यशवंत सिन्हा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा का कहना है कि नीरव मोदी - PNB घोटाले ने न सिर्फ देश के बैंकिंग सिस्टम की खामियों की पोल खोल डाली है, बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार की छवि को भी धूमिल कर दिया है. इस मुद्दे से जुड़े 10 अहम सवाल मौजूदा केंद्र सरकार से पूछते हुए उन्होंने कहा है कि इस घोटाले के बाद राजनैतिक बयानों की बाढ़ आनी ही थी, लेकिन इन बयानों में लग रहे आरोपों-प्रत्यारोपों में सच्चाई कहीं छिप गई है.
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NDTV.com के लिए लिखे एक ब्लॉग में यशवंत सिन्हा ने कहा कि भले ही घोटाला सिस्टमैटिक फेल्योर का नतीजा होता है और कोई भी वित्तमंत्री हर समय, अपने नीचे काम करने वाली हर संस्था के हर कृत्य पर नज़र नहीं रख सकता, लेकिन वह अपनी संवैधानिक और लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी से भी नहीं बच सकता. इसके बाद उन्होंने 10 सवाल पूछे हैं, जिनके जवाब उनके मुताबिक मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए अनिवार्य हैं.
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NDTV.com के लिए लिखे एक ब्लॉग में यशवंत सिन्हा ने कहा कि भले ही घोटाला सिस्टमैटिक फेल्योर का नतीजा होता है और कोई भी वित्तमंत्री हर समय, अपने नीचे काम करने वाली हर संस्था के हर कृत्य पर नज़र नहीं रख सकता, लेकिन वह अपनी संवैधानिक और लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी से भी नहीं बच सकता. इसके बाद उन्होंने 10 सवाल पूछे हैं, जिनके जवाब उनके मुताबिक मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए अनिवार्य हैं.
- यदि नीरव मोदी का घोटाला 2011 में शुरू हुआ था, तो बताया जाए कि हर साल कितने लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग (LoU या एलओयू) जारी किए गए? मामले को इससे आगे साफ-साफ समझने के लिए मई, 2014 को एक खास वक्त मान लिया जाए, और बताया जाए कि मई, 2014 तक कितने एलओयू जारी हुए, और कितने उस साल के अंत तक.
- प्रत्येक एलओयू की राशि बताई जाए.
- बताया जाए कि एलओयू कितनी अवधि के लिए वैध था - 90 दिन, 180 दिन, 365 दिन या उससे भी ज़्यादा.
- यह बताया जाए कि हर एलओयू पर विदेशी बैंकों से कितनी राशि निकली?
- कितने मामलों में एलओयू की रकम पीएनबी को वापस लौटी? कितने एलओयू की गारंटी पीएनबी को नहीं लौटाई गई?
- अगर किसी विदेशी बैंक ब्रांच को समय पर पैसे नहीं मिले तो क्या उसने पीएनबी को ख़बर दी? कितने मामलों में बक़ाया वसूली के लिए पीएनबी की गारंटी का इस्तेमाल किया गया?
- क्योंकि इस में विदेशी मुद्रा का ट्रांजेक्शन भी शामिल था, तो फिर बताया जाए कि आखिर ये आरबीआई की निगाह से ये लेनदेन बचा कैसे रह गया?
- बताया जा रहा है कि नीरव मोदी ने 200 शेल कंपनियां बनाई थीं जिनके ज़रिए लेनदेन हुआ, लेकिन फिर सरकार के दावे का क्या हुआ कि नोटबंदी के बाद ऐसी सारी फ़र्ज़ी कंपनियां बंद हो गई हैं?
- जब जांच एजेंसियां तुंरत ही नीरव मोदी की जब्त की गई संपतियों को कैलकुलेट कर सकती हैं तो फिर वे साधारण जानकारियां क्यों नहीं साझा कर रही हैं?
- और अंत में, इस कन्फ्यूजन से किसे फायदा हो रहा है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस खबर की प्रासंगिकता तभी तक है, जब तक कोई बड़ी खबर मीडिया को मिल नहीं जाती? उसके बाद फिर नीरव मोदी भी माल्या की तरह इतिहास बन जाएंगे.
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