33, शामनाथ मार्ग स्थित इस बंगले में नहीं रहना चाहते मंत्री-अधिकारी...
नई दिल्ली: दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब सिविल लाइन्स के फ्लैग स्टाफ रोड स्थित बंगले में रहने पहुंचे, तो माना जाने लगा था कि उनसे कुछ ही दूरी पर स्थित एक और भव्य बंगला भी अब आबाद हो जाएगा, जिसे अब तक मंत्री-अधिकारी अपना आशियाना बनाने से बचते आए हैं।
लेकिन बंगले की किस्मत बदलती नहीं दिख रही है। दरअसल, 33, शामनाथ मार्ग पर स्थित चार बेडरूम और सात सर्वेंट क्वार्टरों वाले इस खूबसूरत बंगले पर बदकिस्मती का दाग इतना गहरा लगा है कि आम आदमी पार्टी का भी कोई मंत्री या अधिकारी इसमें रहने को तैयार नहीं। पीडब्ल्यूडी ने इसे पहले गेस्ट हाउस में तब्दील करने की योजना बनाई थी और फिर इसे दिल्ली डायलॉग कमीशन का दफ्तर बना दिया। आजकल यहां आशीष खेतान बैठते हैं और इस बंगले से जुड़े किसी भी मिथ या कहानी को मानने के लिए वह तैयार नहीं।
क्या दिक्कत है बंगले में...?
दरअसल, इस भव्य बंगले को वर्ष 1993 में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने अपना आशियाना बनाया, लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनका नाम हवाला में आने की वजह से उन्हें पद छोड़ना पड़। उनसे पहले मांगेराम गुप्ता भी यहां रहे, लेकिन वह भी पार्षद के रूप में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, और इन्हीं कारणों से मुख्यमंत्री बनने पर साहिब सिंह वर्मा इस बंगले में रहने नहीं आए।
वर्ष 2003 में कांग्रेस के दीपचंद बंधु उद्योग मंत्री के तौर पर इस बंगले में रहने आए, लेकिन वह भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनकी बीमारी के बाद यहां मौत हो गई। इसके बाद 10 साल तक यह बंगला लगभग खाली रहा, और फिर वर्ष 2013 में ऊर्जा सचिव के तौर पर शक्ति सिन्हा ने तमाम 'कहानियों' को दरकिनार करते हुए इस बंगले में शिफ्ट किया, लेकिन 'कहानियों' को मजबूती तब मिली, जब शिफ्ट होने के छह महीने के भीतर ही तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से शक्ति सिन्हा के गंभीर मतभेद सामने आ गए, और उन्होंने वीआरएस ले लिया। हालांकि शक्ति सिन्हा इस प्रकरण को बंगले के दुर्भाग्य से नहीं जोड़ते, और अब भी इन्हें मनगढ़ंत कहानियां बताते हैं।