानों के गुस्से को दबाने का प्रचार स्टंट : किसान यूनियन

गुरुवार को किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला.

नई दिल्ली :

Farmers Protest : हजारों ट्रैक्टरों व 10,000 किसानों की भागीदारी के साथ गुरुवार को दिल्ली के तीनों धरना स्थलों (गाजीपुर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर) से एक सफल अभियान लिया गया जिसमें एक दूसरे चरण में प्रवेश करते हुए दिल्ली के चारों ओर के इलाकों में लोगों से अपील की गई कि वे इन तीन खेती के कानूनों और बिजली बिल 2020 को रद्द कराने के लिए संघर्ष में भाग लें. ऑल इंडिया किसान मजदूर सभा (AIKMS) के सदस्यों ने भारी संख्या में भाग लिया.

इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ‘किसान कल्याण मिशन' विकास खण्ड स्तर पर प्रारम्भ किया ताकि वे किसानों का ध्यान इस बात से हटा सके कि जहां धान का एमएसपी 1868 रु. क्विंटल है, वह इस रेट को दिलाने में पूरी तरह असफल है. उत्तर प्रदेश में धान 1000 से 1100 रु. क्विंटल में बिक रहा है. मंत्री व भाजपा नेता इस अभियान में किसान निधि के चेक बांट रहे हैं, तकनीक के नाम पर कुछ उपकरण बांट रहे हैं और घोषणा कर रहे हैं कि किसान उत्पादक संगठनों के बनने से किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी.

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संगठन ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "एआईकेएमएस ने कहा कि कारपोरेट द्वारा लागत सामग्री व मशीनरी बेची जाएगी तो मुनाफा उन्हें होगा. किसानों की मांग रही है कि सरकार सस्ते दाम पर लागत और आधुनिक उपकरण दे व सिंचाई व्यवस्थित करे और फसल का रेट (सी-2) 50 फीसदी करे ताकि खेती लाभकारी हो जाए."

इसमें आगे लिखा है, देश भर किसान कारपोरेट पक्ष में मोदी सरकार द्वारा बनाए गये खेती के कानूनों का विरोध कर रहे हैं. भाजपा नेता इस गलत प्रचार में जुटे हैं कि ये कानून किसानों की आमदनी दोगुना कर देंगे.

आगे कहा गया है, इन कानूनों के बनने से: 1. कारपोरेट निजी मंडियां बनाएंगे, 2. सरकार कानून अनुसार इन निजी मंडियों को बढ़ावा देगी, जिससे सरकारी मंडियां बंद हो जाएंगी, 3. लागत के सामन, उपकरण और सिंचाई कारपोरेट नियंत्रण में चली जाएगी और सरकारी सब्सिडी समाप्त होगी व लागत के दाम बढ़ेंगे, 4. लागत के बढ़े दाम का भुगतान करने के लिए किसानों को कर्ज लेना होगा, जिससे जमीन से बेदखली बढ़ेगी, 5. सरकार कुल मिलाकर खेती, खाद्य सुरक्षा और राशन की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी.
 

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